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क्या गरीब और आम व्यक्ति को इन प्रश्नों का कभी जबाब मिलेगा ?


दोस्तों, मेरी खुली चुनौती है कि-कुछ ऐसे प्रश्न जिनका जबाब किसी राज्य सरकार व मोदी सरकार के साथ ही क्षेत्रीय  पार्षद, विधायक और सांसद से नहीं मिल सकता हैं, क्योंकि यहाँ सब कुछ  गोल-माल या जुगाड़ है.

1. क्या दिल्ली में उत्तरी, पूर्वी और दक्षिणी नगर निगम और दिल्ली पुलिस (क्षेत्रीय थाना) को बिना रिश्वत दिए अपना मकान बनाना संभव है ? यदि हाँ  तो कैसे ?

 

2. यदि किसी गरीब और आम व्यक्ति की अपने क्षेत्रीय पार्षद, विधायक और सांसद से कोई जान-पहचान या अन्य किसी के द्वारा सम्पर्क (जुगाड़ या सिफारिश) नहीं है तो क्या वो व्यक्ति अपना मकान (निर्माण कार्य) नहीं बना सकता है?

 

3. यदि उत्तरी, पूर्वी और दक्षिणी नगर निगम और दिल्ली पुलिस का कहना है  कि ऐसा कुछ (रिश्वत का लेन-देन) नहीं है तो आज उत्तम नगर सहित पूरी दिल्ली में क्षेत्रीय पार्षद, विधायक और सांसद सहित सभी राजनैतिक पार्टियों के जानकार व्यक्तियों और बिल्डरों द्वारा किया जा रहा निर्माण कैसे हो रहा है?

 

4. यदि आप अगर नीचे से लेकर ऊपर तक उनका मुंह मीठा (रिश्वत का लेन-देन) न करवाओ तो क्या आपके मकान को गिरा दिया जाता है या निर्माण कार्य बंद नहीं  करवा दिया जाता है?

 

5. क्या पूरी दिल्ली के क्षेत्रीय पार्षद, विधायक और सांसद के साथ ही दिल्ली नगर निगम का कोई अधिकारी इसका जबाब देगा ?

 

यदि हम सूत्रों की बात माने तो पूरे उत्तम नगर के पिनकोड 110059 (जिस में चार विधानसभा का क्षेत्र आता है) में लगभग 2000 मकानों का अवैध निर्माण हो रहा है. इस तरह से पूरी दिल्ली में एक अनुमान के अनुसार लगभग डेढ़ लाख मकानों का निर्माण हो रहा है. सूत्रों का कहना है कि-अपने मकानों का निर्माण करने के लिए आपकी ऊँची पहुँच होनी चाहिए, नहीं तो आप अपना मकान ही बना सकते हैं. अवैध निर्माण कार्यों को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेश केवल कागजों पर सिमटकर रह जाते हैं या किसी गरीब व आम व्यक्ति पर ही लागू होते हैं. जो बेचारा अपना पेट काट-काटकर एक-एक पैसा जोड़कर अपने लिए छत बनाने की कोशिश करता है. अपनी राजनीति चमकाने के लिए राजनैतिक पार्टियों को कुछ कालोनियां अवैध नजर आती है और उनके लिए विकास कार्य अवैध नजर आते हैं. लेकिन जब इनको वहां से वोट लेनी होती है तब उन अवैध कालोनियों में रहने वालों की वोट क्यों नहीं अवैध दिखती हैं ?

दोस्तों, मैं तो अपने क्षेत्र के सांसद, विधायक, चारों पार्षद से पूछ रहा हूँ. देखते हैं क्या कोई जबाब मिलेगा या नहीं ? आप भी पूछे (जब मौत एक दिन आनी है फिर डर कैसा? सौ दिन घुट-घुटकर मरने से तो एक दिन शान से जीना कहीं बेहतर है. मेरा बस यहीं कहना है कि-आप आये हो, एक दिन लौटना भी होगा. फिर क्यों नहीं तुम ऐसा करो कि तुम्हारे अच्छे कर्मों के कारण तुम्हें पूरी दुनिया हमेशा याद रखें. धन-दौलत कमाना कोई बड़ी बात नहीं, पुण्य कर्म कमाना ही बड़ी बात है) और यदि इस पोस्ट का विषय सही लगा हो तो इस पोस्ट को शेयर करें.                                                                                             

(पार्षद-अंजू गुप्ता, मोहन गार्डन, वार्ड नं. 125)

 (पार्षद-नरेश बाल्यान, नवादा, वार्ड नं. 126)

(पार्षद-शिवाली शर्मा, उत्तम नगर, वार्ड नं. 127)

 (पार्षद-देशराज राघव, बिंदापुर, वार्ड नं. 128)




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मैंने "आम आदमी पार्टी" से कहा कि-मुझे आपसे झूठ बोलकर "टिकट" नहीं लेना है

दोस्तों, मैंने "आम आदमी पार्टी" का उम्मीदवार चयन प्रक्रिया के तहत अपना फार्म भरकर भेजा है और उसके साथ अपना निम्नलिखित कवरिंग पत्र भेजा है. जिसमें मेरी संक्षिप्त विचारधारा के साथ थोडा सा जीवन परिचय देने का प्रयास किया है. आमने-सामने बैठने पर और उसकी विचारधारा से अवगत हुआ जा सकता है. लेकिन पत्र के माध्यम से अपनी विचारधारा से अवगत करवाने का प्रयास किया है. अब आप ही पढकर बताएँगे कि आम आदमी पार्टी के संयोजक श्री अरविन्द केजरीवाल तक अपनी विचारधारा कितने सही तरीके से पहुँचाने में कितना कामयाब हुआ हूँ या नहीं. अपनी विचारधारा के साथ अपने पत्र और आपके बीच में कोई बाधा न बनते हुए, फ़िलहाल अपनी लेखनी को यहीं पर विराम देता हूँ.
 
मिलें:-  श्री दिलीप पांडे (सचिव) चुनाव समिति
आम आदमी पार्टी
मुख्य कार्यालय:ए-119, ग्राऊंड फ्लोर, कौशाम्बी, गाजियाबाद-201010.
www. aamaadmiparty.org  Email id  :  info@aamaadmiparty.org
Helpline    :  9718500606 Facebook :  AamAadmiParty 
Twitter : @AamAadmiParty 


विषय:- उत्तम नगर विधानसभा उम्मीदवार के नाम का प्रस्ताव पत्र
स्क्रीनिंग कमेटी और श्री अरविन्द केजरीवाल जी,  

श्रीमान जी, मैं सबसे पहले आपको यहाँ एक बात साफ कर दूँ कि मुझे आपसे उत्तमनगर विधानसभा के उम्मीदवार के लिए "टिकट" झूठ बोलकर नहीं लेनी है. इसलिए मैंने अपने फार्म में अधिक से अधिक सही जानकारी देने का प्रयास किया है. मेरी ईमानदारी और सच्चाई के कारण यदि आप टिकट नहीं देते हैं तब मुझे कोई अफ़सोस नहीं होगा,  मगर आपसे झूठ बोलकर या गलत तथ्य देकर टिकट लेना मेरे "जीवन का लक्ष्य" नहीं है. झूठ बोलकर वो व्यक्ति टिकट लेगा, जिसको अपनी ईमानदारी और सच्चाई पर पूरा विश्वास नहीं होगा. माना कि सच्चाई की डगर पर चलना कठिन होता है. कहा जाता है कि-आसान कार्य तो सभी करते हैं, मगर मुश्किल कार्य कोई-कोई करता है. इसी सन्दर्भ में एक कहावत भी है कि-गिरते हैं मैदान-ए-जंग में शेर-ए-सवार, वो क्या खाक गिरेंगे, जो घुटनों के बल चलते हैं. आप की पार्टी (आम आदमी पार्टी) द्वारा विधानसभा उम्मीदवारों का विवरण प्राप्त करने के लिए प्रारूप (फार्म-ए) में यदि राज्य चुनाव आयोग के चुनाव उम्मीदवार के फार्म में शामिल कुछ प्रश्नों (कोलम) एवं प्रक्रिया को और जोड़ दिया जाता तो आपको हर विधानसभा क्षेत्र से आने वाले उम्मीदवारों के बारे में काफी अधिक जानकारी मिल सकती थी. चलिए अब जो हो गया है. उसको पीछे छोड़ते हुए अब आप पूरी दिल्ली के विधानसभा क्षेत्रों के लिए "अच्छे उम्मीदवारों" का चयन कर पाएँ. यहीं मेरी दिली तमन्ना है. आज अच्छे पदों हेतु केवल डिग्री या व्यक्ति के सामान्य ज्ञान की ही परीक्षा ली जाती है. आदमी में "इंसानियत"  है या नहीं. इस बात की परख नहीं की जाती है और इसका नतीजा अच्छा नहीं होता है. 
श्रीमान जी, जिस प्रकार लेखक मुंशी प्रेमचन्द की कहानी "परीक्षा" के पात्र बूढ़े जौहरी (पारखी) सरदार सुजान सिंह ने अपनी जिस सूझ-बुझ से रियासत के दीवान पद के लिए बुगलों (उम्मीदवारों) की भीड़ में से हंस (जो अपने विशिष्ट गुणों और सौंदर्य के आधार पर अलग होता है) यानि पंडित जानकीनाथ जैसे न्याय करने वाले ईमानदार, कर्त्तव्यनिष्ट उम्मीदवार का चयन कर लिया था. जिसके ह्रदय में साहस, आत्मबल और उदारता का वास था. ऐसा आदमी गरीबों को कभी नहीं सताएगा. उसका संकल्प दृढ़ है तो उसके चित्त को स्थिर रखेगा. वह किसी अवसर पर चाहे किसी से धोखा खा जाये. परन्तु दया और अपने धर्म से कभी पीछे नहीं हटेगा. उसी प्रकार आप और आपकी स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्य यदि पूरी दिल्ली की विधानसभाओं के लिए "हंस" जैसे उम्मीदवारों का चयन कर पाए तो पूरी दिल्ली में आपकी पार्टी का राज हो सकता है. इस समय आप दो धारी तलवार की धार पर खड़े है. यदि आप की पार्टी ने किसी चमचागिरी या दबाब या लालचवश,  भेदभाव की नीति में उलझकर या धर्म या जाति समीकरण के आंकड़ों में उलझकर गलत व्यक्ति (बुगले) का चयन कर लिया तो आपको राष्ट्रीय स्तर पर काफी नुकसान होगा और आपकी छवि खराब होगी.  आपका सर्वप्रथम लक्ष्य अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझने वाला, दूरदृष्टि के साथ ही देश/समाज सेवा की भावना रखने वाले ईमानदार व्यक्ति (उम्मीदवार) का चयन करना ही होना चाहिए. जैसे अर्जुन को केवल मछली की आँख दिखाई देती थी. चुनाव में "हार" और "जीत" को इतने मायने न दें. बल्कि अपने आदर्शों और सिध्दांतों के साथ चुनाव मैदान में अपने उम्मीदवारों को उतारे. इससे आम आदमी प्रभावित होगा. बाकी जैसी आपकी मर्जी, क्योंकि आपकी पार्टी है. आप चाहे जैसे करें. यह आपके विवेक पर निर्भर है. 
श्रीमान जी, वर्तमान सरकार और विपक्ष के साथ ही सारे देश के आम आदमियों की निगाह आपकी तरफ है कि आप अपनी पार्टी के लिए कैसे-कैसे उम्मीदवारों का चयन करते हैं. यदि आप मात्र सत्ता पर कब्जा जमाने की अति महत्वकांक्षा चलते "हंस" (अच्छे उम्मीदवार) नहीं चुन पाएँ तो काफी लोगों की आपसे उम्मीदें टूट जायेंगी और यदि आप बिना सत्ता की भूख रखकर चुनाव मैदान में अच्छे उम्मीदवार(हंस) उतारने का उद्देश्य पूरा कर पाएँ तो आप एक अच्छे जौहरी बनकर अपना थाल मोतियों से भरा पायेंगे और आपके साथ जो आम आदमी सच में व्यवस्था बदलने के इच्छुक है, वो आपके साथ जुड जायेंगे. फ़िलहाल वो आपकी पार्टी की कार्यशैली पर अपनी गिध्द दृष्टि जमाए हुए है और देखना चाहते हैं कि आपकी कथनी और करनी में कहीं कोई अंतर तो नहीं आ रहा है. इसलिए आपको उम्मीदवार(हंस) चयन प्रक्रिया में अधिक से अधिक पारदर्शिता का उदाहरण पेश करते हुए एक-एक कदम फूंक-फूंककर रखना होगा. आपका उठाया एक गलत कदम देश के भविष्य को अंधकार में डूबा देगा.
श्री अरविन्द केजरीवाल जी, श्री अन्ना हजारे जी द्वारा किये प्रथम आंदोलन अप्रैल 2011 से आपको देश का बच्चा-बच्चा जानने लगा है. तब से काफी लोग मुझे उत्तम नगर का अरविन्द केजरीवाल कहते हैं और कहने को तो कुछ लोग "गरीबों का मसीहा" भी कहते हैं, क्योंकि पिछले 18 साल से अपनी पत्रकारिता के माध्यम से "आम आदमी" की आवाज को एक बुलंद आवाज देने का प्रयास करता आ रहा हूँ और आज तक जो कोई मेरे दरवाजे पर किसी भी प्रकार की मदद के लिए आया है. वो खाली हाथ या निराश नहीं लौटा है. यहाँ एक बात यह भी है कि मैंने कभी किसी की धन से मदद नहीं की है, बस अपनी कलम से और सही जानकारी देकर उसको जागरूक करके उसे उसकी समस्या का समाधान पाने की प्रक्रिया समझाई है और हाँ,  इसके अलावा ना मैं गरीबों का मसीहा हूँ और ना उत्तम नगर का अरविन्द केजरीवाल हूँ, क्योंकि हर व्यक्ति को अपने-अपने कर्मों द्वारा उसके शरीर को एक पहचान मिलती है.  मैं अपनी पूर्व की "सिरफिरा" और वर्तमान की "निर्भीक"  पहचान से ही संतुष्ट हूँ. आपको सनद होगा कि जो आप कर सकते हैं, वो मैं नहीं कर सकता हूँ और जो मैं कर सकता हूँ, वो आप नहीं कर सकते हैं. इसी प्रकार हर व्यक्ति को भगवान ने अपने-अपने कर्म करने के लिए हमारी- आपकी  "आत्मा" को मिटटी शरीर में समावेश करके भेजा है.  इसलिए कहाँ आप और कहाँ मैं यानि कहाँ राजा भोज, कहाँ गंगू तेली.  मैं अपने आपको एक तुच्छ-सा जीव मानता हूँ. जिसे उस परम पिता परमेश्वर ने धरती पर जन्म लेकर नेक कार्य करने का आदेश दिया है. मैं उसी आदेश का पालन करता हूँ. मैंने कोई स्कूली/कालेज की ज्यादा किताबें नहीं पढ़ी है मगर "इंसानियत" (मानवता) नामक पाठ पढ़ा है और उसके अनुसार कार्य करने की कोशिश करता हूँ. 
यदि आप और आपकी पार्टी सचमुच में भारत देश को उन्नति व खुशहाली की ओर ले जाना चाहते हैं और आप अपनी पार्टी के संविधान के लिए बहुत अधिक कठोर और ठोस निर्णय ले सकते हैं.  तब मैं आपकी दिल्ली विधानसभा 2013 और लोकसभा 2014 के लिए ऐसा घोषणा पत्र तैयार करवा सकता हूँ.  जो पूरे भारत वर्ष की सभी राजनीतिक पार्टियों से अलग और निराला होगा. लेकिन इसके लिए बहुत ही त्यागी, तपस्वी और योगी उम्मीदवारों की जरूरत होगी और उनको तलाशने के लिए काफी प्रयास करने होंगे. हमारे भारत वर्ष में ऐसे व्यक्तियों को खोजना असंभव नहीं है. हमारे भारत देश में एक से एक बढकर त्यागी, बलिदानी और तपस्वी पैदा हुए है और आज भी है. ऐसा भारत देश का इतिहास गवाही दे रहा है.  बस इसके लिए आपके पास दृढ़ निश्चय होने के साथ वो जोश, वो जुनून होना चाहिए. मेरी इस बात को "सच" में बदलने के लिए आपको अपना कुछ कीमती समय मुझे देना होगा. उपरोक्त पत्र के माध्यम से अपने विचारों की अभिव्यक्ति करते हुए अपनी विचारधारा आप तक पहुँचाना ही मेरा "जीवन का लक्ष्य" है. अपने क्रांतिकारी विचारों और अपनी ईमानदारी से चलाई लेखनी से आपको या आपकी पार्टी को नीचा दिखाना या अपमान करना मेरा उद्देश्य नहीं है.  मेरे विचारों के भावों को अपने विवेकानुसार अच्छी तरह से समझने का प्रयास करें.  

पूरी पोस्ट नीचे दिए लिंक पर क्लिक करके पढ़ें. मेरा विचार है कि आपको मेरे विचारों को जानने का अवसर मिलेगा, कुछ हिंदी के मुहावरे और कहावतें आदि के बारे में मालूम होने के साथ ही देश की राजनीति में क्यों "अच्छे व्यक्तियों" की आवश्यकता है. इसका भी पता चलेगा. 

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गुड खाना और गुलगुलों से परहेज करना

जब भारत देश में हिंदी दिवस आता है तब एक दिन के लिए कलाकार (अभिनेता / अभिनेत्री), पत्रकार, कवि और साहित्यकार हिंदी का गुणगान करते नजर आते हैं और अपनी टिप्पणी/विचारों को ऐसे व्यक्त करते हैं. जैसे उन से ज्यादा बड़ा तो कोई हिंदी प्रेमी इस भारत वर्ष में कोई हैं ही नहीं. उसके बाद 364 दिन हिंदी को अपनी दुश्मन के समान समझते हैं. हिंदी के बड़े-बड़े कलाकार (अभिनेता / अभिनेत्री), पत्रकार, कवि और साहित्यकार आदि अपने नाम को सोशल वेबसाईट (फेसबुक,गूगल,ट्विट्टर आदि) पर (अपनी प्रोफाइल में) हिंदी में लिखना तक पसंद नहीं करते हैं, क्योंकि कहीं लोग उनको "अनपढ़ और गंवार" ना समझे.
काश ! हमारे देश के सभी बुद्धिजीवी भी हिंदी के प्रति पूरे ईमानदार होकर ज्यादा से ज्यादा हिंदी का प्रयोग करते हुए अपनी सभी बातें/विचार/रचना हिंदी में फेसबुक/टिवटर आदि पर डाले. तब कुछ हिंदी की स्थिति में सुधार संभव है. आज हिंदी की इतनी बुरी स्थिति हिंदी के चाहने वालों की वजह से है. कई तो कहते हैं कि हम हिंदी से अपनी माँ जितना प्यार करते है.मगर फेसबुक/टिवटर आदि पर अपने विचार/बातें/रचनाएँ अंग्रेजी या रोमन लिपि में डालते हैं यानि गुड खाते हैं और गुलगुलों से परहेज करते हैं. 

 मैंने कई अवसरों पर देखा है कि कई कलाकार (अभिनेता / अभिनेत्री), पत्रकार, कवि और साहित्यकार आदि कमाई तो हिंदी की खाते हैं और जब सोशल वेबसाइट पर अपना स्टेटस (गरिमा) दिखाने के लिए हिंदी से मुँह छुपाते नजर आते हैं. इसमें एक आध अपवाद छोड़ दें, क्योंकि कई लोगों फेसबुक आदि पर हिंदी लिखने से संबंधित जानकारी नहीं होती है. वरना.....अधिकांश के पास समय ही नहीं होता है, क्योंकि हिंदी लिखने के लिए थोड़ी ज्यादा मेहनत और समय की जरूरत है.
फेसबुक  प्रयोगकर्त्ताओं के लिए जानकारी:-
प्रश्न:-मुझे देवनागरी में नाम लिखने से सर्च करने में परेशानी होती है....इसलिए मैंने रोमन में लिखा हुआ है.....जो भी नाम देवनागरी में लिखे हैं, वो सर्च करने पर नहीं मिलते हैं.  
उत्तर:-अपनी प्रोफाइल में हिंदी में नाम कैसे लिखें:-आप सबसे पहले "खाता सेट्टिंग " में जाए. फिर आप "नेम एडिट" को क्लिक करें. वहाँ पर प्रथम,मिडिल व लास्ट नाम हिंदी में भरें और डिस्प्ले नाम के स्थान पर अपना पूरा नाम हिंदी में भरें. उसके बाद नीचे दिए विकल्प वाले स्थान में आप अपना नाम अंग्रेजी में भरने के बाद ओके कर दें. अब आपको कोई भी सर्च के माध्यम से तलाश भी कर सकता है और आपका नाम हर संदेश और टिप्पणी पर देवनागरी हिंदी में भी दिखाई देगा. अब बाकी आपकी मर्जी. हिंदी से प्यार करो या बहाना बनाओ.

पूरा लेख यहाँ  सिरफिरा-आजाद पंछी: गुड खाना और गुलगुलों से परहेज करना पर क्लिक करके पढ़ें.
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जब प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज न हो

आज हाई प्रोफाइल मामलों को छोड़ दें तो किसी अपराध की प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करा लेना ही एक "जंग" जीत लेने के बराबर है. आज के सम.......पूरा लेख यहाँ रमेश कुमार सिरफिरा: जब प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज न हो पर क्लिक करके पढ़ें.
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खुद मिटा देंगे लेकिन "जन लोकपाल बिल" लेकर रहेंगे


दोस्तों ! आखिरकार टीम अन्ना को जंतर-मंतर पर अनशन करने की अनुमति मिल गई है। मिली जानकारी के मुताबिक, शनिवार को टीम अन्ना को 25 जुलाई से 8 अगस्त तक दिल्ली के जंतर-मंतर पर अनशन करने के लिए दिल्ली पुलिस की इजाजत मिल गई है । गौरतलब है कि दो दिन पहले दिल्ली पुलिस ने मानसून सेशन के हवाला देते हुए टीम अन्ना को अनुमति देने से मना कर दिया था। टीम अन्ना के अहम अरविंद केजरीवाल के अनुसार दिल्ली पुलिस के अधिकारियों से शनिवार को मुलाकात के बाद यह परमिशन दी गई है। वहीं दिल्ली पुलिस का कहना है कि कुछ शर्तों के साथ टीम अन्ना को यह अनुमति दी गई है । 
दोस्तों ! आप यह मत सोचो कि- देश ने हमारे लिए क्या किया है, बल्कि यह सोचो हमने देश के लिए क्या किया है ? इस बार आप यह सोचकर "आर-पार" की लड़ाई के लिए श्री अन्ना हजारे जी के अनशन में शामिल (अपनी-अपनी योग्यता और सुविधानुसार) हो. वरना वो दिन दूर नहीं. जब हम और हमारी पीढियां कीड़े-मकोड़ों की तरह से रेंग-रेंगकर मरेगी. आज हमारे देश को भ्रष्टाचार ने खोखला कर दिया है. माना आज हम बहुत कमजोर है, लेकिन "एकजुट" होकर लड़ो तब कोई हम सबसे ज्यादा ताकतवर नहीं है. 
 इतिहास गवाह रहा कि जब जब जनता ने एकजुट होकर अपने अधिकारों को लेने के लिए लड़ाई (मांग) की है, तब तब उसको सफलता मिली है. लड़ो और आखिरी दम तक लड़ों. यह मेरी-तुम्हारी लड़ाई नहीं है. हम सब की लड़ाई है. मौत आज भी आनी है और मौत कल भी आनी है. मौत से मत डरो. मौत एक सच्चाई है. इसको दिल से स्वीकार करो.  
            पूरा आलेख यहाँ सिरफिरा-आजाद पंछी: लड़ो और आखिरी दम तक लड़ों क्लिक करके पढ़ें.
अगर हम अपना-अपना राग और अपनी अपनी डपली बजाते रहे तो हमें कभी कोई भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कानून नहीं मिलेगा. अब यह तुम्हारे ऊपर है कि गीदड़ की मौत मरना चाहते हो या शेर की मौत मरना चाहते हो. सब जोर से कहो कि- खुद मिटा देंगे लेकिन "जन लोकपाल बिल" लेकर रहेंगे. जो हमें जन लोकपाल बिल नहीं देगा तब हम यहाँ(ससंद) रहने नहीं देंगे. 
 निम्नलिखित समाचार भी पढ़ें   भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे की लड़ाई
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हम तो चले तिहाड़ जेल दोस्तों !

 आज में सरकार से इस पोस्ट के माध्यम से पूछना/जानना  चाहता हूँ कि अगर एक सभ्य ईमानदार व्यक्ति दिल्ली पुलिस के अधिकारियों को रिश्वत नहीं दें तो क्या वो अधिकारी मात्र एक महिला के कहने से बिना सबूतों के ही गम्भीर आरोप लगाकर मामला दर्ज कर सकता है ? क्या किसी व्यक्ति का पक्ष सिर्फ रिश्वत देने पर ही सुना जायेगा? क्या सारी महिलाएं सच्ची है और सारे पुरुष झूठे व अत्याचारी होते हैं? 
मेरा भारत देश की न्याय व्यवस्था से विश्वास ही उठ गया है. अब आप मुझे बेशक मेरे खिलाफ झूठी एफ.आई.आर के संदर्भ में फांसी की सजा दे दें. मैं वोट की राजनीति खेलने वाले देश में अपनी हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में "अपील" या "दया याचिका" भी नहीं लगाऊंगा. भारत देश की न्याय व्यवस्था अफजल गुरु और कसाब जैसे अपराधी के अधिकारों की रक्षा करती है. यहाँ संविधान की धाराओं का लाभ सिर्फ अमीरों व राजनीतिकों मिलता है या दिया जाता है. जिनके पास वकीलों की मोटी-मोटी फ़ीस देने के लिए और संबंधित अधिकारियों को मैनेज करने के लिए लाखों-करोड़ों रूपये है. गरीबों को "न्याय" देना न्याय व्यवस्था के बस में ही नहीं है. मुझे आज भारत देश की न्याय व्यवस्था की कार्य शैली पर बहुत अफ़सोस हो रहा है. न्याय व्यवस्था की अब तक की कार्यशैली के कारण भविष्य में मुझे न्याय मिलने की उम्मीद भी नहीं है. अपने खिलाफ दर्ज केस के संदर्भ में बस इतना ही कहना है कि -
१. हाँ, मैंने बिना दहेज लिये ही कोर्ट मैरिज करके बहुत बड़ा अपराध किया है.
२. हाँ, मैंने कोर्ट मैरिज करके अपने माता-पिता का दिल दुखाकर भी बहुत बड़ा अपराध किया है.
३. हाँ, मैंने अपनी पत्नी की बड़ी-बड़ी गलती पर उसको माफ़ करके बहुत बड़ा अपराध किया है.
४. हाँ, मैंने अपनी पत्नी को मारने के उद्देश्य से कभी भी ना छूकर बहुत बड़ा अपराध किया है.
५. हाँ, मैंने गरीब होते हुए भी भारत देश की न्याय व्यवस्था से "न्याय" की उम्मीद करने का अपराध किया है. 
 तिहाड़ जेल में हमारे पास न मोबाईल होगा और न फेसबुक होगी. तब मेरे पास क्या होगा, यह जानने के लिए नीचे लिखा पत्र देखें.
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क्या दिल्ली हाईकोर्ट के जज पूरी तरह से ईमानदार है ?


दोस्तों ! एक बार जरा मेरी जगह अपने-आपको रखकर सोचो और पढ़ो कि-एक पुलिस अधिकारी रिश्वत न मिलने पर या मिलने पर या सिफारिश के कारण अपने कार्य के नैतिक फर्जों की अनदेखी करते हुए मात्र एक महिला के झूठे आरोपों(बिना ठोस सबूतों और अपने विवेक का प्रयोग न करें) के चलते हुए किसी भी सभ्य, ईमानदार व्यक्ति के खिलाफ झूठा केस दर्ज कर देता है. फिर सरकार द्वारा महिला को उपलब्ध सरकारी वकील, जांच अधिकारी, जज आदि को मुहँ मांगी रिश्वत न मिले. इसलिए सिर्फ जमानत देने से इंकार कर देता है. उसके बाद क्या एक सभ्य व्यक्ति द्वारा देश की राष्ट्रपति और दिल्ली हाईकोर्ट से इच्छा मृत्यु की मांग करना अनुचित है. एक गरीब आदमी कहाँ से दिल्ली हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के अपनी याचिका लगाने के लिए पैसा लेकर आए ? क्या वो किसी का गला काटना शुरू कर दें ? क्या एक पुलिस अधिकारी या सरकारी वकील या जांच अधिकारी या जज की गलती की सजा गरीब को मिलनी चाहिए ? हमारे भारत देश में यह कैसी न्याय व्यवस्था है ? क्या हमारे देश में दीमक की तरह फैले भ्रष्टचार ने हमारी न्याय व्यवस्था को खोखला नहीं कर दिया है ? क्या आज हमारी अव्यवस्थित न्याय प्रणाली सभ्य व्यक्तियों को भी अपराधी बनने के लिए मजबूर नहीं कर रही है ? इसका जीता-जागता उदाहरण मेरा "सच का सामना" ब्लॉग है और मेरे द्वारा दिल्ली हाई कोर्ट को लिखा पत्र (नीचे) देखें. क्या दिल्ली हाईकोर्ट में कार्यरत सभी जज पूरी तरह से देश और देश की जनता के प्रति ईमानदार है ? मेरे पत्र को देखे और उसके साथ स्पीड पोस्ट(http://sach-ka-saamana.blogspot.in/2011/06/blog-post_18.html) की रसीद को देखें. मेरे द्वारा 137 दस्तावेजों के साथ 15 फोटो वाला 760 ग्राम का पैकेट 13/06/2011 को भेजने के बाद भी आज तक संज्ञान नहीं लिया या यह कहूँ देश के राजस्व की उन्हें कोई चिंता नहीं है. उनको सिर्फ अपनी सैलरी लेने तक का ही मतलब है. क्या देश की अदालतों में भेदभाव नहीं नीति नहीं अपनाई जाती है. अगर मेरे जैसा ही अगर किसी महिला ने एक पेज का भी एक पत्र दिल्ली हाईकोर्ट में लिख दिया होता तो दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ न्यायादिश के साथ अन्य जज भी उसके पत्र पर संज्ञान लेकर वाहवाही लूटने में लग जाते है, इसके अनेकों उदाहरण अख़बारों में आ चुके है. क्या भारत देश में एक सभ्य ईमानदार व्यक्ति की कोई इज्जत नहीं ? 
भारत देश की न्याय व्यवस्था ने मेरे परिवार के साथ हमेशा अन्याय किया है. आजतक इन्साफ मिला ही नहीं है और न भविष्य में किसी गरीब को देश की अदालतों से इंसाफ मिलने की उम्मीद है.
मेरे प्रेम-विवाह करने से पहले और बाद के जीवन में आये उतराव-चढ़ाव का उल्लेख करती एक आत्मकथा पत्नी और सुसरालियों के फर्जी केस दर्ज करने वाले अधिकारी और रिश्वत मांगते सरकारी वकील,पुलिस अधिकारी के अलावा धोखा देते वकीलों की कार्यशैली,भ्रष्ट व अंधी-बहरी न्याय व्यवस्था से प्राप्त अनुभवों की कहानी का ही नाम है "सच का सामना"आज के हालतों से अवगत करने का एक प्रयास में इन्टरनेट संस्करण जिसे भविष्य में उपन्यास का रूप प्रदान किया जायेगा.
1. एक आत्मकथा-"सच का सामना"
http://sach-ka-saamana.blogspot.com/2011/03/blog-post.html
2. मैं देशप्रेम में "सिरफिरा" था, "सिरफिरा" हूँ और "सिरफिरा" रहूँगा
http://sach-ka-saamana.blogspot.com/2011/03/blog-post_14.html
3. मैंने अपनी माँ का बहुत दिल दुखाया है
http://sach-ka-saamana.blogspot.com/2011/04/blog-post.html
4. मेरी आखिरी लड़ाई जीवन और मौत की बीच होगी
http://sach-ka-saamana.blogspot.com/2011/04/blog-post_22.html
5. प्यार करने वाले जीते हैं शान से, मरते हैं शान से
http://sach-ka-saamana.blogspot.com/2011/04/blog-post_29.html
6. माननीय राष्ट्रपति जी मुझे इच्छा मृत्यु प्रदान करके कृतार्थ करें
http://sach-ka-saamana.blogspot.com/2011/06/blog-post.html
7. मैंने पत्नी की जो मानसिक यातनाएं भुगती हैं
http://sach-ka-saamana.blogspot.com/2011/06/blog-post_12.html
8.कोई खाकी वर्दी वाला मेरे मृतक शरीर को न छूने की कोशिश भी न करें
http://sach-ka-saamana.blogspot.com/2011/06/blog-post_13.html
9. एक पत्र दिल्ली के उच्च न्यायालय में लिखकर भेजा है कि-
मैं खाली हाथ आया और खाली हाथ लौट जाऊँगा
ज्यादा पढ़ने के लिए किल्क करके पढ़ें.
http://sach-ka-saamana.blogspot.com/2011/06/blog-post_18.html
10. भगवान महावीर स्वामी की शरण में गया हूँ
http://sach-ka-saamana.blogspot.in/2011/09/blog-post.html
11. मेरी लम्बी जुल्फों का कल "नाई" मालिक होगा.
http://sach-ka-saamana.blogspot.in/2011/11/blog-post.html
12.सरकार और उसके अधिकारी सच बोलने वालों को गोली मारना चाहते हैं.
http://sach-ka-saamana.blogspot.in/2011/11/blog-post_02.html
13.मेरी शिकायत उनकी ईमानदारी पर एक प्रश्नचिन्ह है
http://rksirfiraa.blogspot.in/2011/06/blog-post.html
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अब...मेरी माँ को कौन दिलासा देगा ?


अब हमें भी पता नहीं कितने दिन जेल की सलाखों को पकड़कर खड़ा रहना होगा, क्योंकि हमारे देश में कानून पूंजीपतियों, राजनीतिज्ञों और महिलाओं की बाप की जागीर बन गया है.
लो दोस्तों, हमारा आपका बस थोड़े से ही दिनों का साथ था. मैं अक्सर कहता था कि देशप्रेम में पागल और सिरफिरे लोगों का स्वागत फ़िलहाल "जेल" में किया जाता है. अब हम तो जेल में जा रहे हैं. हम अपनी पत्नी के द्वारा धारा 498A और 406 के तहत दर्ज करवाए झूठे केसों (एफ.आई.आर नं. 138/2010 थाना-मोतीनगर,दिल्ली) में आठ फरवरी को तीस हजारी के कमरे नं. 138 में आत्मसमपर्ण कर रहे हैं. पुलिस के पास सबूत नहीं थें. इसलिए आज तक मुझे गिरफ्तार नहीं किया था. अब केस दर्ज हुए लगभग दो साल हो चुके है. अब कोर्ट का वारंट पुलिस लेकर आई थीं. कल संयोगवश घर पर नहीं था. तब वारंट देकर चली गई. कोर्ट का सम्मान करना मेरा फर्ज है. पिछले नौ महीने से बिलकुल बेरोजगार बैठा हूँ और सारा काम भी लगभग चार साल से बंद था. बिना वकील के ही जज को अपनी गिरफ्तारी दे रहा हूँ. जेल जाने की तारीख निश्चित है मगर भष्ट और अव्यवस्था के कारण वापिस का कोई पता नहीं है. 
मेरी गिरफ्तारी का वारण्ट
अपनी हिम्मत तो रखे हुए हूँ लेकिन विधवा माँ को हिम्मत रखने वाले शब्द नहीं बोल पा रहा हूँ. उसके लिए कहाँ से वो शब्द लेकर आऊ जो उसको दिलासा दें ? माँ तो कसूरवार बेटे का सदमा सहन नहीं कर पाती है फिर वेकसुर बेटे के लिए जेल जाने का सदमा कैसे सहन करें, कल से मम्मी से ठीक से खाना भी नहीं खाया जा रहा है. क्या करूँ कुछ समझ नहीं आ रहा है ? कल (चार फरवरी) ही मेरे पिताजी की चौथी पुण्यतिथि थीं. जब पुलिस आई थीं, तब काफी परेशान हो गई थीं. हर रोज थोड़ी देर बैठकर माँ-बेटा अपना दुःख दर्द कह लेते थें.एक-दूसरे को दिलासा दे लेते थें और हिम्मत बढ़ा दिया करते थें. अब......मेरी माँ को कौन दिलासा देगा और हिम्मत बढ़ेगा ?  
मेरे खिलाफ झूठ और बिना सबूतों के दर्ज एफ.आई.आर. जिसमें मेरे नाम के साथ ही मेरे बड़े भाइयों के साथ ही मेरी भाभी का नाम भी दर्ज किया गया है. हमारे देश के कानूनों में एक औरत को अपने सुसराल वालों का झूठा नाम लिखवाने की अनुमति मिली हुई है.मगर एक पत्रकार को किसी महिला की पहचान उजागर करने की मनाही है. इसलिए मैंने अपनी पत्नी का नाम व पता इस एफ.आई.आर. से हटा दिया है.
आज कुछ लड़कियाँ और उसके परिजन धारा 498A और 406 को लेकर इसका दुरूपयोग कर रही है. हमारे देश के अन्धिकाश भोगविलास की वस्तुओं के लालच में और डरपोक पुलिस अधिकारी व जज इनका कुछ नहीं बिगाड पाते हैं क्योंकि यह हमारे देश के सफेदपोश नेताओं के गुलाम बनकर रह गए हैं. इनका जमीर मर चुका है. यह अपने कार्य के नैतिक फर्ज भूलकर सिर्फ सैलरी लेने वाले जोकर बनकर रह गए हैं. असली पीड़ित लड़कियाँ तो न्याय प्राप्त करने के लिए दर-दर ठोकर खा रही हैं. 
मेरी जमानत तीन बार ख़ारिज हो चुकी है और अश्लील वीडियो फिल्म बनाने का और दहेज का सामान (स्त्रीधन) न लोटने के झूठे आरोपों के कारण जमानत नहीं मिल रही हैं. उत्तमनगर थाने, थाना बिंदापुर और मोतीनगर आदि से लेकर थाना कीर्ति नगर, दिल्ली के वोमंस सैल, सरकारी वकील, जांच अधिकारी, जज को रिश्वत न दे पाने के कारण झूठे सबूतों के आधार पर केस भी दर्ज हो गए और दर्ज केस में मुझे जमानत नहीं मिली. आँखों के अंधे-बहरे जज और पुलिस अधिकारी बिना सबूत मामला दर्ज करते है और जमानत नहीं देते हैं. 
दोस्तों ! बस दुआ करना कि मेरी विधवा माँ का स्वास्थ्य ठीक रहे.जब तक मुझे जेल में रहना पड़े. 72 साल की है, घर के कार्य के सिवाय कुछ नहीं करती है. मेरे बाद में मेरे बड़े भाई के पास रहेगी. लेकिन बड़ा भाई अपने काम पर सवेरे छह बजे चला जाता है और रात को दस बजे आता हैं. खर्च की चिंता नहीं है मगर मानसिक रूप से दिलासा देने की जरूरत है. मेरी मम्मी अनपढ़ है. ज्यादा जानकारी नहीं है. इसलिए ज्यादा डरी हुई है. आप मिलने आने का कष्ट मत उठाये फोन करें, तब बता देना कि आपके बेटे के दोस्त बोल रहे हैं.मेरी मम्मी हिंदी ही समझती है. आपके सहयोग और प्यार के लिए धन्यवाद
दोस्तों ! अगर आपके पास समय हो तो कभी-कभी मेरी माँ के पास मेरा ही एक अन्य फोन नं. 9868566374 पर बात कर लेना और दिलासा देने के साथ ही हिम्मत भी दे देना. आप ज्यादा जानकारी के लिए मेरे ब्लोगों की सभी पोस्टें और मेरी फेसबुक की "वाल" पढ़ें/देखें-www.sach-ka-saamana.blogspot.com (आत्मकथा)
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फेसबुक के दोस्तों को अलविदा !

लो दोस्तों, आपने पुराने साल को विदा कर दिया है. अब मुझे भी विदा करों. ज्यादा जानकारी एक दो दिन में दूँगा. अपनी विदाई पर इन शब्दों के साथ कर रहा हूँ. गौर कीजियेगा कि:- "अरी ओ फेसबुक, अगर जिन्दा रहे तो तेरे पास आ जायेंगे, वरना नए डाक्टरों के रिसर्च* (शोध) के काम आ जायेंगे" 
हाँ, दोस्तों यह बिल्कुल सच है. लौट सके तो नए शब्दों की रचना करेंगे. वरना...अब तक लिखे को ही दोस्त पढ़ते रह जायेंगे. श्री अहमद फ़राज़ साहब का कहना कि:-चलो कुछ दिनों के लिये दुनिया छोड़ देते है ! सुना है लोग बहुत याद करते हैं चले जाने के बाद !! 
*सिखने/सिखाने के उद्देश्य की जाने वाली चीरफाड़.
क्या आदमी को बुजदिलों की मौत मरना चाहिए या वीरों की ? 
शीर्षक में पूछे प्रश्न का उत्तर कहूँ या टिप्पणी दें. 
 दोस्तों, फेसबुक की मेरी वाल पर और ब्लोगों पर इतना है कि अगले चार महीने में पूरा पढ़ भी नहीं पायेंगे. आप और आपकी दुआओं से जीवन रहा तो आप लोगों का "सिर-फिराने" के लिए हाजिर हो जायेगें.यह दुनियाँ ही चला-चली की है. मैं जाऊँगा तब ही तो दूसरा आएगा.आज हममें भोग-विलास की वस्तुओं से मोह ज्यादा है.जब भी समय मिले तब ब्लॉग और वाल जरुर पढ़ें.मैं जानता हूँ कि लोग अभी नहीं पढ़ेंगे लेकिन मेरी मौत के बाद एक-एक शब्द पढेंगे.यह मुझे मालूम है. शायद आपको पता हो कि-हमें डिप्रेशन और डिमेंशिया की बीमारी है. अब अगले चार महीनों में उस पर विजय भी प्राप्त कर लेंगे.
पूरा लेख यहाँ पर क्लिक करके पढ़ें.
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दिशाहीन/भटकी हुई पत्नी को समर्पित कुछ पंक्तियाँ

दोस्तों, आज अपनी दिशाहीन और भटकी हुई पत्नी को समर्पित कुछ पंक्तियाँ गौर कीजियेगा. अर्ज है कि :- 

जब-जब मुझे(१) तुम्हारी जरूरत थी, 
तब-तब तुम मेरे साथ नहीं थीं. 
जब-जब तुम्हें(२) मेरी जरूरत थी, 
तब-तब मैं तुम्हारे साथ(३) था. 
दुआ है भगवान से जब मेरी मौत(४) हो, 
तब भी तुम साथ न हो. 
जब सफलता तुम्हारें कदम(५) चूमें, 
तब-तब मेरी बातें व आत्मा(६) तुम्हारें साथ हों.

१. खूनी ववासिर की बीमारी, पत्थरी का ऑपरेशन, टाइफाईड, डिप्रेशन व डिमेंशिया आदि अनेकों बिमारियाँ.
 
२. नसें काटकर, फिनाईल की गोली खाकर आत्महत्या करने का प्रयास करने पर बचाने के लिए इलाज के समय और पहले बच्चे को जानबूझकर दर्दनिवारक गोली खाकर नुक्सान पहुँचाने पर इलाज के समय.
 
३.धन से, मन से, शरीर से और आत्मा से तुम्हारे साथ था. 
 
४. तुम्हारे झूठे केसों से परेशान होने के कारण बनी बिमारियाँ या भविष्य में दिमाग की नस फटने के कारण या किसी प्रकार की दुर्घटना के कारण हो.
 
५. अपनी गलतियों का प्रश्चाताप करके आगे बढ़ों और अपना सुखमय जीवन व्यतीत करों.
 
६. जब तुम सफल हो तब हम जिन्दा न हो यानि हमारा शरीर इस संसार में ना हो.
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हिंदी अति सरल और मीठी भाषा हैं

 युधवीर सिंह लाम्बा भारतीय का कहना कि-हिंदी अति सरल और मीठी भाषा हैं। हिंदी भारत में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। तभी तो देश के बाहर भी हिंदी ने अपना स्थान बना सकने में सफलता हासिल किया है। फ़िजी, नेपाल, मोरिशोस, गयाना, सूरीनाम यहाँ तक चाइना और रसिया में भी हिंदी अच्छी तरह बोली और पढ़ी जाती है।
*हिन्दी के प्रभाव और क्षमता को अब विश्व की बड़ी-बड़ी कंपनियां भी सलाम कर रही है। विश्व में मोबाइल की सबसे बड़ी कंपनी नोकिया ने हाल ही लन्दन में अपने तीन नए मॉडल बाजार में उतारे। आपको ये जानकर खुशी होगी कि इन तीनो मॉडल्स को कंपनी ने हिन्दी का नाम दिया है। इन्हें अमेरिका, यूरोप और एशिया यानी पूरी दुनिया में आशा-300 और आशा-200 मॉडल के फोन लांच किए जाएंगे।
*अटल बिहारी वाजपयी वे पहले भारतीय थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ (1977) में हिंदी में भाषण देकर भारत को गौरवान्वित किया था। (अटल बिहारी वाजपयी 1977 में विदेश मंत्री थे)
*जुरासिक पार्क जैसी अति प्रसिध्द हॉलीवुड फ़िल्म को भी अधिक मुनाफ़े के लिए हिंदी में डब किया जाना जरूरी हो गया । इसके हिंदी संस्करण ने भारत में इतने पैसे कमाए जितने अंग्रेजी संस्करण ने पूरे विश्व में नहीं कमाए थे ।
*अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने 114 मिलियन डॉलर की एक विशेष राशि अमरीका में हिंदी, चीनी और अरबी भाषाएं सीखाने के लिए स्वीकृत की है । इससे स्पष्ट होता है कि हिंदी के महत्व को विश्व में कितनी गंभीरता से अनुभव किया जा रहा है ।
*हिंदी उन सभी गुणों से अलंकृत है जिनके बल पर वह विश्व की साहित्यिक भाषाओं की अगली श्रेणी में सभासीन हो सकती है। - मैथिलीशरण गुप्त।
*बह्म समाज के नेता बंगला-भाषी केशवचंद्र सेन ने भी हिन्दी का समर्थन किया था।
* गुजराती भाषा-भाषी स्वामी दयानंद सरस्वती ने जनता के बीच जाने के लिए 'जन-भाषा' हिन्दी सीखने का आग्रह किया ।
*गुजराती भाषा-भाषी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने मराठी-भाषा-भाषी चाचा कालेलकर जी को सारे भारत में घूम-घूमकर हिन्दी का प्रचार-प्रसार करने का आदेश दिया।
*सुभाषचंद्र बोस की 'आजाद हिन्द फौज' की राष्ट्रभाषा हिन्दी ही थी।
*श्री अरविंद घोष हिन्दी-प्रचार को स्वाधीनता-संग्राम का एक अंग मानते थे।
* नागरी लिपि के प्रबल समर्थक न्यायमूर्ति श्री शारदाचरण मित्र ने तो ई. सन् 1910 में यहां तक कहा था - यद्यपि मैं बंगाली हूं तथापि इस वृद्धावस्था में मेरे लिए वह गौरव का दिन होगा जिस दिन मैं सारे भारतवासियों के साथ, 'साधु हिन्दी' में वार्तालाप करूंगा।
* अहिन्दी-भाषी-मनीषियों में बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय और ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने भी हिन्दी का समर्थन किया था।
*अनेक देश हिंदी कार्यक्रम प्रसारित कर रहे हैं, जिनमें बीबीसी, यूएई क़े 'हम एफ-एम' ,जर्मनी के डॉयचे वेले, जापान के एनएचके वर्ल्ड और चीन के चाइना रेडियो इंटरनेशनल की हिंदी सेवा विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
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दोस्त के नाम पर कलंक है सिरफिरा

म दोस्त के नाम पर कलंक है. चलो कुछ तो है. हम तो खुद को किसी काबिल समझते ही नहीं थें. आज फख्र हो रहा है कि हम कलंक के काबिल तो है.
लो दोस्तों ! मैं आपको पहले ही कहता था कि मैं अनपढ़ और गंवार/ सिरफिरा इंसान किसी भी काबिल नहीं हूँ. मगर आप अपने प्यार और स्नेह से मुझे खजूर के पेड़ पर चढाते रहे. हम आप सब अनेकों बार कहते रहे कि आप तुच्छ इंसान को तुच्छ ही रहने दो. हमें खजूर के पेड़ पर मत चढाओं. हममें भी अनेकों अवगुण है. हम भी गलतियों के पुतले है. हमसे भी गलतियाँ होती है. मगर आप तो हमारी चापलूसी करते थें शायद.  फेसबुक के प्रयोगकर्त्ता हमारे इस लिंक (जरा देखें-http://www.facebook.com/note.php?note_id=271490346234943)पर टिप्पणी की है. श्री गोपाल झा जी (http://facebook.com/gopaljha73) तो यह कहते हैं कि "सिरफिरा जी आप काफी घमंडी है और इतना घंमड ठीक नहीं होता है दोस्ती के लिये आप दोस्त के नाम पर कलंक है. आप लोग को भ्रमित करते है. जिनका स्वयं (Gopal के बारे में) के बारें में कहना है कि-निगान्हे निगाहों से मिला कर तो देखो,हम से रिश्ता बना कर तो देखो. अपनी प्रशंसा मैं स्वयं कैसे करूँ ? निन्दा करना मुझे आता नहीं. अब बताए कौन सही कह रहा है और कौन झूठ कह रहा है. इसका फैसला कैसे करूँ ? कुछ मुझे रास्ता दिखाए आप सभी.
         दोस्तों, मुझे तो लगता है कि मुझे अपना बहुत बड़ा आलोचक मिल गया. आपकी क्या राय है ? अब देखिये आलोचक द्वारा कुछ देने पर समर्थकों का भडकना स्वाभाविक है. जैसे-सरकार द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ "जन लोकपाल" कानून बनाने की नीयत अच्छी ना होने के श्री अन्ना हजारे के ब्यान पर सरकार के मंत्रियों ने भटकना शुरू कर दिया. कुछ बुध्दिजीवी वर्ग के नेता तो असभ्य और सभ्य भाषा में फर्क तक भूलकर लगे आरोप लगाने अन्ना टीम पर. इसलिए दोस्तों अपनी बात कहते हुए सयम रखना. लोगों को भी पता चले कि सिरफिरा के दोस्त सभ्य भाषा में अपने विचारों की अभिव्यक्ति करना जानते है.  आप मेरे एक नौजवान(इनकी उम्र कम और थोडा जवानी का जोश भी है) मित्र ने ऑनलाइन वार्तालाप में गलती कर दी थी. इसलिए उसकी वार्तालाप भी डाल रहा हूँ. पूरा लेख यहाँ पर क्लिक करके पढ़ें.
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तुम मुझे वोट दो, मैं तुम्हारे अधिकारों के लिए अपना खून बहा दूँगा!

दोस्तों ! आपको पता है या नहीं मुझे पता नहीं है. मैंने दो बार चुनाव लड़े है. अगर आप मेरे सारे ब्लोगों की एक-एक पोस्ट को पढ़ें. तब आपको काफी जानकारी मिल जायेगी. हमने दो बार निर्दलीय चुनाव लड़े है. चुनाव चिन्ह "कैमरा" यानि तीसरी आँख से दोनों बार हारा हूँ. मगर अफ़सोस नहीं मुझे जितनी भी मुझे वोट मिले वो मेरी कार्यशैली और विचारधारा से मिली थी। इस बात खुशी है कि मैंने वोट लेने के लिए किसी को दारू नहीं पिलाई और न किसी को धमकाया या किसी प्रकार का लालच नहीं दिया. सब लोगों ने अपने विवेक से वोट दिया था.
मेरे पास भारत देश को लेकर बहुत बड़ी सोच (विचारधारा+योजना) है। जिसका प्रयोग करके 'सोने की चिडियाँ" कहलवाने वाले भारत देश को "अमरीका" जैसे बीसियों देशों से आगे ले जाकर खड़ा कर दूँगा. हाँ, मैं जैसे यहाँ (गूगल,फेसबुक) पर नियमों को लेकर बहुत सख्त हूँ. उसी प्रकार से "हिटलर" जैसा तानाशाही प्रधानमंत्री बन देश को सिर्फ दो साल चलाना चाहता हूँ. उसके बाद जनता की अनुमति के बाद अगले तीन साल देश की बागडोर संभालूँगा. आज मेरे पास कुछ निजी कारणों से ( जिनसे शायद आप नहीं अधिकत्तर समूह के सदस्य और दोस्त कहूँ या पाठक परिचित भी है) पार्टी बनाने के लिए एक चवन्नी भी नहीं है. मगर देखो ख्याब देश को चलाने का और प्रधानमंत्री बनने का देख रहा हूँ. इसको कहते हैं ना हैं...हौंसला. बस मुझे ऐसे ही सिर्फ फ़िलहाल पूरे देश से 545 "सिरफिरे" भूखें-नंगे लोगों की जरूरत है. जिनको मैं सिर्फ रोटी-कपड़ा-मकान दूँगा. उनके अंदर मेरे हिसाब से वो गुणवत्ता होनी चाहिए. जिसकी मुझे चाह है. फिर आप देखते रह जायेंगे. समृद्ध भारत देश का नाम पूरे विश्व में एक नया उदाहरण देने वाला के रूप में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जायेगा. अब आप बताये भूखे-नंगे सिरफिरे लोगों आप अपनी वोट डालने के लिए जायेंगे. घर पर बैठकर चाय की चुस्कियां लेते हुए टी.वी. पर फिल्म तो नहीं देखेंगे. अगर आप लोग देखते रह गए. तब 545 सिरफिरे चुनाव में हार जायेंगे और फिर कोई दल चुनाव जीतकर अपने स्विस के बैंक भर लेगा.
आज श्री अन्ना हजारे जी और बाबा रामदेव जी राजनीति में आने का कोई स्पष्ट इशारा नहीं दें रहें है. मेरे पास कुछ नहीं है.मगर अपने हौंसले के कारण बिना किसी सहारे के बिलकुल स्पष्ट इशारा देते हुए कह रहा हूँ कि-बिना गंदगी में उतरे गंदगी की सफाई नहीं की जा सकती है. मैंने दोनों व्यक्तियों के पास अपनी विचारधारा पहुँचाने के प्रयास किये मगर वहाँ से किसी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं मिली. श्री अन्ना हजारे जी को लिखा पत्र तो मेरे ब्लॉग पर भी है.
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हम बुध्दिजीवी कब से एक धर्म के हो गए ?

क्या हम सब बुध्दिजीवी एक दूसरे के घर्म को नीचा दिखाने के लिए सोशल वेबसाइट (फेसबुक, गूगल, ब्लॉग और ऑरकुट आदि) एकत्रित हुए है ? हम बुध्दिजीवी कब से एक धर्म के हो गए ? क्या हम सब धर्म से बढ़कर "इंसानियत" को ही अपना सबसे बड़ा धर्म नहीं मानते हैं ?
मैंने अपने पिछले दो सालों की रिसर्च (शोध) कार्य में महसूस किया कि कोई(कुछ) हिंदू, मुस्लिम धर्म की बुराई कर रहा और कोई मुस्लिम भाई, हिंदू धर्म की बुराई कर रहा है. इसी प्रकार हर(कुछ) धर्म के अनुयायी सोशल वेबसाइटों को उपयोग दूसरे धर्मों की बुराई करने के कर रहा है. हम आखिर कब देश को आगे लेकर जाने के लिए विचार करना और लिखना शुरू करेंगे. 
यह मेरे विचार है कि हम बुध्दिजीवी अगर कुछ नहीं कर सकते है. तब किसी धर्म, जाति, व्यक्ति विशेष को नीचा दिखाने का कार्य भी नहीं करना चाहिए. देश में फैली बुराइयों को खत्म करने के लिए "कुछ" कहूँ या थोडा-सा कार्य करना चाहिए.

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नववर्ष 2012 की हार्दिक शुभकामनाएँ

आओ दोस्तों ! नववर्ष 2012 में प्रतिज्ञा लें कि "एक दीया तुम जलाओ, एक दीया हम जलाएं. कुछ अँधेरा तुम मिटाओ, कुछ अँधेरा हम मिटाएं" आप व आपके परिवार के सभी सदस्यों को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ. 
नव वर्ष 2012 आपके एवं आपके परिवार के लिए सुख, शांति, सम्पन्नता, समृद्धि एवं सफलता लेकर आए । ईश्वर से नववर्ष पर यही कामना है।
   एक संकलन रचना पर गौर कीजिए:-
"चंद लम्हे ही सही"
चंद लम्हे ही सही , तेरा मेरा साथ चले ,
जब भी यारों में चले , तेरी मेरी बात चले ।
लोग हँसते रहें , खामोश हम अकेले में
देखते जाएँ जो तूफान और बरसात चले ।
बस तू एक बार ठहर जाओ मेरी बाहों में
अब्र में चाँद जो चाहे तो सारी रात चले ।
और सिरफिरा तुझे क्या चाहिए जमाने से
जब तलक चल सके ये पागले हालात चले ।
 
*******************
"उच्च आदर्शों के पुष्प चढ़ाएँ"
नए साल की प्रातः बेला में,
आओ मिलकर दिया जलाएँ;
ईश्वर से हम करें प्रार्थना,
उच्च आदर्शों के पुष्प चढ़ाएँ.
सरक जाता है जिस तरह रेत
समझ ले मानव मुठ्ठी से,
निकल गया यह कालखंड भी
सरककर आज हमारी मुठ्ठी से;
दुर्गुणों पर विजय करें हम
देश का जग में मान बढाएँ;
नए साल की प्रातः बेला में,
आओ मिलकर दिया जलाएँ.
क्या खोया क्या पाया हमने,
देखी प्रभु की माया हमने?
भटक रहे हम जिसकी खोज में
क्या उसे पाकर भी पाया हमने?
भटक गए हम स्वयं के अरण्य में
आओ खुद का पता लगाएँ;
नए साल की प्रातः बेला में,
आओ मिलकर दिया जलाएँ.
क्या सीखा हमने इस बीते वर्ष से?
क्या किया हमने इस बीते वर्ष में?
सोंचा है कभी शांतचित्त होकर
करना क्या है नए वर्ष में?
आओ मिलकर सोंचें-विचारें
नववर्ष की योजना बनाएँ;
नए साल की प्रातः बेला में,
आओ मिलकर दिया जलाएँ.
 
आया है समय नए अवसर लेकर 
करें प्रयत्न हम नव निर्माण का;
बीते दिनों के ध्वंस भुलाकर
करें स्वागत हम नवविहान का;
जाना है हमें मंजिल तक
आओ मिलकर कदम बढाएँ;
नए साल की प्रातः बेला में,
आओ मिलकर दिया जलाएँ;
ईश्वर से हम करें प्रार्थना,
उच्च आदर्शों के पुष्प चढ़ाएँ.
*********************
     मुझे अपनी वहकी हुई और पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा पार करती मेरी "कलम" के लिए मुझे फाँसी की भी सजा होती है।तब मैं अपनी फाँसी के समय से पहले ही फाँसी का फंदा चूमने के लिए तैयार रहूँगा और देश के ऊपर कुर्बान होने के लिए अपनी खुशनसीबी समझूंगा. इसके साथ ही मृत देह (शरीर) को दान करने की इच्छा है और अपनी हडियों की "कलम" बनवाकर देशहित में लिखने वाले पत्रकारों को बांटने की वसीयत करके जाऊँगा.  
http://shakuntalapress.blogspot.com/2012/01/blog-post.html
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क्या उसूलों पर चलने वालों का कोई घर नहीं होता है ?...

दोस्तों, क्या आप इस विचार से सहमत है कि-अपने उसूलों(सिद्धांतों) पर चलने वालों का कोई घर* नहीं होता है, उनके तो मंदिर बनाये जाते हैं. क्या देश व समाज और परिवार के प्रति ईमानदारी का उसूल एक बेमानी-सी एक वस्तु है ?
*आवश्कता से अधिक धन-दौलत का अपार, भोगविलास की वस्तुओं का जमावड़ा, वैसे आवश्कता हमारे खुद द्वारा बड़ी बनाई जाती हैं. जिसके कारण धोखा, लालच और मोह जैसी प्रवृतियाँ जन्म लेती हैं. इस कारण से हम अनैतिक कार्यों में लीन रहते हैं. मेरे विचार में अगर जिसके पास "संतोष' धन है, उसके लिए आवश्कता से अधिक भोग-विलास की यह भौतिकी वस्तुएं बेमानी है. उसके लिए सारा देश ही उसका अपना घर है.
दोस्तों, अपनी पत्रकारिता और लेखन के प्रति कुछ शब्दों में अपनी बात कहकर रोकता हूँ. मैं पहले प्रिंट मीडिया में भी कहता आया हूँ और इन्टरनेट जगत पर कह रहा हूँ कि-मुझे मरना मंजूर है,बिकना मंजूर नहीं.जो मुझे खरीद सकें, वो चांदी के कागज अब तक बनें नहीं.
दोस्तों-गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे. 

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भारत देश की मांओं और बहनों के नाम एक अपील


मेरी बहनों/मांओं ! क्या नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, शहीद भगत सिंह आदि किसी के भाई और बेटे नहीं थें ?
क्या भारत देश में देश पर कुर्बान होने वाले लड़के/लड़कियाँ मांओं ने पैदा करने बंद कर दिए हैं ? जो भविष्य में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, शहीद भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव और झाँसी की रानी आदि बन सकें. अगर पैदा किये है तब उन्हें कहाँ अपने आँचल की छाँव में छुपाए बैठी हो ? 
उन्हें निकालो ! अपने आँचल की छाँव से भारत देश को भ्रष्टाचार से मुक्त करके देश को "सोने की चिड़िया" बनाकर "रामराज्य" लाने के लिए देश को आज उनकी जरूरत है.  मौत एक अटल सत्य है. इसका डर निकालकर भारत देश के प्रति अपना प्रेम और ईमानदारी दिखाए. क्या तुमने देश पर कुर्बान होने के लिए बेटे/बेटियां पैदा नहीं की. अपने स्वार्थ के लिए पैदा किये है. क्या तुमको मौत से डर लगता है कि कहीं मेरे बेटे/बेटी को कुछ हो गया तो मेरी कोख सूनी हो जायेगी और फिर मुझे रोटी कौन खिलाएगा. क्या नेताजी सुभाष चन्द्र बोस आदि की मांओं की कोख सूनी नहीं हुई, उन्हें आज तक कौन रोटी खिलता है ? क्या उनकी मांएं स्वार्थी थी ?
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दोस्तों की संख्या में विश्वास करते हो या उनकी गुणवत्ता पर ?


  दोस्तों, आप दोस्तों की संख्या में विश्वास करते हो या उनकी गुणवत्ता पर ? दोस्तों, पिछले दिनों फेसबुक के मेरे एक मित्र ने एक अपने मित्र की दोस्ती का निवेदन स्वीकार करने के लिए कहा. तब मैंने कहा उनकी प्रोफाइल का अवलोकन करने के लिए कहा. तब उस मित्र का कहना था कि-इतना घंमड ठीक नहीं है. हमने जवाब दिया-दोस्त! आपको अपने विचारों की अभिव्यक्ति की पूरी स्वतन्त्रता है. अपशब्दों को छोड़कर जैसे मर्जी अपने विचार व्यक्त करें. आपको जवाब जरुर मिलेगा. वैसे मैं ऐसा इसलिए करता हूँ सुरक्षा* कारणों के चलते ही प्रोफाइल का अवलोकन करता हूँ. मुझे नहीं पता आपकी नजरों में मेरा यह घंमड या कुछ और है. लेकिन यह मेरा देश और समाज के प्रति सभ्य व्यवहार की परिभाषा है.
      *सुरक्षा- जहाँ तक सुरक्षा की बात कई विकृत मानसिकता के व्यक्तियों की प्रोफाइल में अश्लील फोटो व वीडियों होते है, जिनका प्रयोग खासतौर अपने या मेरे लड़कियों या महिलाओं की प्रोफाइल पर डाल कर करते हैं. दोस्तों अगर आपको कभी भी मेरी प्रोफाइल में इसे दोस्तों की जानकारी हो तो मुझे अपनी प्रोफाइल में दिए ईमेल, फ़ोन या एड्रेस पर पत्र द्वारा सूचित करके दोस्ती के पवित्र रिश्ते को कायम करें. अभी कल ही मैंने फेसबुक और ऑरकुट की अपनी दोस्त एक महिला और एक लड़की की "वाल" पर उसके दोस्त द्वारा डाली आपत्तिजनक फोटो देखी. मगर में उनको यह सूचना उनके द्वारा दी प्रोफाइल में जानकारी के अभाव में देने में असमर्थ रहा. लेकिन शुक्र था कि-वो विकृत मानसिकता का व्यक्ति मेरा दोस्त नहीं था.
         अब सुरक्षा का एक दूसरा नमूना भी देखें-एक दोस्त कहूँ या व्यक्ति को लिखे शब्दों में कठोरता है पर सभ्य भाषा का प्रयोग किया है.
पूरा लेख पढने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें.
 दोस्तों की संख्या में विश्वास करते हो या उनकी गुणवत्ता
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यह प्यार क्या है ?

ब भी प्यार की बात होती है सब लोग सिर्फ एक लड़की और एक लड़के में होने वाले आकर्षण को ही प्यार मान लेते हैं. परन्तु प्यार वो सुखद अनुभूति है जो किसी को देखे बिना भी हो जाती है. एक बाप प्यार करता है अपनी औलाद से, पति करता है पत्नी से, बहन करती है भाई से, यहाँ कौन ऐसा है जो किसी न किसी से प्यार न करता हो. चाहे वह किसी भी रूप में क्यों न हो, प्यार को कुछ सीमित शब्दों में परिभाषित नहीं किया जा सकता.
प्यार फुलों से पूछो जो अपनी खुशबु को बिखेरकर कुछ पाने की चाह नही करता, प्यार क्या है यह धरती से पूछो जो हम सभी को पनाह और आसरा देती है. इसके बदले में कुछ नही लेती, प्यार क्या है आसमान से पूछो जो हमे अहसास दिलाता है कि -हमारे सिर पर किसी का आशीर्वाद भरा हाथ है. प्यार क्या है सूरज की गर्मी से पूछो. प्यार क्या है प्रकृति के हर कण से पूछो  जवाब मिल जायेगा. प्यार क्या है सिर्फ एक अहसास है जो सबके दिलों में धडकता है. प्यार एक ऐसा अहसास है जिसे शब्दों से बताया नहीं जा सकता, आज पूरी  दुनिया प्यार पर ही जिन्दा है, प्यार न हो तो ये जीवन कुछ भी नहीं है. प्यार को शब्दों मैं परिभाषित नहीं किया जा सकता, क्योंकि अलग- 2 रिश्तों के हिसाब से  प्यार की अलग-2 परिभाषा होती है. प्यार की कोई एक परिभाषा देना बहुत मुश्किल है. यदि आपके पास कोई एक परिभाषा हो तो आप बताओ ? 
पूरा लेख यहाँ पर क्लिक करके पढ़ें. सच का सामना: यह प्यार क्या है ?:
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