जनलोकपाल कानून सरकार बनाने के लिए राजी नहीं है। कहां तक बार-बार
अनशन करते रहोगे। अब अनशन छोड़ो और देश की जनता को विकल्प दे दो। यह मांग
जनता से बढ़ती गई। मैंने भी सोचा आज की सरकार से देश का भ्रष्टाचार कम नहीं
हो सकता। कारण, सरकार की मंशा ही नहीं है। जनलोकपाल कानून से भ्रष्टाचार
दूर होगा। यह देशवासियों की आशा थी। लेकिन डेढ साल बीत गए। बार-बार जनता ने
आंदोलन करने के बाद भी सरकार जनलोकपाल कानून लाने को तैयार नहीं। अच्छे
लोगों को खोज करके जनता को विकल्प देना। यह अच्छा रास्ता है। ऐसा मुझे लगा।
लेकिन होगा कैसे? यह मेरे सामने प्रश्न है।
मुझे विकल्प देने की बात करने वाले लोगों के सामने जंतर मंतर पर खुलेआम मैंने एक प्रश्न खड़ा किया। आप विकल्प की बात करते हैं। मैं देशभर में दौरे करूंगा। लोगों को जागरूक करूंगा अच्छे सदाचारी, राष्ट्रीय दृष्टिकोण है, सामाजिक दृष्टिकोण है, सेवा भाव है ऐसे लोग संसद में नहीं जाएंगे तब तक बदलाव नहीं आएगा। यह बात मुझे मंजूर है लेकिन-
1. ऐसे लोगों की खोज करने का तरीका क्या होगा?
2. विकल्प देने के लिए पार्टी बनानी होगी। उस पार्टी बनाते समय पार्टी सदस्य चुनने का तरीका क्या होगा?
3. आज अधिकांश पार्टी बोर्ड लगाती हैं। सभासद नोदनी (रजिस्ट्रेशन) का काम चालू है। भ्रष्टाचारी हो, गुंडा हो, व्यभाचारी हो, लूटारू हो इनको न देखते हुए भी सभासद बनाती है। इस प्रकार के सभासद बनाए तो इस आंदोलन का क्या होगा?
4. मैं खुद कोई पक्ष-पार्टी में नहीं बनाऊंगा। मैं चुनाव नहीं लडूंगा। लेकिन जनता के सामने विकल्प देने के लिए जरूर प्रयास करूंगा।
5. आज एक चुनाव के लिए 10 से 15 करोड़ रुपए से भी ज्यादा खर्चा होता है। देश को विकल्प देने के लिए इतना पैसा कहां से लाएंगे?
6. चुनाव में चुनकर आने के बाद उनकी बुद्धि का पालट हो गया तो क्या विकल्प है? कारण, जनता चुनकर देते समय अच्छा उम्मीदवार है यह समझकर ही चुनकर देती है। लेकिन कुर्सी का गुण-धर्म है कि कई लोगों की बुद्धि पलट जाती है और स्वार्थ के कारण वह भ्रष्टाचार करने लगते है। जैसे आज कई पार्टियों में दिखाई दे रहा है। उसके बारे में क्या सोच है? ऐसे लोगों की मानटरिंग करने का तरीका क्या है?
7. आज पकृति और मानवता का दोहन हो रहा है और सरकार उसे नहीं रोक रही। यह देश के लिए बड़ा खतरा है। क्या विकल्प होगा?
8. जंतर मंतर पर जो हजारों लोग आए थे उनको टीम ने पूछा कि विकल्प देना चाहिए या नहीं और सभी ने हाथ ऊपर उठाए। ये अच्छी बात है। लेकिन सिर्फ जंतर मंतर देश नहीं है। देश बहुत बड़ा है। उनकी भी राय लेना जरूरी है। मेरी अपेक्षा है। देश में 6 लाख गांव हैं। इन सभी गांव की ग्रामसभा की ग्रामसभाओं ने अपना सुझाव पारित करना है कि हम विकल्प मांगते है। इसलिए हमारी ग्रामसभा का सुझाव आपको भेजते हैं कि संसद में अच्छे लोग जाए इस बात से हमारी सहमति है। ग्रामसभा संभव नहीं है वहां पर व्यक्ति ने फार्म पर हस्ताक्षर करके कहने है कि हम विकल्प के लिए तैयार है।
9. जिस प्रकार गांव में ग्रामसभा का सुझाव होगा उसी प्रकार नगर परिषद्, नगरपालिका, महापालिका में वार्ड सभा और मोहल्ला सभा का भी सुझाव करना होगा। तब स्पष्ट होगा कि लोकसभा में अच्छे लोगों को भेजने की जनता की तैयारी है।
ऐसा होता है तो मैं अगले डेढ साल देश में सफर करूंगा। और देशवासियों को जगाऊंगा। और जनता से ही अपील करूंगा कि लोकसभा में भेजने के लिए चारित्रशील उम्मीदवार की खोज करो। खोज होने के बाद उनका सेवा भाव, चरित्र, राष्ट्र प्रेम, उनका कार्य उसकी मानटरिंग के लिए हमारे कार्यकर्ता जाएगे। उनकी जांच करेंगे। उसके बाद चयन होगा। मैंने महाराष्ट्र में यह प्रयोग किया है। विधानसभा के 12 लोग मैंने चुने थे। उसमें से 8 लोग चुनकर आए थे।
मैंने संसद में अच्छा उम्मीदवार भेजने का विकल्प देने की बात करते ही कई लोगों ने घोषणा की कि अन्ना ज़ीरो बन गए। मैं तो पहले से ही ज़ीरो हूं, मंदिर में रहता हूं, न धन न दौलत, न कोई पद, अभी भी ज़मीन पर बैठकर सादी सब्जी-रोटी खाता हूं। पहले से ही ज़ीरो है और आखिर तक ज़ीरो रहूंगा। जो पहले से ज़ीरो है उसको ज़ीरो क्या बनाएगे? जिसको कहना है वो कहता रहे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। आजतक 25 साल में मेरी बदनामी करने के लिए कम से कम 5 किताबें लिखी गई। कई अखबार वालों ने बदनामी के लिए अग्रलेख (संपादकीय) लिखे है। लेकिन फक़ीर आदमी की फक़ीरी कम नहीं हुई। इस फक़ीरी का आंनद कितना होता है? यह बदनामी करने वाले लोगों को फक़ीर बनना पड़ेगा तक समझ में आएगा। एक बात अच्छी हुई की जितनी मेरी निंदा हुई। उतनी ही जनता और देश की सेवा करने की शक्ति बढ़ी। आज 75 साल की उम्र में भी उतना ही उत्साह है। जितना 35 साल पहले काम करते वक्त था। देश का भ्रष्टाचार कम करने के लिए जनलोकपाल कानून बनवाने के लिए कई बार आंदोलन हुए। 4 बार अनशन हुए। लेकिन सरकार मानने के लिए तैयार नहीं इसलिए टीम ने निर्णय लिया अनशन रोककर विकल्प देना पड़ेगा।
सरकार से जनलोकपाल की मांग का आंदोलन रुक गया लेकिन आंदोलन समाप्त नहीं हुआ है। पहले सरकार से जनलोकपाल कानून की मांग करते रहे। सरकार नहीं करती इसलिए जनता से ही अच्छे लोग चुनकर संसद में भेजना और जनलोकपाल बनाने का आंदोलन शुरू करने का निर्णय हो गया। अगर जनता ने पीछे डेढ साल से साथ दिया, वह कायम रहा तो जनता के चुने हुए चरित्रशील लोग संसद में भेजेगे। और जनलोकपाल, राइट टू रिजेक्ट, ग्रामसभा को अधिकार, राइट टू रिकॉल जैसे कानून बनवाएंगे। और आने वाले 5 साल में भ्रष्टाचार मुक्त भारत का निर्माण पक्ष और पार्टी से नहीं जन सहभाग से करेंगे। 2014 का चुनाव भ्रष्टाचार मुक्त देश बनाने के लिए जनता के लिए आखिरी मौका है। इस चुनाव के बाद फिर से ऐसा मौका मिलना मुश्किल है। कारण, इस वक्त देश जाग गया है। अभी नहीं तो कभी नहीं। मैंने बार-बार बताया है कि मेरा जीवन समाज और देश सेवा में अर्पण किया है। इस वक्त जनता का साथ नहीं मिला तो नुकसान अन्ना का नहीं जनता का होगा। अन्ना तो एक फक़ीर है और मरते दम तक वो फक़ीर ही रहेगा। मैंने अच्छे लोग चुनकर संसद में भेजने का विकल्प दिया है। लेकिन मैं पक्ष-पार्टी में शामिल नहीं होऊंगा। चुनाव भी नहीं लडूंगा। जनता को जनलोकपाल का कानून देकर मैं महाराष्ट्र में अपने कार्य में फिर से लगूंगा। पार्टी निकालने वाले लोगों को भी मैंने बताया है। पार्टी बनाने के बाद भी यह आंदोलन ही रहे। पहले आंदोलन में सरकार से जनलोकपाल कानून मांग रहे थे। अब आंदोलन जारी रखते हुए जनता के सहयोग से अच्छे लोगों को चुनाव में खड़ा करके संसद में भेजो और कानून बनाओ। दिल और दिमाग में सत्ता न रहे, राज कारण न रहे, यह देश की देशवासियों की सेवा समझकर करो। अगर सत्ता और पैसा दिमाग में आ गया तो दुसरी पक्ष-पार्टी और अपनी पार्टी में कोई फर्क नहीं रहेगा। जिस दिन मुझे दिखाई देगा कि देश की समाज की सेवा दूर गई और सिर्फ सत्ता और पैसा का प्रयास हो रहा है। उसी दिन मैं रुक जाऊंगा। आगे नहीं बढूंगा। क्योंकि मैंने समाज और देश की भलाई के लिए विकल्प देने का सोचा है। मेरा जीवन उन्हीं की भलाई के लिए है।
आज टीम अन्ना का कार्य हम लोगों ने समाप्त किया है। जनलोकपाल के कार्य के लिए टीम अन्ना बना गई थी। सरकार से संबंध् नहीं रखने का निर्णय लिया है। इस कारण आज से टीम अन्ना नाम से चला हुआ कार्य समाप्त हो गया है और अब टीम अन्ना समिति भी समाप्त हुई है। भवदीय,
कि. बा. उपनाम अण्णा हज़ारे
Source : http://news.indiaagainstcorruption.org/annahazaresays/?p=200
मुझे विकल्प देने की बात करने वाले लोगों के सामने जंतर मंतर पर खुलेआम मैंने एक प्रश्न खड़ा किया। आप विकल्प की बात करते हैं। मैं देशभर में दौरे करूंगा। लोगों को जागरूक करूंगा अच्छे सदाचारी, राष्ट्रीय दृष्टिकोण है, सामाजिक दृष्टिकोण है, सेवा भाव है ऐसे लोग संसद में नहीं जाएंगे तब तक बदलाव नहीं आएगा। यह बात मुझे मंजूर है लेकिन-
1. ऐसे लोगों की खोज करने का तरीका क्या होगा?
2. विकल्प देने के लिए पार्टी बनानी होगी। उस पार्टी बनाते समय पार्टी सदस्य चुनने का तरीका क्या होगा?
3. आज अधिकांश पार्टी बोर्ड लगाती हैं। सभासद नोदनी (रजिस्ट्रेशन) का काम चालू है। भ्रष्टाचारी हो, गुंडा हो, व्यभाचारी हो, लूटारू हो इनको न देखते हुए भी सभासद बनाती है। इस प्रकार के सभासद बनाए तो इस आंदोलन का क्या होगा?
4. मैं खुद कोई पक्ष-पार्टी में नहीं बनाऊंगा। मैं चुनाव नहीं लडूंगा। लेकिन जनता के सामने विकल्प देने के लिए जरूर प्रयास करूंगा।
5. आज एक चुनाव के लिए 10 से 15 करोड़ रुपए से भी ज्यादा खर्चा होता है। देश को विकल्प देने के लिए इतना पैसा कहां से लाएंगे?
6. चुनाव में चुनकर आने के बाद उनकी बुद्धि का पालट हो गया तो क्या विकल्प है? कारण, जनता चुनकर देते समय अच्छा उम्मीदवार है यह समझकर ही चुनकर देती है। लेकिन कुर्सी का गुण-धर्म है कि कई लोगों की बुद्धि पलट जाती है और स्वार्थ के कारण वह भ्रष्टाचार करने लगते है। जैसे आज कई पार्टियों में दिखाई दे रहा है। उसके बारे में क्या सोच है? ऐसे लोगों की मानटरिंग करने का तरीका क्या है?
7. आज पकृति और मानवता का दोहन हो रहा है और सरकार उसे नहीं रोक रही। यह देश के लिए बड़ा खतरा है। क्या विकल्प होगा?
8. जंतर मंतर पर जो हजारों लोग आए थे उनको टीम ने पूछा कि विकल्प देना चाहिए या नहीं और सभी ने हाथ ऊपर उठाए। ये अच्छी बात है। लेकिन सिर्फ जंतर मंतर देश नहीं है। देश बहुत बड़ा है। उनकी भी राय लेना जरूरी है। मेरी अपेक्षा है। देश में 6 लाख गांव हैं। इन सभी गांव की ग्रामसभा की ग्रामसभाओं ने अपना सुझाव पारित करना है कि हम विकल्प मांगते है। इसलिए हमारी ग्रामसभा का सुझाव आपको भेजते हैं कि संसद में अच्छे लोग जाए इस बात से हमारी सहमति है। ग्रामसभा संभव नहीं है वहां पर व्यक्ति ने फार्म पर हस्ताक्षर करके कहने है कि हम विकल्प के लिए तैयार है।
9. जिस प्रकार गांव में ग्रामसभा का सुझाव होगा उसी प्रकार नगर परिषद्, नगरपालिका, महापालिका में वार्ड सभा और मोहल्ला सभा का भी सुझाव करना होगा। तब स्पष्ट होगा कि लोकसभा में अच्छे लोगों को भेजने की जनता की तैयारी है।
ऐसा होता है तो मैं अगले डेढ साल देश में सफर करूंगा। और देशवासियों को जगाऊंगा। और जनता से ही अपील करूंगा कि लोकसभा में भेजने के लिए चारित्रशील उम्मीदवार की खोज करो। खोज होने के बाद उनका सेवा भाव, चरित्र, राष्ट्र प्रेम, उनका कार्य उसकी मानटरिंग के लिए हमारे कार्यकर्ता जाएगे। उनकी जांच करेंगे। उसके बाद चयन होगा। मैंने महाराष्ट्र में यह प्रयोग किया है। विधानसभा के 12 लोग मैंने चुने थे। उसमें से 8 लोग चुनकर आए थे।
मैंने संसद में अच्छा उम्मीदवार भेजने का विकल्प देने की बात करते ही कई लोगों ने घोषणा की कि अन्ना ज़ीरो बन गए। मैं तो पहले से ही ज़ीरो हूं, मंदिर में रहता हूं, न धन न दौलत, न कोई पद, अभी भी ज़मीन पर बैठकर सादी सब्जी-रोटी खाता हूं। पहले से ही ज़ीरो है और आखिर तक ज़ीरो रहूंगा। जो पहले से ज़ीरो है उसको ज़ीरो क्या बनाएगे? जिसको कहना है वो कहता रहे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। आजतक 25 साल में मेरी बदनामी करने के लिए कम से कम 5 किताबें लिखी गई। कई अखबार वालों ने बदनामी के लिए अग्रलेख (संपादकीय) लिखे है। लेकिन फक़ीर आदमी की फक़ीरी कम नहीं हुई। इस फक़ीरी का आंनद कितना होता है? यह बदनामी करने वाले लोगों को फक़ीर बनना पड़ेगा तक समझ में आएगा। एक बात अच्छी हुई की जितनी मेरी निंदा हुई। उतनी ही जनता और देश की सेवा करने की शक्ति बढ़ी। आज 75 साल की उम्र में भी उतना ही उत्साह है। जितना 35 साल पहले काम करते वक्त था। देश का भ्रष्टाचार कम करने के लिए जनलोकपाल कानून बनवाने के लिए कई बार आंदोलन हुए। 4 बार अनशन हुए। लेकिन सरकार मानने के लिए तैयार नहीं इसलिए टीम ने निर्णय लिया अनशन रोककर विकल्प देना पड़ेगा।
सरकार से जनलोकपाल की मांग का आंदोलन रुक गया लेकिन आंदोलन समाप्त नहीं हुआ है। पहले सरकार से जनलोकपाल कानून की मांग करते रहे। सरकार नहीं करती इसलिए जनता से ही अच्छे लोग चुनकर संसद में भेजना और जनलोकपाल बनाने का आंदोलन शुरू करने का निर्णय हो गया। अगर जनता ने पीछे डेढ साल से साथ दिया, वह कायम रहा तो जनता के चुने हुए चरित्रशील लोग संसद में भेजेगे। और जनलोकपाल, राइट टू रिजेक्ट, ग्रामसभा को अधिकार, राइट टू रिकॉल जैसे कानून बनवाएंगे। और आने वाले 5 साल में भ्रष्टाचार मुक्त भारत का निर्माण पक्ष और पार्टी से नहीं जन सहभाग से करेंगे। 2014 का चुनाव भ्रष्टाचार मुक्त देश बनाने के लिए जनता के लिए आखिरी मौका है। इस चुनाव के बाद फिर से ऐसा मौका मिलना मुश्किल है। कारण, इस वक्त देश जाग गया है। अभी नहीं तो कभी नहीं। मैंने बार-बार बताया है कि मेरा जीवन समाज और देश सेवा में अर्पण किया है। इस वक्त जनता का साथ नहीं मिला तो नुकसान अन्ना का नहीं जनता का होगा। अन्ना तो एक फक़ीर है और मरते दम तक वो फक़ीर ही रहेगा। मैंने अच्छे लोग चुनकर संसद में भेजने का विकल्प दिया है। लेकिन मैं पक्ष-पार्टी में शामिल नहीं होऊंगा। चुनाव भी नहीं लडूंगा। जनता को जनलोकपाल का कानून देकर मैं महाराष्ट्र में अपने कार्य में फिर से लगूंगा। पार्टी निकालने वाले लोगों को भी मैंने बताया है। पार्टी बनाने के बाद भी यह आंदोलन ही रहे। पहले आंदोलन में सरकार से जनलोकपाल कानून मांग रहे थे। अब आंदोलन जारी रखते हुए जनता के सहयोग से अच्छे लोगों को चुनाव में खड़ा करके संसद में भेजो और कानून बनाओ। दिल और दिमाग में सत्ता न रहे, राज कारण न रहे, यह देश की देशवासियों की सेवा समझकर करो। अगर सत्ता और पैसा दिमाग में आ गया तो दुसरी पक्ष-पार्टी और अपनी पार्टी में कोई फर्क नहीं रहेगा। जिस दिन मुझे दिखाई देगा कि देश की समाज की सेवा दूर गई और सिर्फ सत्ता और पैसा का प्रयास हो रहा है। उसी दिन मैं रुक जाऊंगा। आगे नहीं बढूंगा। क्योंकि मैंने समाज और देश की भलाई के लिए विकल्प देने का सोचा है। मेरा जीवन उन्हीं की भलाई के लिए है।
आज टीम अन्ना का कार्य हम लोगों ने समाप्त किया है। जनलोकपाल के कार्य के लिए टीम अन्ना बना गई थी। सरकार से संबंध् नहीं रखने का निर्णय लिया है। इस कारण आज से टीम अन्ना नाम से चला हुआ कार्य समाप्त हो गया है और अब टीम अन्ना समिति भी समाप्त हुई है। भवदीय,
कि. बा. उपनाम अण्णा हज़ारे
Source : http://news.indiaagainstcorruption.org/annahazaresays/?p=200
5 comments:
ईमानदारी का एफ़ी-डेविट:अन्नापार्टी -रविकर
नई पार्टी बन रही, हुवे पुराने फेल |
अन्ना से चालू करें, राजनीति का खेल |
राजनीति का खेल, समर्पण पूर्ण चाहिए |
सच्चा खरा इमान, प्रमाणित किये आइये |
एफ़ी-डेविट आज, कराकर ले आया हूँ |
दो सौ रुपये खर्च, आज ही भर-पाया हूँ ||
ईमानदार लोगों को पचाना नामुमकिन है लोकतन्त्र में!
इमानदारी से भला, क्या होगी राजनीति
पैसे खर्चा किये बिना, नही मिलेगी जीत,,,,,
RECENT POST...: जिन्दगी,,,,
Respected Dr. Anwer Jamal Sb.
Congrat for the nice and justified analysis of the current issue. All works start from the base and not from the top. Team Anna may be honest in their intentions but their course of action was really bound to fail. Our corrupt leaders are not from Mars or Jupiter, but they are from our own society. And where the whole of the society is corrupt how can we expect our leaders to be clean & honest. This is the mentality of everyone in our society that all the humans must change themselves for a better one except himself, I mean that everyone wants to change others only and forgets to change himself.
Secondly, The sense of accountability before God for our actions has been completely washed out from our society. That’s why nobody can see anything beyond his interest, whether right or wrong. And no law can transform the humans in absence of that sense of accountability. If we really want to bring a change in our society first we much learn and understand the basic and universal realities of life, like Creation Plan of God, The Purpose of our lives, The way to achieve that purpose, Existence of eternal life after death, inescapable system of Reward and punishment of our actions and deeds in our eternal life.
And there is no other way out.
बिल्कुल सही
तर्कसंगत विचार
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