इस्लामी नया साल मुबारक .
दुनिया के हर मजहब या कौम का अपना-अपना नया साल होता है। नए साल से मुराद (आशय) है पुराने साल का खात्मा (समापन) और नए दिन की नई सुबह के साथ नए वक्त की शुरुआत। नए वक्त की शुरुआत ही दरअसल नए साल का आगाज (आरंभ) है।
इस्लामी कैलेंडर में जिलहिज के महीने की आखिरी तारीख को चाँद दिखते ही पुराना साल विदाई के पायदान पर आकर रुखसत हो जाता है और अगले दिन यानी मोहर्रम की पहली तारीख से इस्लामी नया साल शुरू हो जाता है।
नए साल का मतलब इस्लाम मजहब में 'बेवजह का धूमधड़ाका करना या फिजूल खर्च करना या नाच-गानों में वक्त बर्बाद करना नहीं है बल्कि अल्लाह (ईश्वर) की नेमत (वरदान) और फजल (कृपा) की खुशियाँ मनाना है।'
इस्लामी नए साल को मनाने का तरीका यह है कि बेबसों, बेवाओं (विधवाओं), बेसहारा लोगों की मदद करना, जरूरतमंदों और यतीमों (अनाथ बच्चे-बच्चियों) की दिल से सहायता करना और जुबान से चुप रहना यानी सहायता करके प्रचार के ढोल नहीं पीटना, बीमारों, बूढ़ों और अपंगों-अपाहिजों यानी विकलांगों तथा निःशक्तों की मदद करना, बुजुर्गों का सम्मान करना अपना कर्तव्य (फर्ज) पूरी मुस्तैदी और ईमानदारी से निभाना। इस्लामी नया साल यानी सब रहें खुशहाल!
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