मिल-जुल कर किसी ढंग के ब्लोगर को जर्मनी भेजने पर इत्तेफ़ाक़ कर ले। अच्छा तो यही है.
ब्लोगिंग का माज़ी (इतिहास) लिखने वाले उसका वर्तमान ख़राब कर रहे हैं. यह देखना अच्छा नहीं लगता.
शोहरत के लिए या किसी और मकसद के लिए आदमी वह सब कर गुज़रता है जो कि नहीं करना चाहिए.
रविन्द्र परभात जी किसी ब्लॉग को अच्छा कहें तो सही है लेकिन वे या उनके हमनवा दूसरे ब्लोगों को बकवास कहने का हक नहीं रखते. उन्हें भी बहुत लोग पसंद करते हैं। दूसरे ब्लोगों को बकवास कहना हिन्दी ब्लोगिंग को नुकसान पहुँचाना है .
ईनाम के लिए नामित एक महिला ब्लोगर कि ईमेल ने तो उनके बारे में बहुत कुछ बिना कहे कह दिया है.
यह चर्चा हो रही है इस पोस्ट की-
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