चाय के ठेले पर विकास पुरूष
के बाद अब एक अहम सवाल
श्री रामचन्द्र जी के साथ यह अन्याय क्यों?
सांप्रदायिक तत्व धर्म के झंडे लेकर चलते हैं लेकिन मक़सद अपने पूरे करते हैं जो कि धर्म के खि़लाफ़ होते हैं। इसीलिए ये धार्मिक सत्पुरूषों को पीछे धकेलते रहते हैं।
राम मंदिर का मुददा गर्माने और भुनाने वाालों ने प्रधानमंत्री पद के लिए रामचन्द्र जी के वंश में से किसी का नाम आगे क्यों नहीं बढ़ाया?
क्या इन सांप्रदायिक तत्वों को श्री रामचन्द्र जी की सन्तान में कोई योग्य व्यक्ति ही नज़र नहीं आया या फिर उन्हें गुमनामी के अंधेरे में धकेलने वाले यही तत्व हैं?
रामकथा के अनुसार सारी धरती मनु को दी गई थाी और इसी उत्तराधिकार क्रम में यह श्री रामचन्द्र जी को मिली थी लेकिन आज उनके उत्तराधिकारी वंशजों के नाम दुनिया वाले तो क्या स्वयं भारत में उनके श्रद्धालु भी नहीं पहचानते।
श्री रामचन्द्र जी के साथ यह अन्याय क्यों?
यही बात मुसलमानों को भी समझ लेनी चाहिए कि उनके लीडर किसी दीनदार आलिम को अपना रहबर क्यों नहीं मान लेते?
इसके पीछे भी यही कारण है कि ये लीडर दीन के मक़सद को नहीं जो कि अमन और भाईचारा है बल्कि अपने लालच को पूरा करने में जुटे हुए हैं।
चुनाव का मौक़ा इन मौक़ापरस्तों को पहचानने का महापर्व होता है। जनता इन्हें अच्छी तरह पहचान रही है।
सांप्रदायिक तत्व धर्म के झंडे लेकर चलते हैं लेकिन मक़सद अपने पूरे करते हैं जो कि धर्म के खि़लाफ़ होते हैं। इसीलिए ये धार्मिक सत्पुरूषों को पीछे धकेलते रहते हैं।
राम मंदिर का मुददा गर्माने और भुनाने वाालों ने प्रधानमंत्री पद के लिए रामचन्द्र जी के वंश में से किसी का नाम आगे क्यों नहीं बढ़ाया?
क्या इन सांप्रदायिक तत्वों को श्री रामचन्द्र जी की सन्तान में कोई योग्य व्यक्ति ही नज़र नहीं आया या फिर उन्हें गुमनामी के अंधेरे में धकेलने वाले यही तत्व हैं?
रामकथा के अनुसार सारी धरती मनु को दी गई थाी और इसी उत्तराधिकार क्रम में यह श्री रामचन्द्र जी को मिली थी लेकिन आज उनके उत्तराधिकारी वंशजों के नाम दुनिया वाले तो क्या स्वयं भारत में उनके श्रद्धालु भी नहीं पहचानते।
श्री रामचन्द्र जी के साथ यह अन्याय क्यों?
यही बात मुसलमानों को भी समझ लेनी चाहिए कि उनके लीडर किसी दीनदार आलिम को अपना रहबर क्यों नहीं मान लेते?
इसके पीछे भी यही कारण है कि ये लीडर दीन के मक़सद को नहीं जो कि अमन और भाईचारा है बल्कि अपने लालच को पूरा करने में जुटे हुए हैं।
चुनाव का मौक़ा इन मौक़ापरस्तों को पहचानने का महापर्व होता है। जनता इन्हें अच्छी तरह पहचान रही है।
2 comments:
हिन्दू सचमुच बहुत सहनशील होते हैं। साम्प्रदायिक ताकत जब हिन्दुओं पर जुल्म-पर-जुल्म करते जाते हैं, तब अन्त में उकता कर हिन्दुओं को करवट बदलनी ही होती है। जितना हिन्दू धर्म पर मीडिया वाले बोलते हैं, उतना दूसरे धर्म पर मीडिया वाले बोल कर देखे। मीडिया वाले धरती से ही गायब हो जायेंगे। पर हिन्दुओं ने अपने धर्म की गलतियों को सुधारते हुए लगभग 5000 वर्ष बिता दिए, जो अहिंसा पद्धति को ही अपना कर संभव हुआ है। है कोई ऐसा धर्म जो अहिंसा पद्धति से चले? क्या पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान, इराक, रूस, अमेरिका, इंगलैंड, किसी की तुलना हिंदुस्तान से की जा सकती है?
@ Prem Bahadur ji ! सांप्रदायिक तत्व वाक़ई एक बड़ी समस्या हैं. विदेशियों के आने से पहले भी ये एक दूसरे के राज्य पर हमला करके लाखों हिन्दू मार दिया करते थे जैसा कि आजकल पाकिस्तान में देखा जा रहा है उस से भी भयानक मंज़र यहां आम थे.
हरेक को जीने का अधिकार यहां न था लेकिन विदेशियों के आने के बाद अब सबके बच्चे लिख पढ़ सकते हैं औए इज़्ज़त से जी सकते हैं. इसके लिए हिन्दू वाक़ई भधाई के पात्र हैं और मुसलमान और ईसाई भी जिन्हें देखकर हिन्दुओं ने खुद को इतना ज़्यादा सुधार लिया है कि अब शक्ल देख कर पता ही नहीं चलता कि कौन हिन्दू है और कौन मुसलमान है और कौन ईसाई है ?
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