अवतार तकनीक
भारतीय मिथक में एक कल्पना ‘अवतार‘ की भी है। जो गुण हातिम ताई में पाए जाते हैं, वे सभी अच्छे गुण अवतार में भी पाए जाते हैं और कुछ गुण अवतार में और भी अधिक होते हैं।
अवतार भी बुरे लोगों का ख़ात्मा करके भले लोगों की सुरक्षा करता है। अवतार भी मदद करता है लेकिन इसकी मदद में संघर्ष और युद्ध का गुण प्रधान होता है। अवतार होगा तो वह लड़ेगा ज़रूर और मारेगा ज़रूर। न लड़े और न मारे तो समझ लीजिए कि यह पात्र अवतार भी नहीं है। आम तौर से राजपूत, गूजर, जाट और पठान आदि जातियों के सदस्य इस तकनीक का अच्छा इस्तेमाल अनायास ही करते देखे गए हैं।
यह तकनीक एक बहुत भारी तकनीक है क्योंकि लड़ना असल काम नहीं है बल्कि यह असल बात है कि किस मक़सद के लिए लड़ा जा रहा है ?
अवतार की लड़ाई मात्र एक लड़ाई नहीं होती बल्कि वह सब लड़ाईयों का अंत करती है। अवतार कभी अपने आप नहीं लड़ता और न ही उसे लड़ने की कोई इच्छा होती है लेकिन दुखी और परेशान हाल सज्जन लोग उसके पास आते हैं और बताते हैं कि बुरे लोग किस किस तरह उन्हें टॉर्चर कर रहे हैं ?
किस तरह वे ईश्वर और धर्म का मज़ाक़ उड़ा रहे हैं ?
किस तरह वे नैतिकता की धज्जियां उड़ा रहे हैं ?
अवतार का मक़सद इन्हीं गुणों की रक्षा करना होता है। इन गुणों की रक्षा के लिए वह बुरे लोगों को उपदेश देता है लेकिन अगर बुरे लोगों को उपदेश से ही सुधरना होता तो उपदेश तो वे उससे पहले भी सुन रहे थे। वे उसका भी मज़ाक़ उड़ाते हैं। पापी लोग समझते हैं कि यह भी उपदेश देने के सिवा कुछ और नहीं कर पाएगा और ऐसा सोचकर वे उसे भी घेर लेते हैं और उससे भिड़ जाते हैं।
उपदेश को बेकार जाता देखकर और ख़ुद को घिरा देखकर अवतार के पास अब कोई और उपाय शेष ही कब रहता है ?
अब एक भयानक रण होता है जिसे हिंदी ब्लॉगिंग की दुनिया में महाभारत का नाम दिया जा सकता है।
पापी वे होते हैं जो युद्ध के बाद लुंज पुंज और हताश-निराश से नज़र आएं जबकि युद्ध के बाद अवतार पहले से ज़्यादा तेजोमय और बलशाली होकर उभरता है।
एक नया ब्लॉगर भी इस ‘अवतार तकनीक‘ का इस्तेमाल कर सकता है लेकिन इसकी बुनियादी शर्तों में से यह है कि शुरूआत लड़ाई से न हो बल्कि उपदेश से हो और मसला बातचीत से सुलझ जाए तो फिर लड़ाई की कोई गुंजाइश ही नहीं है। दूसरी बात यह है कि यह उपदेश और यह लड़ाई सब कुछ नेकी को क़ायम रखने के लिए होनी चाहिए, अपने स्वार्थ के लिए नहीं।
जो अवतार है उसकी जीत निश्चित है चाहे वह अकेला ही लड़े और उसके खि़लाफ़ हज़ारों ब्लॉगर भी एकत्र क्यों न हो जाएं !
जीत वास्तव में सत्य के लिए निश्चित है।
‘सत्यमेव जयते‘
यानि जीत सत्य की होती है और अवतार सत्य के लिए ही लड़ता है तो फिर उसे कौन हरा सकता है ?
सत्य के लिए खड़े होने वाला ब्लॉगर चाहे कितना ही नया क्यों न हो, वह अवश्य जीतेगा। उसी की जीत से पता चलेगा कि हारने वाले ब्लॉगर दुष्ट, पापी और राक्षस हैं। आज की दुनिया में रावण, कंस, मारीच और पूतना यही हैं।
जो लोग इन्हें ऐतिहासिक मानने से इंकार करते हैं उनसे भी हम यही कहेंगे कि ठीक है आप इन्हें ज्यों का त्यों ऐतिहासिक न मानें और ये ऐतिहासिक हैं भी नहीं बल्कि उससे बहुत काल पहले की बातें हैं लेकिन जो जो प्रवृत्तियां इन पात्रों की बताई गई हैं क्या वे प्रवृत्तियां इंसान में मिलती हैं या नहीं ?
क्या हमेशा से इंसान के अंदर और इंसानी समाज के अंदर, दोनों ही जगह सत्य और असत्य का संघर्ष चलता आ रहा है या नहीं ?
अगर सत्य और असत्य का संघर्ष निरंतर चल ही रहा है, अगर भले और बुरे लोगों का वैचारिक युद्ध चल ही रहा है तो वह यहां ब्लॉग जगत में भी अनिवार्य रूप से चलेगा ही और तब आप उस युद्ध से चाहकर भी बच नहीं पाएंगे।
ऐसे मजबूरी के हालात में आपके हाथ में केवल अपनी पोज़िशन तय करना ही होता है कि आप किस ओर से लड़ रहे हैं ?
असत्य की भारी भीड़ की ओर से या सत्य पक्ष के मुठ्ठी भर लोगों की ओर से ?
राक्षसों का दल हमेशा से बड़ा और शक्तिशाली ही रहा है और आज भी ऐसा ही है।
राम जी गए , किशन जी भी चले गए लेकिन यह युद्ध आज भी वर्तमान है। दोनों पक्ष आज भी वर्तमान हैं और आप इन्हीं दोनों में से किसी एक पक्ष का हिस्सा हैं, चाहे आपको पता हो या न हो।
इंसान वही है जो सत्य पक्ष की ओर हो, बाक़ी तो राक्षस हैं या फिर बुद्धिहीन पशु। पशु स्तर की बुद्धि रखने वाले लोग भी अवतार का ही साथ देते हैं और जो अवतार का साथ नहीं देते वे पशुओं से भी गए बीते हैं। दुश्मन के कैंप से भी कुछ ब्लॉगर चोट खाकर या चोट देकर निकल खड़े होते हैं। अवतार उनका भी अच्छा प्रयोग करता है। यही लोग बताते हैं कि पापी का कमज़ोर स्थल कौन सा है ?
एक ज़ुल्म जो अवतार के साथ किया जाता है, वह यह है कि उसके चरित्र पर झूठे लांछन लगाए जाते हैं। लांछन लगाने वाले नीचता की हरेक हद तक गिरकर लांछन लगाते हैं।
इसके बावजूद उसकी लोकप्रियता और मान्यता में कोई अंतर नहीं आता और दुश्मनों का जी जलाने के लिए इतना ही पर्याप्त है।
अवतार को आप एक प्रवृत्ति भी मान सकते हैं, एक ऐसी प्रवृत्ति जो हर ज़माने में रही है और हरेक के अंदर रही है। जो इस प्रवृत्ति को परवान चढ़ाता है उसके उत्कृष्ट गुण पर्दे से निकलकर सामने आ जाते हैं। ये गुण जब साधारण मानवों के सामने आते हैं तो उन्हें ऐसा लगता है जैसे कि वे किसी इंसान को नहीं बल्कि ईश्वर को देख रहे हैं लेकिन हक़ीक़त यह है कि जब मनुष्य के बारे में लोगों को ऐसा लगने लगे तो तभी यह समझना चाहिए कि मनुष्य ने अब अपनी मनुष्यता को प्राप्त कर लिया है। योग्यता और अवसर ईश्वर ने सबको दे रखा है, जो इंसान अपनी हक़ीक़त को पाना चाहे, पा सकता है।
अवतार कभी डरता नहीं, थकता नहीं, भागता नहीं, हारता नहीं और मरता नहीं।
अवतार हमेशा अपना मक़सद पूरा करता है और वह मक़सद होता है सज्जनता की रक्षा करना और धर्म की स्थापना करना।
अवतार का मक़सद ही पवित्र नहीं होता बल्कि उसके वे साधन भी पवित्र होते हैं जिनके ज़रिये वह अपने मक़सद को हासिल करता है।
जो ब्लॉगर इन उसूलों की पाबंदी के साथ ब्लॉगिंग करता है और दुष्टों का विनाश कर देता है, वह वास्तव में मानवता की सच्ची सेवा करता है।
‘अवतार तकनीक‘ का सहारा लेकर एक डिज़ायनर ब्लॉगर सफलतापूर्वक राक्षस ब्लॉगर्स का मान मर्दन करता है और ज़िंदगी भर उन्हें फिर किसी और से टकराने के लायक़ नहीं छोड़ता। किसी युद्ध के विजेता की तरह ही उसे हमेशा याद रखा जाता है। भले लोग उसे भलाई से याद रखते हैं और राक्षस पक्ष के लोग उसे नफ़रत के साथ और चिढ़ते हुए याद रखते हैं। उसे भुलाना मुमकिन नहीं रह जाता।
यही सफलता है।
सफलता की गारंटी सत्य देता है और अवतार तकनीक में सत्य का ही प्रयोग होता है। इसीलिए हिंदी ब्लॉगिंग में अवतार तकनीक को सफलता के लिए रामबाण की तरह अचूक माना जाता है।
भारतीय मिथक में एक कल्पना ‘अवतार‘ की भी है। जो गुण हातिम ताई में पाए जाते हैं, वे सभी अच्छे गुण अवतार में भी पाए जाते हैं और कुछ गुण अवतार में और भी अधिक होते हैं।
अवतार भी बुरे लोगों का ख़ात्मा करके भले लोगों की सुरक्षा करता है। अवतार भी मदद करता है लेकिन इसकी मदद में संघर्ष और युद्ध का गुण प्रधान होता है। अवतार होगा तो वह लड़ेगा ज़रूर और मारेगा ज़रूर। न लड़े और न मारे तो समझ लीजिए कि यह पात्र अवतार भी नहीं है। आम तौर से राजपूत, गूजर, जाट और पठान आदि जातियों के सदस्य इस तकनीक का अच्छा इस्तेमाल अनायास ही करते देखे गए हैं।
यह तकनीक एक बहुत भारी तकनीक है क्योंकि लड़ना असल काम नहीं है बल्कि यह असल बात है कि किस मक़सद के लिए लड़ा जा रहा है ?
अवतार की लड़ाई मात्र एक लड़ाई नहीं होती बल्कि वह सब लड़ाईयों का अंत करती है। अवतार कभी अपने आप नहीं लड़ता और न ही उसे लड़ने की कोई इच्छा होती है लेकिन दुखी और परेशान हाल सज्जन लोग उसके पास आते हैं और बताते हैं कि बुरे लोग किस किस तरह उन्हें टॉर्चर कर रहे हैं ?
किस तरह वे ईश्वर और धर्म का मज़ाक़ उड़ा रहे हैं ?
किस तरह वे नैतिकता की धज्जियां उड़ा रहे हैं ?
अवतार का मक़सद इन्हीं गुणों की रक्षा करना होता है। इन गुणों की रक्षा के लिए वह बुरे लोगों को उपदेश देता है लेकिन अगर बुरे लोगों को उपदेश से ही सुधरना होता तो उपदेश तो वे उससे पहले भी सुन रहे थे। वे उसका भी मज़ाक़ उड़ाते हैं। पापी लोग समझते हैं कि यह भी उपदेश देने के सिवा कुछ और नहीं कर पाएगा और ऐसा सोचकर वे उसे भी घेर लेते हैं और उससे भिड़ जाते हैं।
उपदेश को बेकार जाता देखकर और ख़ुद को घिरा देखकर अवतार के पास अब कोई और उपाय शेष ही कब रहता है ?
अब एक भयानक रण होता है जिसे हिंदी ब्लॉगिंग की दुनिया में महाभारत का नाम दिया जा सकता है।
पापी वे होते हैं जो युद्ध के बाद लुंज पुंज और हताश-निराश से नज़र आएं जबकि युद्ध के बाद अवतार पहले से ज़्यादा तेजोमय और बलशाली होकर उभरता है।
एक नया ब्लॉगर भी इस ‘अवतार तकनीक‘ का इस्तेमाल कर सकता है लेकिन इसकी बुनियादी शर्तों में से यह है कि शुरूआत लड़ाई से न हो बल्कि उपदेश से हो और मसला बातचीत से सुलझ जाए तो फिर लड़ाई की कोई गुंजाइश ही नहीं है। दूसरी बात यह है कि यह उपदेश और यह लड़ाई सब कुछ नेकी को क़ायम रखने के लिए होनी चाहिए, अपने स्वार्थ के लिए नहीं।
जो अवतार है उसकी जीत निश्चित है चाहे वह अकेला ही लड़े और उसके खि़लाफ़ हज़ारों ब्लॉगर भी एकत्र क्यों न हो जाएं !
जीत वास्तव में सत्य के लिए निश्चित है।
‘सत्यमेव जयते‘
यानि जीत सत्य की होती है और अवतार सत्य के लिए ही लड़ता है तो फिर उसे कौन हरा सकता है ?
सत्य के लिए खड़े होने वाला ब्लॉगर चाहे कितना ही नया क्यों न हो, वह अवश्य जीतेगा। उसी की जीत से पता चलेगा कि हारने वाले ब्लॉगर दुष्ट, पापी और राक्षस हैं। आज की दुनिया में रावण, कंस, मारीच और पूतना यही हैं।
जो लोग इन्हें ऐतिहासिक मानने से इंकार करते हैं उनसे भी हम यही कहेंगे कि ठीक है आप इन्हें ज्यों का त्यों ऐतिहासिक न मानें और ये ऐतिहासिक हैं भी नहीं बल्कि उससे बहुत काल पहले की बातें हैं लेकिन जो जो प्रवृत्तियां इन पात्रों की बताई गई हैं क्या वे प्रवृत्तियां इंसान में मिलती हैं या नहीं ?
क्या हमेशा से इंसान के अंदर और इंसानी समाज के अंदर, दोनों ही जगह सत्य और असत्य का संघर्ष चलता आ रहा है या नहीं ?
अगर सत्य और असत्य का संघर्ष निरंतर चल ही रहा है, अगर भले और बुरे लोगों का वैचारिक युद्ध चल ही रहा है तो वह यहां ब्लॉग जगत में भी अनिवार्य रूप से चलेगा ही और तब आप उस युद्ध से चाहकर भी बच नहीं पाएंगे।
ऐसे मजबूरी के हालात में आपके हाथ में केवल अपनी पोज़िशन तय करना ही होता है कि आप किस ओर से लड़ रहे हैं ?
असत्य की भारी भीड़ की ओर से या सत्य पक्ष के मुठ्ठी भर लोगों की ओर से ?
राक्षसों का दल हमेशा से बड़ा और शक्तिशाली ही रहा है और आज भी ऐसा ही है।
राम जी गए , किशन जी भी चले गए लेकिन यह युद्ध आज भी वर्तमान है। दोनों पक्ष आज भी वर्तमान हैं और आप इन्हीं दोनों में से किसी एक पक्ष का हिस्सा हैं, चाहे आपको पता हो या न हो।
इंसान वही है जो सत्य पक्ष की ओर हो, बाक़ी तो राक्षस हैं या फिर बुद्धिहीन पशु। पशु स्तर की बुद्धि रखने वाले लोग भी अवतार का ही साथ देते हैं और जो अवतार का साथ नहीं देते वे पशुओं से भी गए बीते हैं। दुश्मन के कैंप से भी कुछ ब्लॉगर चोट खाकर या चोट देकर निकल खड़े होते हैं। अवतार उनका भी अच्छा प्रयोग करता है। यही लोग बताते हैं कि पापी का कमज़ोर स्थल कौन सा है ?
एक ज़ुल्म जो अवतार के साथ किया जाता है, वह यह है कि उसके चरित्र पर झूठे लांछन लगाए जाते हैं। लांछन लगाने वाले नीचता की हरेक हद तक गिरकर लांछन लगाते हैं।
इसके बावजूद उसकी लोकप्रियता और मान्यता में कोई अंतर नहीं आता और दुश्मनों का जी जलाने के लिए इतना ही पर्याप्त है।
अवतार को आप एक प्रवृत्ति भी मान सकते हैं, एक ऐसी प्रवृत्ति जो हर ज़माने में रही है और हरेक के अंदर रही है। जो इस प्रवृत्ति को परवान चढ़ाता है उसके उत्कृष्ट गुण पर्दे से निकलकर सामने आ जाते हैं। ये गुण जब साधारण मानवों के सामने आते हैं तो उन्हें ऐसा लगता है जैसे कि वे किसी इंसान को नहीं बल्कि ईश्वर को देख रहे हैं लेकिन हक़ीक़त यह है कि जब मनुष्य के बारे में लोगों को ऐसा लगने लगे तो तभी यह समझना चाहिए कि मनुष्य ने अब अपनी मनुष्यता को प्राप्त कर लिया है। योग्यता और अवसर ईश्वर ने सबको दे रखा है, जो इंसान अपनी हक़ीक़त को पाना चाहे, पा सकता है।
अवतार कभी डरता नहीं, थकता नहीं, भागता नहीं, हारता नहीं और मरता नहीं।
अवतार हमेशा अपना मक़सद पूरा करता है और वह मक़सद होता है सज्जनता की रक्षा करना और धर्म की स्थापना करना।
अवतार का मक़सद ही पवित्र नहीं होता बल्कि उसके वे साधन भी पवित्र होते हैं जिनके ज़रिये वह अपने मक़सद को हासिल करता है।
जो ब्लॉगर इन उसूलों की पाबंदी के साथ ब्लॉगिंग करता है और दुष्टों का विनाश कर देता है, वह वास्तव में मानवता की सच्ची सेवा करता है।
‘अवतार तकनीक‘ का सहारा लेकर एक डिज़ायनर ब्लॉगर सफलतापूर्वक राक्षस ब्लॉगर्स का मान मर्दन करता है और ज़िंदगी भर उन्हें फिर किसी और से टकराने के लायक़ नहीं छोड़ता। किसी युद्ध के विजेता की तरह ही उसे हमेशा याद रखा जाता है। भले लोग उसे भलाई से याद रखते हैं और राक्षस पक्ष के लोग उसे नफ़रत के साथ और चिढ़ते हुए याद रखते हैं। उसे भुलाना मुमकिन नहीं रह जाता।
यही सफलता है।
सफलता की गारंटी सत्य देता है और अवतार तकनीक में सत्य का ही प्रयोग होता है। इसीलिए हिंदी ब्लॉगिंग में अवतार तकनीक को सफलता के लिए रामबाण की तरह अचूक माना जाता है।
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