असभ्य टिप्पणियां प्रकाशित करने के बारे में आपका विचार क्या है ? Ideal Blogging

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  • Friday, January 6, 2012
  • by
  • DR. ANWER JAMAL
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  • लोग विपरीत विचार सामने आते ही या तो पलायन का रूख़ इख्तियार कर लेते हैं या फिर फ़र्ज़ी आईडी से अपमानजनक टिप्पणियां करने लगते हैं ताकि विपरीत विचार वाले का हौसला तोड़ा जा सके। यह प्रक्रिया विचार विमर्श के अनुकूल नहीं है। जो लोग विचार विमर्श का दंभ भरते हैं वे भी ऐसी असभ्य टिप्पणियां प्रकाशित करते देखे जाते हैं।
    जब हौसला नहीं है विपरीत विचार को सहन करने का तो फिर ब्लॉगिंग जैसे खुले मंच पर ये लोग आते ही क्यों हैं ?
    सुज्ञ जी कहते हैं कि
    मुझे आश्चर्य होता है कि जब हमनें ब्लॉग रूपी ‘खुला प्रतिक्रियात्मक मंच’ चुना है तो अब परस्पर विपरित विचारों से क्षोभ क्यों? यह मंच ही विचारों के आदान प्रदान का है। मात्र जानकारी अथवा सूचनाएं ही संग्रह करने का नहीं। आपकी कोई भी विचारधारा इतनी सुदृढ नहीं हो सकती कि उस पर प्रतितर्क ही न आए।
    हम उनके कथन से सहमत हैं .
    इस पर हमारा कहना यह है कि
    ब्लॉगिंग में विचार देना और तर्क-प्रतितर्क करना अच्छी बात है लेकिन यह पढ़े लिखे और सभ्य लोगों का मंच है। इसलिए भाषा शैली में सभ्यता और शालीनता ज़रूर होनी चाहिए। इससे एक अच्छा माहौल बनेगा, किसी भी विचार विमर्श के लिए ऐसा माहौल बनाए रखना बहुत ज़रूरी है।
    इस मुददे पर आपके विचार भी आमंत्रित हैं।

    7 comments:

    shyam gupta said...

    पहले सभ्यता की परिभाषा तो निश्चित हो जाय ....

    vidya said...

    बिलकुल....
    सभ्यता हर जगह होनी चाहिए..अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बदतमीजी के अधिकार नहीं देती..
    एक बात का सुकूं है के यहाँ हम खुद हद तय कर सकते है...कमेन्ट मोडरेशन के ज़रिये...
    अब सारे जहाँ को सुधार तो नहीं जा सकता.
    सादर.

    सुज्ञ said...

    डॉ अनवर जमाल साहब,

    सबसे पहले तो मेरी आपत्ति दर्ज़ करें कि आपने मेरी अनुमति लिए बिना मेरी पोस्ट को आपके 'कमेंट गार्डन' में प्रकाशित किया, आपने किसी भी उद्देश्यपूर्ती के लिए उसका उपयोग किया हो, मैं सहर्ष अनुज्ञा भी देता पर सदव्यवहार के नाते अनुमति लेना जरूरी है।

    @ "लेकिन यह पढ़े लिखे और सभ्य लोगों का मंच है। इसलिए भाषा शैली में सभ्यता और शालीनता ज़रूर होनी चाहिए। इससे एक अच्छा माहौल बनेगा"

    यहाँ मैं भी आपके कथन से सहमत हूं लेकिन क्या अनवर साहब आप स्वयं सभ्यता और शालीनता रख पाते है?

    यह है अंश आपकी टिप्पणियों के…………

    @ सुज्ञ जी ! आपकी ऊर्जा को हरगिज़ व्यर्थ न जाने दिया जायेगा .
    आपके लिए मैंने थोड़ी सी डिफरेंट स्टोरी लिखी है .
    हरेक सीन उसी तरह आगे बढ़ रहा है.
    कहानी के मुताबिक़ अभी आपका हौसला बढ़ाया जायेगा और यह तब होगा जबकि ...
    खैर , हम और आप बात करेंगे तभी तो शाकाहार का प्रचार होगा ?
    http://niraamish.blogspot.com/2011/01/blog-post_29.html?showComment=1297168411139#c6611298185131349714

    और यह…………

    @ सुज्ञ जैन जी ! आप डरपोक न होते तो अपनी पहचान और पता जाहिर कर देते ।
    आपने खुद को बहुत दिनों तक वैदिक भाइयों की आड़ में छिपाए रखा । अब आपका मत भी पता चल चुका है मन भी ।
    बहुत शौक है आपको भांडे फूटते देखने का ?
    क्या हमेँ आपका शौक़ पूरा करने का अवसर मिल सकता है ?
    वादा करता हूँ आपको निराश नहीं करूँगा ।
    तब पता चलेगा कि आपको सत्य के प्रति कितनी जिज्ञासा है ?
    दूसरों के घरों में आग लगती देखकर पहुँच जाते हैं साथ सेकने ।
    अब दिखावा करते रहना निर्भय बने रहने का ।
    http://bharatbhartivaibhavam.blogspot.com/2010/11/blog-post_18.html?showComment=1290195509885#c8270110706785631754

    और यह भी…………
    @ सुज्ञ जी ! आप………… 3- आप अपने विचार के अनुसार अक्सर मेरा 'दुराग्रह' (?) दूर करने की कोशिश करते रहते हैं , लेकिन मैंने हमेशा आपकी बेजा गुस्ताख़ियों को नजरअंदाज ही किया है कभी आपके दुराग्रह को दूर नहीं किया जबकि मैंने आपको भंडाफोड़ू का उत्साहवर्धन करते हुए भी पाया है ।
    क्या कभी आपको डर नहीं लगा कि अगर अनवर ने मेरा दुराग्रह दूर कर दिया तो क्या होगा ?
    http://zealzen.blogspot.com/2010/11/scapegoat.html?showComment=1290192616454#c8379557011545314610

    अब इसे क्या समझा जाय, धमकियाँ या शालीनता?

    मैं अपने कथन पर आज भी अविचलित हूँ, विपरित विचारों का सम्मान होना ही चाहिए पर इस तरह की भाषा व विचारों का?????

    सुज्ञ said...

    डॉ अनवर जमाल साहब,

    पहले भी इस मंच से आप मेरी व्यक्तिगत आलोचना करते रहे है। वस्तुत: मैं आलोचनाओं का प्रतिकार करता भी नहीं, मात्र अपने ब्लॉग्स पर प्रत्युत्तर देता हूँ। किन्तु यहां तो आपने अप्रत्यक्ष रूप से मेरे ब्लॉग सद्भाव वाले कथनो को मेरे ही विरूद्ध प्रयोग करने का कार्य किया है, इसी आशय की टिप्पणी आप मेरे ब्लॉगों पर भी छोड आए है। इसलिए आज यह कहना जरूरी हो गया था।

    DR. ANWER JAMAL said...

    @ भाई सुज्ञ जी ! आपने हमारी जिन टिप्पणियों का लिंक दिया है। उन्हें देखा गया तो पाया कि वे शालीनता से दी गईं चेतावनियां हैं ताकि आप चेत जाएं।
    आपने कमेंट गार्डन की किसी पोस्ट का ज़िक्र भी किया है लेकिन उसका लिंक नहीं दिया है। क
    कृप्या उसका भी लिंक दीजिए ताकि आपकी आपत्ति का निराकरण किया जा सके।

    @@ विद्या जी ! आपकी सहमति के लिए धन्ययवाद !
    आपकी सलाह भी ठीक है।

    Asha Lata Saxena said...

    टिप्पणी तो शालीनता से ही की जाना चाहि|पर्सनल आक्षेपो का क्या लाभ यूँ ही मनो में दरार हो जाती है |जो मिठास स्नेहपूर्ण व्यवहार में होती है एक दूसरे को ताना मारने में नहीं |
    अच्छा लेख |
    आशा

    चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

    सभ्य समाज में असभ्यता का क्या काम????

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