किताब पढ़ रहा था
चिड़िया के जोर से
चहचाहाने की आवाज़ ने
ध्यान बरामदे के कोने की ओर
आकर्षित किया
उठ कर देखा कोने में
बिजली के मीटर के पास
चिड़िया घोंसले में
सहमी हुयी बैठी थी
मुझे देख चुप हुयी
कातर दृष्टी से देखने लगी
सामने दीवार एक सांप
चिड़िया को निवाला
बनाने की तैयारी में जुटा,
लपलपाती दृष्टी गढ़ाए बैठा था
मैंने कोने में पडी लकड़ी उठायी
सांप को भगाया
तभी एक मित्र का आना हुआ
वहाँ खड़े होने का कारण पूंछा
सारा वाकया उसे बताया
वो हंस कर कहने लगा
निरंतर कई सांप दुनिया में घूमते
अबलाओं पर गिद्ध सी दृष्टी रखते
कब निवाला बनाए मौक़ा ढूंढते
कितनी अबलाएँ इन सापों के
चुंगुल में फंसती,छटपटाती,चिल्लाती
किसी को उनकी आवाज़ सुनायी नहीं देती
कुछ अस्मत खोती
कुछ जान से हाथ धोती
चिडया सी भाग्यशाली बहुत कम होती
फिर भी किसी कान पर जूँ
नहीं रेंगती
जनता मूक दृष्टी से देखती रहती
सरकार सोती रहती
सापों की संख्या दिन रात बढ़ती रहती
13—03-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
1 comments:
raajendr bhai kmal ka likh rhe ho bhaai bdhai . akhtar khan akela kota rajthan
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