आज आब ए ज़म ज़म की एक और ही विशेषता के बारे में जानने का मौक़ा हमें तब मिला जबकि हम देखने के लिए तो गए तो कुछ और मिल गई यह पोस्ट ,
आप भी देखें और इसे अपने मुसलमान दोस्तो को इसकी जानकारी दें।
करिश्माई है आब ए जमजम
आबे जमजम पर जापानी वैज्ञानिक का अध्ययन |
हज का मौका आने पर मुझे करिश्माई पानी जमजम की याद ताजा हो जाती है। चलिए मै आपको देता हूं मेरे द्वारा किए गए इसके अध्ययन से जुड़ी जानकारी। 1971 की बात है। मिस्र के एक डॉक्टर ने यूरोपियन प्रेस को लिखा कि मक्का का जमजम पानी लोगों के पीने योग्य नहीं है। मैं तुरंत समझा गया था कि मिस्र के इस डॉक्टर का प्रेस को दिया यह बयान मुसलमानों के खिलाफ पूर्वाग्रह से ग्रसित है। दरअसल इसके इस बयान का आधार था कि काबा समुद्रतल से नीचे है और यह मक्का शहर के बीचोंबीच स्थित है। इस वजह से मक्का शहर का गंदा पानी नालों से इस कुएं में आकर जमा होता रहता है।
यह खबर सऊदी शासक किंग फैसल तक पहुंची। उनको यह बहुत ज्यादा अखरी और उन्होंने मिस्र के इस डॉक्टर के इस प्रोपेगण्डे को गलत साबित करने का फैसला किया। उन्होंने तुरंत सऊदिया के कृषि और जलसंसाधन मंत्रालय को इस मामले की जांच करने और जमजम पानी का एक सैंपल चैक करने के लिए यूरोपियन लेबोरेट्री में भी भेजे जाने का आदेश दिया। मंत्रालय ने जेद्दा स्थित पावर डिजॉलेशन प्लांट्स को यह जिम्मेदारी सौंपी। मैं यहां केमिकल इंजीनियर के रूप में कार्यरत था और मेरा काम समुद्र के पानी को पीने काबिल बनाना था। मुझे जमजम पानी को चैक करने की जिम्मेदारी सौपी गई। मुझे याद है उस वक्त मुझे जमजम के बारे में कोई अंदाजा नहीं था। ना यह कि इस कुएं में किस तरह का पानी है। मैं मक्का पहुंचा और मैंने काबा के अधिकारियों को वहां आने का अपना मकसद बताया। उन्होंने मेरी मदद के लिए एक आदमी को लगा दिया। जब हम वहां पहुंचे तो मैंने देखा यह तो पानी का एक छोटा कुण्ड सा था। छोटे पोखर के समान। 18 बाई 14 का यह कुआं हर साल लाखों गैलन पानी हाजियों को देता है। और यह सिलसिला तब से ही चालू है जब से यह अस्तित्व में आया। यानी कई शताब्दियों पहले हजरत इब्राहीम के वक्त से ही।
मैंने अपनी खोजबीन शुरू की और कुएं के विस्तार को समझने की कोशिश की। मैंने अपने साथ वाले बंदे को कुएं की गहराई मापने को कहा। वह शावर ले गया और पानी में उतरा। वह पानी में सीधा खड़ा हो गया। मैंने देखा पानी का स्तर उसके कंधों से थोड़ा ही ऊपर था। उस शख्स की ऊंचाई लगभग पांच फीट आठ इंच थी। उस शख्स ने सीधा खड़ा रहते हुए उस कुएं में एक कोने से दूसरे कोने की तरफ खोजबीन की कि आखिर इसमें पानी किस तरफ से आ रहा है। पानी की धारा कहां है जहां से पानी निकल रहा है। (उसे पानी में डूबकी लगाने की इजाजत नहीं थी।) उसने बताया कि वह नहीं खोज पाया कि पानी किस जगह से निकलता है।
पानी आने की जगह ना मिलने पर मैंने दूसरा आइडिया सोचा। हमने उस कुएं से पानी निकालने के लिए बड़े पंप लगा दिए ताकि वहां से तेजी से पानी निकल सके और पानी के स्रोत का पता लग सके। मुझे हैरत हुई कि ऐसा करने पर भी हमें इस कुएं में पानी आने की जगह का पता नहीं चल पाया। लेकिन हमारे पास सिर्फ यही एकमात्र तरीका था जिससे यह जाना जा सकता था कि आखिर इस पानी का प्रवेश किधर से है। इसलिए मैंने पंप से पानी निकालने के तरीके को फिर से दोहराया और मैंने उस शख्स को निर्देश दिया कि वह पानी में खड़े रहकर गौर से उस जगह को पहचानने की कोशिश करे। अच्छी तरह ध्यान दें कि कौनसी जगह हलचल सी दिखाई दे रही है। इस बार कुछ समय बाद ही उसने हाथ उठाया और खुशी से झूम उठा और बोल पड़ा-अलहम्दु लिल्लाह मुझे कुएं में पानी आने की जगह का पता चल गया। मेरे पैरों के नीचे ही यह जगह है जहां से पानी निकल रहा है। पंप से पानी निकालने के दौरान ही उसने कुएं के चारों तरफ चक्कर लगाए और उसने देखा कि ऐसा ही कुएं में दूसरी जगह भी हो रहा है। यानी कुएं में हर हिस्से से पानी के निकलने का क्रम जारी है। दरअसल कुएं में पानी की आवक हर पॉइंट से समान रूप से थी और इसी वजह से जमजम के कुएं के पानी का स्तर लगातार एक सा रहता है। और इस तरह मैंने अपना काम पूरा किया और यूरोपियन लेबोरेट्री में जांच के लिए भेजने के लिए पानी का सैंपल ले आया।
काबा से रवाना होने से पहले मैंने वहां के अधिकारियों से मक्का के आसपास के कुओं के बारे में जानकारी ली। मुझे बताया गया कि इनमें से ज्यादातर कुएं सूख चुके हैं। मैं जेद्दा स्थित अपने ऑफिस पहुंचा और बॉस को अपनी यह रिपोर्ट सौंपी। बॉस ने बड़ी दिलचस्पी के साथ रिपोर्ट को देखा लेकिन बेतुकी बात कह डाली कि जमजम का यह कुआं अंदर से रेड सी से जुड़ा हो सकता है। मुझे उनकी इस बात पर हैरत हुई कि ऐसे कैसे हो सकता है? मक्का इस समंदर से करीब 75 किलोमीटर दूर है और मक्का शहर के बाहर स्थित कुएं करीब-करीब सूख चुके हैं।
यूरोपियन लेबोरेट्री ने आबे जमजम के नमूने की जांच की और हमारी लेब में भी इस पानी की जांच की गई। दोनो जांचों के नतीजे तकरीबन समान थे।
आइए मैं आपको जमजम के पानी की चंद खूबियों के बारे में बताता हूं-
कभी नहीं सूखा- जमजम का यह कुआं कभी भी नहीं सूखा। यही नहीं इस कुएं ने जरूरत के मुताबिक पानी की आपूति की है। जब-जब जितने पानी की जरूरत हुई, यहां पानी उपलब्ध हुआ।
- एक सी साल्ट संरचना- इस पानी के साल्ट की संरचना हमेशा एक जैसी रही है। इसका स्वाद भी जबसे यह अस्तित्व में आया तब से एक सा ही है।
- सभी के लिए फायदेमंद- यह पानी सभी को सूट करने वाला और फायदेमंद साबित हुआ है। इसने अपनी वैश्विक अहमियत को साबित किया है। दुनियाभर से हज और उमरा के लिए मक्का आने वाले लोग इसको पीते हैं और इनको इस पानी को लेकर कोई शिकायत नहीं रही। बल्कि ये इस पानी को बड़े चाव से पीते हैं और खुद को अधिक ऊर्जावान और तरोताजा महसूस करते हैं।
- यूनिवर्सल टेस्ट- अक्सर देखा गया है कि अलग-अलग जगह के पानी का स्वाद अलग-अलग होता है लेकिन जमजम पानी का स्वाद यूनिवर्सल है। हर पीने वाले को इस पानी का स्वाद अलग सा महसूस नहीं होता है।
- कोई जैविक विकास नहीं- इस पानी को कभी रसायन डालकर शुद्ध करने की जरूरत नहीं होती जैसा कि अन्य पेयजल के मामले में यह तरीका अपनाया जाता है। यह भी देखा गया है कि आमतौर पर कुओं में कई जीव और वनस्पति पनप जाते हैं। कुओं में शैवाल हो जाते हैं जिससे कुएं के पानी में स्वाद और गंध की समस्या पैदा हो जाती है। लेकिन जमजम के कुए में किसी तरह का जैविक विकास का कोई चिह्न भी नहीं मिला।
शताब्दियों पहले बीबी हाजरा अलै. अपने नवजात बच्चे इस्माइल अलै. की प्यास बुझाने के लिए पानी की तलाश के लिए सफा और मरवा पहाडिय़ों के बीच दौड़ लगाती है। इसी दौरान मासूम इस्माइल अलै. अपनी एडिय़ों को रेत पर रगड़ते हैं। अल्लाह के करम से उस जगह पानी निकलने लगता है। फिर यह जगह कुएं का रूप ले लेती है जो जाना जाता है जमजम का पानी।
रिसर्च- तारिक हुसैन,रियाद और अब मोरक्को की महिला की एक दिलचस्प स्टोरी आब ए जमजम के करिश्मे की दास्तां सुनिए इस मोरक्को की महिला से जो कैसर से पीडि़त थीं। वे अल्लाह के दर पर पहुंची और शिफा की नीयत से आब ए जमजम का इस्तेमाल किया। अल्लाह ने उसे इस लाइलाज बीमारी से निजात दी। मोरक्को की लैला अल हेल्व खुद बता रही है अपनी स्टोरी- नौ साल पहले मुझे मालूम हुआ कि मेरे कैंसर है। सभी जानते है कि इस बीमारी का नाम ही कितना डरावना है और मोरक्को में हम इसे राक्षसी बीमारी के नाम से जानते हैं। अल्लाह पर मेरा यकीन बेहद कमजोर था। मैं अल्लाह की याद से पूरी तरह से गाफिल रहती थी। मैंने सोचा भी नहीं था कि कैंसर जैसी भयंकर बीमारी की चपेट में आ जाऊंगी। मालूम होने पर मुझे गहरा सदमा लगा। मैंने सोचा दुनिया में कौनसी जगह मेरी इस बीमारी का इलाज हो सकता है? मुझे कहां जाना चाहिए? मैं निराश हो गई। मेरे दिमाग में खुदकुशी का खयाल आया लेकिन…..मैं अपने शौहर और बच्चों को बेहद चाहती थी। उस वक्त मेरे दिमाग में यह नहीं था कि अगर मैंने खुदकुशी की तो अल्लाह मुझे सजा देगा। जैसा कि पहले मैंने बताया अल्लाह की याद से मैं गाफिल ही रहती थी। शायद अल्लाह इस बीमारी के बहाने ही मुझे हिदायत देना चाह रहा था।
मैं बेल्जियम गई और वहां मैंने कई डॉक्टरों को दिखाया। उन्होंने मेरे पति को बताया कि पहले मेरे स्तनों को हटाना पड़ेगा, उसके बाद बीमारी का इलाज शुरू होगा। मैं जानती थी कि इस चिकित्सा पद्धति से मेरे बाल उड़ जाएंगे। मेरी भौंहें और पलकों के बाल जाते रहेंगे और चेहरे पर बाल उग जाएंगे। मैं ऐसी जिंदगी के लिए तैयार नहीं थी। मैंने डॉक्टर को इस तरह के इलाज के लिए साफ इंकार कर दिया और कहा कि किसी दूसरी चिकित्सा पद्धति से मेरा इलाज किया जाए जिसका मेरे बदन पर किसी तरह का दुष्प्रभाव ना हो। डॉक्टर ने दूसरा तरीका ही अपनाया। मुझ पर इस इलाज का कोई दुष्प्रभाव नहीं हुआ। मैं बहुत खुश थी। मैं मोरक्को लौट आई और यह दवा लेती रही। मुझे लगा शायद डॉक्टर गलत समझ बैठे और मुझे कैंसर है ही नहीं।
तकरीबन छह महीने बाद मेरा वजन तेजी से गिरने लगा। मेरा रंग बदलने लगा और मुझे लगातर दर्द रहने लगा। मेरे मोरक्कन डॉक्टर ने मुझे फिर से बेल्जियम जाने की सलाह दी। मैं बेल्जियम पहुंची। लेकिन अब मेरा दुर्भाग्य था। डॉक्टर ने मेरे शौहर को बताया कि यह बीमारी मेरे पूरे बदन में फैल गई है। फैंफड़े पूरी तरह संक्रमित हो गए और अब उनके पास इसका कोई इलाज नहीं है। डॉक्टरों ने मेरे पति से कहा कि बेहतर यह है कि आप अपनी बीवी को वापस अपने वतन मोरक्को ले जाएं ताकि वहां आराम से उनके प्राण निकल सके। यह सुन मेरे पति को बड़ा सदमा लगा।
बेल्जियम से लौटते वक्त हम फ्रांस चले गए इस उम्मीद से कि शायद वहां इस बीमारी का इलाज हो जाए। लेकिन फ्रांस में बेल्जियम की चिकित्सा से ज्याद कुछ नहीं मिला। फिर मैंने मजबूरन अस्पताल में भर्ती होकर अपने स्तन हटवाने और सर्जीकल थैरेपी लेने का फैसला किया जिसके बारे में हमें डॉक्टर पहले ही कह चुका था, लेकिन तब मैं तैयार ना थी।
इस बीच मेरे शौहर को खयाल आया कि हम कुछ भूल रहे हैं। कुछ ऐसा जो हरदम हमारे खयालों से दूर रहा है। अल्लाह ने मेरे शौहर के दिल में खयाल पैदा किया कि वे मुझे मक्का स्थित अल्लाह के घर ले जाएं। जहां जाकर वे अल्लाह से दुआ करें। अल्लाह से उनकी बीमारी को दूर करने की इल्तिजा कर सके।
अल्लाहु अकबर, ला इलाहा इलल्लाह (अल्लाह सबसे बड़ा है। अल्लाह के सिवाय कोई इबादत के लायक नहीं) कहते हुए हम पेरिस से मक्का के लिए रवाना हो गए। मैं बेहद खुशी थी क्योंकि मैं पहली बार अल्लाह के घर काबा शरीफ जा रही थी। मैंने पेरिस से पवित्र कुरआन की एक कॉपी खरीद ली थी। हम मक्का पहुंचे। जब मैंने हरम शरीफ में प्रवेश किया और काबा की तरफ मेरी पहली नजर पड़ी तो मैं जोर से रो पड़ी। मैं रो पड़ी क्योंकि मैं शर्मिंदा थी कि मैंने बिना उस मालिक की इबादत के यूं ही अपनी जिंदगी के इतने साल बर्बाद कर दिए। मैंने कहा- ऐ मेरे मालिक मेरा इलाज करने में डॉक्टर असमर्थ हैं। सब बीमारी का इलाज तेरे पास है। तू ही शिफा देने वाला है। मेरे सामने सारे दरवाजे बंद हो गए हैं, सिवाय तेरे दर के। तेरे दर के अलावा मेरा अब कोई ठिकाना नहीं है। अब तो मुझे तेरे ही दर से उम्मीद है। ऐ मेरे मालिक मेरे लिए तू अपना दरवाजा बंद ना कर। मैं काबा के चारों तरफ चक्कर काटती रही और अल्लाह से यह दुआ करती रही। मैंने कहा- मेरे मौला तू मुझे नाउम्मीद और खाली हाथ मत लौटाना।
जैसा कि मैं पहले ही बता चुकी हूं कि मैं अल्लाह और उसकी इबादत के मामले में पूरी तरह दूर रही थी इसलिए मैं उलमा के पास गई और इबादत से जुड़ी किताबें हासिल की जिनसे मैं अच्छी तरह समझ सकूं। उन्होंने मुझे ज्यादा से ज्यादा कुरआन पढऩे का मशविरा दिया। उन्होंने मुझे ज्यादा से ज्यादा जमजम का पानी पीने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि मैं ज्यादा से ज्यादा अल्लाह का नाम लू और मुहम्मद सल्ल. पर दुरूद भेजूं। मैंने इस मुकाम पर शांति और सुकून महसूस किया। मैंने अपने शौहर से होटल में जाकर ठहरने के बजाय हरम शरीफ में ही रुकने की इजाजत चाही। उन्होंने मुझे हरम शरीफ में ठहरने की इजाजत दे दी।
हरम शरीफ में मेरे नजदीक ही कुछ मिस्री और तुर्क की महिलाएं थी। जब उन्होंने मुझे इस हालत में देखा तो मुझसे जाना कि मेरे साथ क्या परेशानी है? मैंने अपनी बीमारी के बारे में उनको बताया और बताया कि मैंने जिंदगी में सोचा भी नहीं था कि मैं कभी अल्लाह के घर काबा शरीफ आऊंगी और उससे इतनी करीब हो पाऊंगी। यह जानकर वे महिलाएं मेरे पास रहीं और उन्होंने अपने-अपने शौहर से मेरे साथ हरम शरीफ में ही ठहरने की इजाजत ले ली। इस दौरान हम बहुत कम सोईं और बहुत कम खाया। लेकिन हमने जमजम का पानी खूब पीया। और जैसा कि हमारे प्यारे नबी. सल्ल. ने फरमाया है कि जमजम का पानी जिस नियत से पीया जाए वैसा ही फायदा पहुंचाता है। यदि इस पानी को बीमारी से निजात की नीयत से पीया जाए तो अल्लाह उसको बीमारी से निजात देता है और अगर आप इसको प्यास बुझाने की नीयत से पीते हैं तो यह आपकी प्यास बुझाता है। यही वजह है कि हमने भूख महसूस नहीं की। हम वहीं रुके रहे और तवाफ करते रहे, कुरआन पढ़ते रहे। हम रात और दिन ऐसा ही करते।
जब मैं हरम आई थी तो बहुत पतली थी। मेरे बदन के उपरी हिस्से में सूजन थी। इस हिस्से में खून और मवाद थी। कैंसर मेरे बदन के ऊपरी हिस्से में पूरी तरह फैल गया था। इस वजह से मेरे साथ वाली बहनें मेरे बदन के ऊपरी हिस्से को जमजम पानी से धोया करती थी। लेकिन मैं बदन के इस हिस्से को छूने से भी डरती थी। अल्लाह की इबादत और उसके प्रति पूरी तरह समर्पण के बावजूद मैं अपनी बीमारी को याद कर भयभीत रहती थी। इसी वजह से मैं अपने बदन को बिना छूए ही साफ करती थी।
पांचवे दिन मेरे साथ रह रही बहनों ने जोर देकर कहा कि मुझे अपने पूरे बदन को जमजम पानी से धोना चाहिए। शुरुआत में तो मैंने ऐसा करने से साफ मना कर दिया। लेकिन मुझे अहसास हुआ मानो कोई मुझ पर दबाव बनाकर ऐसा ही करने के लिए कह रहा हो। मैं जिन अंगों को धोने से बचती थी उनको जमजम से धोने के लिए कोशिश शुरु की। लेकिन मैं फिर घबरा गई लेकिन मैंने फिर से महसूस किया कि मानो कोई मुझ पर दवाब डालकर इन्हें धोने के लिए कह रहा हो। मैं फिर से झिझक गई। तीसरी बार मैंने जोर देकर अपना हाथ मेरे शरीर के ऊपरी हिस्से पर रख दिया और फिर पूरे शरीर पर फिराया। कुछ अविश्वसनीय सा महसूस हुआ। यह क्या? ना सूजन, ना खून और ना ही मवाद? जो कुछ मैंने महसूस किया मैं उस पर भरोसा नहीं कर पाई। मैंने अपने हाथों से अपने बदन के ऊपरी अंगों को फिर से जांचा। सच्चाई यही थी जो मैंने महसूस किया था। मेरे बदन में कंपकंपी छूट गई। अचानक मेरे दिमाग में आया अल्लाह सुब्हान व तआला तो सबकुछ करने की ताकत रखता है। मैंने अपनी साथ की सहेली को मेरे बदन को छूने और सूजन जांचने के लिए कहा। उसने ऐसा ही किया। वे सब अचानक बोल पड़ीं- अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर। मैं अपने शौहर को बताने के लिए होटल की तरफ दौड़ पड़ी। मैंने उनसे मिलते ही कहा- देखो अल्लाह का करम। मैंने उन्हें बताया कि यह सब कैसे हुआ। वे भरोसा ही नहीं कर पाए। वे रो पड़े, फिर रो पड़े। उन्होंने मुझसे कहा कि क्या तुम्हें पता है कि डॉक्टरों का पक्का यकीन था कि तुम सिर्फ तीन हफ्ते में मर जाओगी? मैंने कहा-सब कुछ अल्लाह के हाथ में है और सब कुछ उसी की रजा से होता है। सिवाय अल्लाह के कोई नहीं जानता कि किसी शख्स के साथ भविष्य में क्या होने वाला है।
हम एक हफ्ते तक अल्लाह के घर काबा में ठहरे। मैंने अल्लाह का उसके इस बेहद करम के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया अदा किया। उसके बाद हम पैगंबर मुहम्मद(सल्ल.) की मस्जिद (मस्जिद ए नबवी) के लिए मदीना चले गए। वहां से हम फ्रांस के लिए रवाना हो गए। वहां डॉक्टर्स मुझे देखकर भ्रमित हो गए और उन्हें बेहद आश्चर्य हुआ। उन्होंने उत्सुकता से मुझसे पूछा-आप वही महिला हैं? मैंने फख्र के साथ कहा- हां, मैं वही हूं और यह रहे मेरे शौहर। हम अपने पालनहार की तरफ लौट आए हैं। और अब हम सिवाय एक अल्लाह के किसी और से नहीं डरते। उसी ने मुझे यह नई जिंदगी दी है। डॉक्टर्स ने मुझे बताया कि मेरा केस उनके लिए बड़ा मुश्किल था। फिर डॉक्टर्स ने कहा कि वे मेरी फिर से जांच करना चाहते हैं। लेकिन उन्होंने जांच के बाद कुछ भी नहीं पाया। पहले मुझे बदन में सूजन की वजह से सांस लेने में परेशानी होती थी लेकिन जब मैंने काबा पहुंचकर अल्लाह से शिफा की दुआ की तो मेरी यह परेशानी जाती रही।
मैंने प्यारे नबी (सल्ल.) और उनके साथियों की जीवनियां पढी। यह सब पढ़कर मैं जोर जोर से रो पड़ती- मैंने अपनी अब तक की जिंदगी यूं ही गुजार दी? मैं अब तक अल्लाह और उसके प्यारे रसूल से दूर क्यों रही? यह सब सोच कर कई-कई बार रो पड़ती -मेरे मौला तू मुझे , मेरे शौहर और सारे मुसलमानों को माफ कर दे और मुझे अपनी अच्छी बंदी के रूप में कबूल कर।
किताब Those Who Repented To Allah से
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