अजब मसायल से वास्ता है
न हल है कोई न रास्ता है
गुज़र रहा है ज़माना कुछ यूं
उसूल कोई न ज़ाब्ता है
मिज़ाज क्यूं हो गया है ऐसा
ग़र्ज़ किसी से न वास्ता है
ग़रीबों का हमनवा है ग़म और
ख़ुशी रईसों की दाश्ता है
निशात के दिन गुज़र गए ‘शाज़‘
उदास लम्हों से राब्ता है
शाज़ रहमानी,
कटिहार, बिहार
न हल है कोई न रास्ता है
गुज़र रहा है ज़माना कुछ यूं
उसूल कोई न ज़ाब्ता है
मिज़ाज क्यूं हो गया है ऐसा
ग़र्ज़ किसी से न वास्ता है
ग़रीबों का हमनवा है ग़म और
ख़ुशी रईसों की दाश्ता है
निशात के दिन गुज़र गए ‘शाज़‘
उदास लम्हों से राब्ता है
शाज़ रहमानी,
कटिहार, बिहार
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