इसमें एक ब्लॉगर को विलेन घोषित करना एक बुनियादी तत्व है। जिसे विलेन घोषित किया जा रहा है, उसका सचमुच विलेन होना ज़रूरी नहीं है।
इसे आम तौर पर पुराने ब्लॉगर इस्तेमाल करते हैं और इसके ज़रिये वे ब्लॉग जगत में अपना क़द ऊंचा करना और उसकी बागडोर अपने हाथों में लेना चाहते हैं। बिल्कुल नया ब्लॉगर प्रायः इसे इस्तेमाल नहीं कर पाता क्योंकि इसके लिए ब्लॉग जगत में बहुसंख्यकों की जनभावनाओं का ज्ञान बहुत ज़रूरी है।
इस तकनीक के तहत पहले से स्थापित एक ब्लॉगर पहले यह जायज़ा लेता है कि किस ब्लॉगर को हिंदी ब्लागर्स के कौन कौन से गुट कितना ज़्यादा नापसंद करते हैं ?
जिस ब्लॉगर को ज़्यादातर गुट नापसंद करते हों, डिज़ायनर ब्लॉगर उसी के विरूद्ध उठ खड़ा होता है और पहले उसे नर्मी से समझाने का दिखावा करता है और इन्कार की दशा में उसे उखाड़ फेंकने के लिए कटिबद्ध हो जाता है। वह उसके सामूहिक बहिष्कार के लिए अपील करता है। इससे बहुत सारे गुटों का समर्थन उसे तुरंत ही मिल जाता है और उन गुटों के सदस्यों की टिप्पणियां भी उसके ब्लॉग पर आने लगती हैं और उसे मार्गदर्शक मान लिया जाता है।
इस तकनीक से एक ब्लॉगर तुरंत ही एक शासक का सा आभासी आनंद पा सकता है। इसके अंतर्गत उसे बहुत से ब्लॉगर्स को टिप्पणियां और ईमेल्स करनी पड़ती है और उन्हें बताना पड़ता है कि वे उसके द्वारा घोषित विलेन ब्लॉगर को टिप्पणी रूपी दाना पानी बिल्कुल भी न दें और लोग तुरंत ही मान लेते हैं क्योंकि वह तो वही बात कह रहा है जो कि वे पहले से ही कर रहे होते हैं। इस तरह ब्लॉग जगत में यह संदेश जाता है कि यह ब्लॉगर बहुसंख्यकों के हितों के लिए आवाज़ उठाता है और इसकी बात में दम है। लोग इसकी बात को मानते हैं।
इसे आम तौर पर पुराने ब्लॉगर इस्तेमाल करते हैं और इसके ज़रिये वे ब्लॉग जगत में अपना क़द ऊंचा करना और उसकी बागडोर अपने हाथों में लेना चाहते हैं। बिल्कुल नया ब्लॉगर प्रायः इसे इस्तेमाल नहीं कर पाता क्योंकि इसके लिए ब्लॉग जगत में बहुसंख्यकों की जनभावनाओं का ज्ञान बहुत ज़रूरी है।
इस तकनीक के तहत पहले से स्थापित एक ब्लॉगर पहले यह जायज़ा लेता है कि किस ब्लॉगर को हिंदी ब्लागर्स के कौन कौन से गुट कितना ज़्यादा नापसंद करते हैं ?
जिस ब्लॉगर को ज़्यादातर गुट नापसंद करते हों, डिज़ायनर ब्लॉगर उसी के विरूद्ध उठ खड़ा होता है और पहले उसे नर्मी से समझाने का दिखावा करता है और इन्कार की दशा में उसे उखाड़ फेंकने के लिए कटिबद्ध हो जाता है। वह उसके सामूहिक बहिष्कार के लिए अपील करता है। इससे बहुत सारे गुटों का समर्थन उसे तुरंत ही मिल जाता है और उन गुटों के सदस्यों की टिप्पणियां भी उसके ब्लॉग पर आने लगती हैं और उसे मार्गदर्शक मान लिया जाता है।
इस तकनीक से एक ब्लॉगर तुरंत ही एक शासक का सा आभासी आनंद पा सकता है। इसके अंतर्गत उसे बहुत से ब्लॉगर्स को टिप्पणियां और ईमेल्स करनी पड़ती है और उन्हें बताना पड़ता है कि वे उसके द्वारा घोषित विलेन ब्लॉगर को टिप्पणी रूपी दाना पानी बिल्कुल भी न दें और लोग तुरंत ही मान लेते हैं क्योंकि वह तो वही बात कह रहा है जो कि वे पहले से ही कर रहे होते हैं। इस तरह ब्लॉग जगत में यह संदेश जाता है कि यह ब्लॉगर बहुसंख्यकों के हितों के लिए आवाज़ उठाता है और इसकी बात में दम है। लोग इसकी बात को मानते हैं।
![]() |
Magic Tricks With Animals |
यह एक तरह का इल्यूज़न और भ्रम होता है। कोई उसकी बात नहीं मानता है बल्कि वह कहता ही ऐसी बात है जिसे लोग उसके कहे बिना भी मानते हैं। जादूगरों की सारी कला ‘इल्यूज़न‘ पर ही टिकी होती है और जो जादूगर जितना बड़ा ‘इल्यूज़न‘ और भ्रम पैदा करता है, वह उतना ही बड़ा जादूगर मान लिया जाता है और उतनी ही ज़्यादा उसकी वाह वाह होती है।
यही इल्यूज़न जब एक डिज़ायनर ब्लॉगर पैदा करता है तो वाह वाह उसके ब्लॉग पर टिप्पणियों की शक्ल में बरसती हैं।
हिंदी ब्लॉगिंग में कई ब्लॉगर्स ने इस तकनीक को आज़माया और अपनी छवि एक मसीहा और नायक की बना ली।
कामयाबी की सौ फ़ी सद गारंटी के बावजूद इस तकनीक का नकारात्मक पक्ष यह है कि इस तकनीक के तहत आदमी को अपने ज़मीर के खि़लाफ़ जाकर बहुसंख्यकों की भावनाओं का साथ देना पड़ता है। कई बार बहुसंख्यक लोग किसी से इसलिए भी ख़फ़ा हो जाते हैं कि वे अपनी कमी, कमज़ोरी और कुरीतियों पर चोट सहन नहीं कर पाते और वे सत्य के लिए प्रतिबद्ध सत्कर्मी ब्लॉगर के विरूद्ध खड़े हो जाते हैं।
ऐसी कोशिशों में डिज़ायनर ब्लॉगर को निजी लाभ तो बेशक मिल जाता है लेकिन पूरे समूह को अंततः नुक्सान ही होता है।
ब्लॉगवाणी के संचालकों ने ब्लॉगवाणी को बंद (अपडेट न) करने का जो निर्णय लिया है। उसके पीछे वास्तव में डिज़ायनर ब्लॉगर्स की महत्वाकांक्षा ही ज़िम्मेदार है। इस नुक्सान की भरपाई के लिए बाद में उन्होंने कई पोस्ट्स लिखकर वापसी के लिए ब्लॉगवाणी की मिन्नतें भी कीं लेकिन उनकी बदतमीज़ियों से आजिज़ ब्लॉगवाणी संचालकों ने उनकी राय को ठकुरा दिया और इस तरह हिंदी ब्लॉगिंग को वे जो नुक्सान पहुंचा चुके थे, वह स्थायी बनकर रह गया।
‘क्रिएट ए विलेन‘ के बजाय अगर ‘सर्च ए विलेन तकनीक‘ पर काम किया जाए तो वह ज़्यादा बेहतर है और उसे एक नया ब्लॉगर भी आसानी से अंजाम दे सकता है और उसमें भी इसी तकनीक की तरह कामयाबी सौ फ़ी सद ही यक़ीनी है।
‘सर्च ए विलेन तकनीक‘
इस तकनीक के अंतर्गत हम दो तकनीकों का संयुक्त अध्ययन करेंगे।
इसमें पहली तकनीक का नाम है ‘हातिम ताई तकनीक‘
और दूसरी का नाम है ‘अवतार तकनीक‘
आगामी पोस्ट में इन दोनों तकनीकों के बारे में विस्तृत चर्चा की जाएगी, इंशा अल्लाह !
यही इल्यूज़न जब एक डिज़ायनर ब्लॉगर पैदा करता है तो वाह वाह उसके ब्लॉग पर टिप्पणियों की शक्ल में बरसती हैं।
हिंदी ब्लॉगिंग में कई ब्लॉगर्स ने इस तकनीक को आज़माया और अपनी छवि एक मसीहा और नायक की बना ली।
कामयाबी की सौ फ़ी सद गारंटी के बावजूद इस तकनीक का नकारात्मक पक्ष यह है कि इस तकनीक के तहत आदमी को अपने ज़मीर के खि़लाफ़ जाकर बहुसंख्यकों की भावनाओं का साथ देना पड़ता है। कई बार बहुसंख्यक लोग किसी से इसलिए भी ख़फ़ा हो जाते हैं कि वे अपनी कमी, कमज़ोरी और कुरीतियों पर चोट सहन नहीं कर पाते और वे सत्य के लिए प्रतिबद्ध सत्कर्मी ब्लॉगर के विरूद्ध खड़े हो जाते हैं।
ऐसी कोशिशों में डिज़ायनर ब्लॉगर को निजी लाभ तो बेशक मिल जाता है लेकिन पूरे समूह को अंततः नुक्सान ही होता है।
ब्लॉगवाणी के संचालकों ने ब्लॉगवाणी को बंद (अपडेट न) करने का जो निर्णय लिया है। उसके पीछे वास्तव में डिज़ायनर ब्लॉगर्स की महत्वाकांक्षा ही ज़िम्मेदार है। इस नुक्सान की भरपाई के लिए बाद में उन्होंने कई पोस्ट्स लिखकर वापसी के लिए ब्लॉगवाणी की मिन्नतें भी कीं लेकिन उनकी बदतमीज़ियों से आजिज़ ब्लॉगवाणी संचालकों ने उनकी राय को ठकुरा दिया और इस तरह हिंदी ब्लॉगिंग को वे जो नुक्सान पहुंचा चुके थे, वह स्थायी बनकर रह गया।
‘क्रिएट ए विलेन‘ के बजाय अगर ‘सर्च ए विलेन तकनीक‘ पर काम किया जाए तो वह ज़्यादा बेहतर है और उसे एक नया ब्लॉगर भी आसानी से अंजाम दे सकता है और उसमें भी इसी तकनीक की तरह कामयाबी सौ फ़ी सद ही यक़ीनी है।
‘सर्च ए विलेन तकनीक‘
इस तकनीक के अंतर्गत हम दो तकनीकों का संयुक्त अध्ययन करेंगे।
इसमें पहली तकनीक का नाम है ‘हातिम ताई तकनीक‘
और दूसरी का नाम है ‘अवतार तकनीक‘
आगामी पोस्ट में इन दोनों तकनीकों के बारे में विस्तृत चर्चा की जाएगी, इंशा अल्लाह !
इस विषय में ये दो पोस्ट भी फायदेमंद हैं :