65 वें स्वतंत्रता दिवस की बधाई-शुभकामनायें.
और ज्ञानदत्त पाण्डेय जी के शब्दों में
मेरी चिंतायें
मानव विकसित हो रहा है. आजके बच्चे पहले की अपेक्षा अधिक जानकार और होशियार हैं. वे अपने और अपने वातावरण के प्रति अधिक चैतन्य हैं. पर हमें पहले से ज्यादा नैराश्य, दैन्यता और अन्धेरा क्यों नजर आता है ?
अखबारों और पत्रिकाओं/पुस्तकों के पन्ने अधिक चमकदार बन रहे हैं, पर वे जीवन धुंधला क्यों बना रहे हैं ?
अखबारों और पत्रिकाओं/पुस्तकों के पन्ने अधिक चमकदार बन रहे हैं, पर वे जीवन धुंधला क्यों बना रहे हैं ?
6 comments:
जिस मशीन के कारण बच्चे अधिक जागरूक नज़र आते हैं,उसी की अधिकता अनेक समस्याओं की जड़ है।
सार्थक चिंतन व्यक्त किया है आपने सर जी..
बदलेगा सब इसी कामना के साथ....
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
आपको भी स्वतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाये!
----शुभेक्षुक ----
सवाई सिंह
सुगना फाऊंडेशन-मेघालासिया जोधपुर
The answer of the questions raised is quite obvious.Indians are detaching themselves from Indian culture.They are more inclined towards western culture.
bahut sunder prastuti.badhaai aapko
happy independence day.
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