हम अपने सभी भाई बहनों को रक्षा बन्धन के मौक़े पर मुबारकबाद पेश करते हैं. आज हमारे बेटे ने हमें बताया कि उनके स्कूल में बच्चों ने राखी बनाई, एक्टीविटी के तौर पर. हमारे बेटे की बनाई राखी को उनकी क्लास के टीचर के अलावा दूसरी क्लास के टीचर्स ने भी सराहा. अपनी राखी बनाने में एक प्यार का ख़ास अहसास है लेकिन आजकल बाज़ार का चलन है और रिश्तों का अहसास ग़ायब सा हो चला है. लोग बाज़ार में जाकर यह भी नहीं देखते कि कौन सी राखी भारत में बनी है और कौन सी राखी चीन से आई है, जो हमारी सीमा पर क़ब्ज़ा किये बैठा है. ऐसे अवसरों पर सामूहिक रूप से चीनी माल का बहिष्कार किया जाये तो चीन कुछ दबाव महसूस करे. हमारा खयाल अच्छा लगे तो इस पर भी अमल करें.
बाज़ार हमारा है और वह चीनी राखियों से अटा पड़ा है. उन्हें वे दुकानदार बेच रहे हैं जो वंदे मातरम् कहते हैं और अक्सर दूसरों की देशभक्ति पर सवाल खड़े करते रहते हैं. ऐसे लोग देश का कोई भला नहीं कर सकते.
अपने बाज़ार से अपने देस का माल ही खरीदें.
देसी राखी से रक्षा बन्धन मनाएं.
बहन की रक्षा के साथ देश की रक्षा का फ़र्ज़ भी अदा करें.
2 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल { बुधवार21/08/2013} को
चाहत ही चाहत हो चारों ओर हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः3 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra
hindiblogsamuh.blogspot.com
सही कहा है
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