शुरू में जरूर लगा कि अन्ना आंदोलन बड़े ताकतवर तरीके से उठा है, लेकिन लगातार आंतरिक मतभेदों और विवादों ने इसकी छवि को काफी धक्का पहुंचाया है। बेशक टीम अन्ना कहे कि सब कुछ ठीक है, लेकिन इनसे यह सवाल पूछा जाता रहेगा कि बिना ‘हेल्दी इंटरनल डेमोक्रेसी’ के आप देश के लोकतंत्र की कमियां दूर करने की बात कैसे कर सकते हैं? इस टीम के कई अहम सदस्य बीते कुछ महीनों में इसे छोड़ चुके हैं। अगर वे गलत थे, तो आपने उन्हें आंदोलन में साथ क्यों लिया? अगर ऐसा नहीं है, तो क्या आंदोलन किसी एक या दो लोगों की मर्जी का गुलाम तो बनने नहीं जा रहा? टीम अन्ना के मौजूदा और पूर्व सदस्यों से बात करने पर एक बात तो साफ होती है कि टीम में सहमति और तालमेल का भारी अभाव है, जो किसी लक्ष्य को पाने में बड़ी बाधा साबित हो सकता है। बहुत से ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर चर्चा जरूरी है, क्योंकि लोकतंत्र में जो काम हमारी राजनीतिक पार्टियों को करना था, वे कर न सकीं। देश ने उन्हें छह दशक से ज्यादा का समय दिया, जो काफी है।
ऐसे में टीम अन्ना की अगुआई में इन मुद्दों को उठाया और लागू कराया जा सकता है। पर सवाल यह है कि क्या रथ का सारथी कृष्ण है या नहीं, क्योंकि रथ पर सवार अजरुन रूपी जनता सिर्फ प्रदर्शन कर सकती है, मंच तो किसी कृष्ण को ही तैयार करना होगा। टीम अन्ना का फेल होना देश की राजनीतिक पार्टियों को मनमानी करने का एक्सटेंशन जैसा होगा, जो कितना लंबा खिंचेगा, कहा नहीं जा सकता।
आईबीएन खबर में अफसर अहमद
ऐसे में टीम अन्ना की अगुआई में इन मुद्दों को उठाया और लागू कराया जा सकता है। पर सवाल यह है कि क्या रथ का सारथी कृष्ण है या नहीं, क्योंकि रथ पर सवार अजरुन रूपी जनता सिर्फ प्रदर्शन कर सकती है, मंच तो किसी कृष्ण को ही तैयार करना होगा। टीम अन्ना का फेल होना देश की राजनीतिक पार्टियों को मनमानी करने का एक्सटेंशन जैसा होगा, जो कितना लंबा खिंचेगा, कहा नहीं जा सकता।
आईबीएन खबर में अफसर अहमद
2 comments:
सही आकलन ||
अन्ना जी,की टीम के लोग अन्ना जी का मुखोटा लगाकर अपना उल्लू सीधा कर रहे है,,,,
RECENT POST,,,इन्तजार,,,
Post a Comment