आँगन सूना घर हुआ, बच्चे घर से दूर।
मजदूरी करने गया, छोड़ यहाँ मजबूर।।
जल्दी से जल्दी बनें, कैसे हम धनवान।
हम कुदाल बनते गए, दूर हुई संतान।।
ऊँचे पद संतान की, कहने भर में जोश।
मगर वही एकांत में, भाव-जगत बेहोश।।
कहाँ मिला कुछ आसरा, वृद्ध हुए माँ बाप।
कहीं सँग ले जाय तो, मातु पिता अभिशाप।।
जैसी भी है जिन्दगी, करो सुमन स्वीकार।
शायद जीवन को मिले एक नया विस्तार।।
मजदूरी करने गया, छोड़ यहाँ मजबूर।।
जल्दी से जल्दी बनें, कैसे हम धनवान।
हम कुदाल बनते गए, दूर हुई संतान।।
ऊँचे पद संतान की, कहने भर में जोश।
मगर वही एकांत में, भाव-जगत बेहोश।।
कहाँ मिला कुछ आसरा, वृद्ध हुए माँ बाप।
कहीं सँग ले जाय तो, मातु पिता अभिशाप।।
जैसी भी है जिन्दगी, करो सुमन स्वीकार।
शायद जीवन को मिले एक नया विस्तार।।
2 comments:
ऊँचे पद संतान की, कहने भर में जोश।
मगर वही एकांत में, भाव-जगत बेहोश,,,,
बहुत सुंदर रचना,,,अच्छी प्रस्तुति,,,,,
RECENT POST काव्यान्जलि ...: किताबें,कुछ कहना चाहती है,....
सत्य पर आधारित कविता बहुत अच्छी लगी |
आशा
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