न्यूज़ चैनल्स दिखा रहे हैं कि 2 जेसीबी मशीनें मौक़े पर पुलिस द्वारा मंगवा ली गई हैं ताकि आश्रम को ख़ाली करने के लिए गेट को तोड़ना पड़े तो तोड़ा जा सके। धारा 144 सीआरपीसी लगा दी गई है। इसके बावजूद आर्य समाजी वहीं अड़े खड़े हैं। मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुडडा ने भी दोनों पक्षों से जगह ख़ाली करने की अपील की है।
सन 2006 ई. में भी इस आश्रम को लेकर हिंसक संघर्ष हुआ था। जिसमें एक नौजवान की मौत हुई थी और रामपाल जी और उनके समर्थकों को जेल जाना पड़ा था। इसी के साथ उनके आश्रम को सील कर दिया गया था। कोर्ट के आदेश के बाद सतलोक आश्रम को रामपाल जी को सौंप दिया गया। आर्य समाज की ओर से कोर्ट के इस आदेश का विरोध किया गया और इसी के चलते यह हिंसा हुई। आर्य समाज के लोगों ने पीजीआई के बाहर भी नारेबाज़ी की।
रामपाल जी कबीरपंथी विचारधारा के आदमी हैं। वह कबीर को ईश्वर मानते हैं। उन्होंने सभी धर्म-मतों के गुरूओं को ग़लत बताया और कहा कि मैं सही बात बता रहा हूं।
इसी क्रम में उन्होंने आर्य समाजियों के ग्रन्थों में भी कमियां दिखाईं। जो कि मतवादी आर्य समाजियों से बर्दाश्त नहीं हुआ जबकि ख़ुद आर्य उनके सत्यार्थ प्रकाश आदि ग्रन्थों में कबीरदास जी के बारे में उपहासात्मक टिप्पणियां मौजूद हैं। उन्हें रामपाल जी की ग़लतफ़हमी को साहित्य से दूर करना चाहिए था और अगर उनके प्रवचन में कोई ग़ैर क़ानूनी बात दिखाई दे रही थी तो उसके लिए क़ानून का सहारा लेते। उन्होंने ऐसा न करके 3 हिन्दू मार डाले और सैकड़ों हिन्दू ज़ख़्मी कर दिए। फ़ोर्स के ज़ख़्मी लोगों में तो ग़ैर हिन्दू भी हैं।
मरने वाला दूसरे धर्म-मत-संप्रदाय का हो तो भी कोई ख़ुशी की बात नहीं है लेकिन अपने ही लोगों को मार डालना कौन सी धार्मिकता या आध्यात्मिकता है ?
रामपाल जी ने मुसलमानों की भी आलोचना की है, मुसलमानों ने तो उन पर कोई हमला नहीं किया।
रामपाल जी ने चारों शंकराचार्यों की भी आलोचना की है और उनके मानने वाले भी करोड़ों हैं। किसी सनातनी ने भी ऐसी हिंसक घटना नहीं की है।
किसी से मत-विरोध होने का यह मतलब नहीं है कि उस पर जानलेवा हमला कर दिया जाए। यह सब पाकिस्तान में देखा सुना जाता था लेकिन अब भारत में भी यह देखा जा रहा है।
आर्य समाज भारत में पाकिस्तानी कल्चर फैलाकर उसे पाकिस्तान बनाने पर क्यों तुले हुए हैं ?
हक़ीक़त यह है कि समाज में टकराव और हिंसा फैलाने वाले सच्चे धार्मिक आदमी नहीं होते। ऐसे तत्वों को इनके कामों से पहचाना जाए तो ये शैतान कहलाएंगे।
भारत में ‘एक्टिव शैतान‘ बहुत कम हैं। ज़्यादातर लोग भोले हैं। उनके भोलेपन का लाभ उठाकर ही ये शैतान उन्हें भड़काते हैं और वे बिना विचारे कहीं भी हमला कर देते हैं।
किसी की ग़लत बात के विरोध का सभ्य तरीक़ा छोड़कर हिंसा करना बिल्कुल ग़लत तरीक़ा है। एक दूसरे की देखा-देखी सब इसी तरीक़े पर चल पड़े तो पड़ोसी देश और भारत में कोई अंतर शेष न रहेगा। देश की भोली भाली जनता को एक दूसरे से लड़ाने वाले शैतान देश के सामने धीरे धीरे बेनक़ाब हो रहे हैं। आर्य समाज के ज़िम्मेदार विद्वान भी हिंसक आर्य समाजियों के कामों को सही नहीं ठहरा सकते। सभी आर्य समाजी भी उग्र सोच के नहीं हो सकते।
कुछ भटके हुए विचारकों द्वारा पिछले कुछ समय से लगातार अलग अलग मंचों से यह संदेश फैलाया जा रहा है कि हिन्दुओं में आक्रामकता की कमी है। हिन्दुओं में आक्रामकता बढ़ानी चाहिए। यह एक प्योर शैतानी थ्योरी है। हिन्दू मतानुयायियों में आक्रामकता कम है तो हाल यह है । अगर कहीं उनकी आक्रामकता में इज़ाफ़ा हो गया तो अंजाम तबाही के सिवा क्या होगा ?, करौंथा आश्रम के मौजूदा हालात इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। दूसरों के लिए विकसित की गई आक्रामकता केवल दूसरों तक के लिए ही नहीं रह जाती है बल्कि वह अपनों को भी मार डालती है।
हक़ीक़त यह है कि देश और समाज की भलाई के लिए उग्रवादी विचारधारा से बचा जाए और आपसी विरोध के मुददों को सद्भावपूर्ण बातचीत से हल करना चाहिए।
2 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (15-05-2013) के "आपके् लिंक आपके शब्द..." (चर्चा मंच-1245) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
स्वयम्भू बाबाओं का ज़माना है इसलिए कुछ भी हो सकता है !!
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