हिंदी ब्लागर किस पोस्ट को ज़्यादा पढ़ते हैं ?-एक सर्वे जनहित में

Posted on
  • Saturday, July 7, 2012
  • by
  • Ayaz ahmad
  • in

  • एक बार एक कवि ने कहा था कि आपको पोस्ट लिखने की ज़रूरत ही नहीं है। बस वक्ष वक्ष वक्ष और ऐसे ही अल्फ़ाज़ लिख दीजिए। लोग पागलों की तरह उसे ऐसे पढ़ने के लिए टूट पड़ेंगे जैसे उन्होंने कभी वक्ष देखा ही न हो।
    कुछ शरपसंद ब्लागर ऐसे हैं कि जब उनकी बात नहीं मानी जाती तो वे अपने निजी मुददे को सांप्रदायिकता से जोड़ देते हैं। कहते हैं कि फ़लां ब्लाग पर उस विशेष पार्टी की औरतों के नाम और फ़ोटो हैं और उस ब्लाग की पोस्ट में ऐसे वैसे अल्फ़ाज़ भी हैं और ऐसे वैसे अल्फ़ाज़ वाली पोस्ट उस ब्लाग पर सबसे ज़्यादा पसंद की जा रही हैं।
    भाई पढ़ने वाले भी तुम्हारी पार्टी के ही हैं। इस तरह तो तुम ख़ुद यह बता रहे हो कि हमारे लोग उन पोस्टों पर टूट कर पड़ते हैं जिनमें ऐसे वैसे अल्फ़ाज़ हों।
    उसी ब्लाग पर सैकड़ों दूसरी पोस्टें भी हैं जिनमें ये अल्फ़ाज़ नहीं हैं। उन्हें पढ़ा होता तो ‘लाइक‘ के कालम में वे दूसरी पोस्टें आ जातीं जिनमें टेक्नीकल जानकारी या दूसरी बातें बताई गई हैं।
    ‘लाइक‘ कालम में ऐसी वैसी पोस्टों को लाया कौन ?
    हिंदी ब्लागर ही लाए हैं और कौन लाया है !!!
    इसी विशेष ब्लाग पर नहीं हर ब्लाग पर ऐसी पोस्टों के पाठक सबसे ज़्यादा मिलेंगे।
    अपने ब्लाग का स्टैट चेक करो तो पता चलता है कि हिंदी ब्लागर कैसे कैसे घिनौने अल्फ़ाज़ लिखकर पढ़ने का मसौदा तलाश करते हैं।
    यह देखा तो कुछ औरतों ने तो औरतपने ही हदें पार करके ही लिखना शुरू कर दिया। बाद में ये ऐसे लजाती हैं जैसे कि , जैसे कि ...
    शीर्षक में प्यार, बोल्ड और वासना अल्फ़ाज़ का इस्तेमाल कीजिए और फिर देखिए कि आपके पाठक कितने ज़्यादा बढ़ जाते हैं। हिंदी ब्लागरों को यही सब पसंद है।
    दीन धर्म की बात बताने वाले ब्लाग पर ब्लागर जाते ही कहां हैं ?
    ब्लागर अच्छी चीज़ें पढ़ना शुरू करें तो हरेक ब्लाग का ‘लाइक‘ कालम अपने आप बदल जाएगा।
    जो भी कविता करने वाली बोल्ड होकर लिखे, उसे पढ़ो ही मत और वह लिखे और ब्लागर पढ़ें तो फिर उछल कूद मत मचाओ कि हाय ! हमारा पढ़ा हुआ सबसे ज़्यादा पढ़ा हुआ क्यों बन गया ?
    ज़्यादा उछल कूद मचाओगे तो पर्दा तुम्हारा ही खुलेगा कि तुम इंटरनेट पर बीवी बच्चों को छोड़कर दिन रात पढ़ते क्या हो ?

    2 comments:

    Asha Lata Saxena said...

    बहुत सही लिखा है पर सब एक जैसे नहीं होते |वे बिना सार जाने टिप्पणी नहीं करते |
    आशा

    Ayaz ahmad said...

    सार की पहचान रखने वाले सदा ही कम होते हैं.
    शुक्रिया !

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