सोशल नेटवर्किं के असर का जायज़ा लेती हुई सरोज मल्होत्रा की यह रिपोर्ट संक्षेप में बहुत कुछ जानकारी दे रही है :
तेरह जुलाई को मुंबई में बम धमाकों के बाद ट्विटर पर संदेशों की बाढ़ आ गई। धमाकों के बाद सोशल मीडिया न सिर्फ लोगों से जुड़ने का एक जरिया बना, बल्कि सैकड़ों की तादाद में लोग इस मंच पर मदद के लिए आगे आए। अपनों की खैर-खबर लेने के लिए लोगों ने फेसबुक और ट्विटर का सहारा लिया।
कोई डॉक्टरी मदद की पेशकश कर रहा था तो कोई रक्तदान करने को तैयार था। यह साइबर नेटवर्क की पहुंच के कारण ही संभव था कि कुछ ही पल में मदद को इतने हाथ आगे आए। (हियर2हेल्प), (नीड हेल्प) नाम से ट्वीट कर स्वयंसेवक इस मुश्किल घड़ी में मुंबई के साथ खड़े नजर आए। सही मायनों में देखा जाए तो सोशल नेटवर्किग पलक झपकते ही लाखों-करोड़ों लोगों तक अपनी बात तेजी से पहुंचाने का जरिया है। बात अगर सिर्फ ट्विटर की की जाए तो इस माइक्रोब्लॉगिंग साइट पर एक दिन में 20 करोड़ ट्वीट होते हैं। कुछ लोगों के लिए यह महज एक आंकड़ा भर हो सकता है, लेकिन अगर यह कहा जाए कि यह संख्या इतनी है कि एक दिन के ट्वीट्स को पढ़ने में 31 साल का समय लगेगा। इन सबको एक साथ रखा जाए तो पूरे जखीरे की ऊंचाई लगभग 1,470 फुट हो जाएगी, यानी दुनिया की दूसरी सबसे ऊंची इमारतों में से एक के बराबर। तो यह आंकड़ा सोशल नेटवर्क के बढ़ते संसार की ओर इशारा करता है। टाइम पत्रिका के मुताबिक, ट्विटर ने अपने ब्लॉग पर घोषणा की है कि दुनिया भर में ट्विटर पर संदेश भेजने की यह संख्या 2009 में लगभग 20 लाख थी, वहीं पिछले साल लगभग साढ़े छह करोड़ ट्वीट रोजाना हो रहे थे। सोशल नेटवर्किग की दिग्गज फेसबुक के सदस्यों की संख्या 75 करोड़ पार कर चुकी है और उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही यह तादाद एक अरब के जादुई आंकड़े को भी पार कर जाएगी। अगर हम ट्विटर को देखें तो यहां अपनी बात करने के लिए 140 अक्षरों की अपनी सीमा है। यह लगभग उतनी ही है, जो एक फोन के एसएमएस में होती है, लेकिन इसकी ताकत असीम है। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने जब 2008 में अपना चुनावी अभियान शुरू किया तो सोशल नेटवर्किग और ट्विटर को ही अपना औजार बनाया और इस बार भी वे इंटरनेट पर अपने चुनाव प्रचार का बिगुल फूंक चुके हैं। इस दौर में गूगल प्लस भी नया खिलाड़ी बन कर सामने आया है। बड़ी बात यह है कि इस मंच पर अब बात औपचारिक ‘हाय-हैलो’ तक ही सिमट कर नहीं रह गयी है। यहां न केवल गंभीर मुद्दे उठाए जाते हैं, बल्कि उन पर चर्चा भी होती है। अरब देशों में हुए सत्ता परिवर्तन में भी सोशल नेटवर्किग की ताकत का नजारा हम देख ही चुके हैं। जरूरत इस ताकत को समझने व सही दिशा देने की है, क्योंकि यहां खबर जंगल की आग की तरह फैलती है और एक गलत खबर यहां बेहद खतरनाक हो सकती है।
Source : http://www.livehindustan.com/news/tayaarinews/tayaarinews/article1-story-67-67-181018.html
1 comments:
जानकारी के साथ लिखी गई बढ़िया पोस्ट!
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