बिना स्याही के उसने क्या लिख दिया ......
एक दिन
उसने
बढ़ी मासूमियत से
मेरी
हथेली पर
अपनी
नाज़ुक सी
उँगलियों से
गुदगुदाते हुए
लिखा .........
मुझे प्यार है तुमसे
हाँ मुझे
प्यार है तुमसे .....
जाने
केसी स्याही थी वोह
मेरी हथेली पर
वोह लफ्ज़
दिखे भी नही
मिटे भी नहीं
बस
यह लिखावट
ना जाने क्यूँ आज भी
मेरे दिल पर नक्श हो गयी है ...............अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
उसने
बढ़ी मासूमियत से
मेरी
हथेली पर
अपनी
नाज़ुक सी
उँगलियों से
गुदगुदाते हुए
लिखा .........
मुझे प्यार है तुमसे
हाँ मुझे
प्यार है तुमसे .....
जाने
केसी स्याही थी वोह
मेरी हथेली पर
वोह लफ्ज़
दिखे भी नही
मिटे भी नहीं
बस
यह लिखावट
ना जाने क्यूँ आज भी
मेरे दिल पर नक्श हो गयी है ...............अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
3 comments:
khubsurat...behtareen post
आपने भी आज तो गजब लिख दिया है जी .
वाह, सुन्दर रचना...प्रेम की स्याही कब दिखती है वह तो सीधे दिल को रंग देती है ...
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