उसकी आँखों में सपनों की
एक नदी बहती थी
रंगबिरंगी मछलियाँ डुबकियां लेतीं
कोई अनचाहा मछुआरा मछलियाँ न पकड़ ले
जब तब वह अपनी आँखें
कसके मींच लेती...
....
एक दिन -
किसी ने बन्द पलकों पर उंगलियाँ घुमायीं
और बड़ी बड़ी आँखों ने देखना चाहा
कौन है .....
और पलक झपकते
सपनों की नदी से
छप से एक मछली बाहर निकली
मछुआरे ने उसे अपनी आँखों की झील में डाला
और अनजानी राहों पर चल पड़ा....
....
अनजानी राहों के लौटने के इंतज़ार में
सपनों की नदी
कभी सूखी नहीं
ना ही फिर किसी मछुआरे से
अपनी रंगीन मछलियों का सौदा किया
हर अजनबी आहट पर
कसके अपनी आँखें मींच लीं ...
...
यशोधरा के मान से कम उसका मान नहीं
मानिनी सी करती है इंतज़ार
उस मछुआरे का
जिसकी आँखों में
उसकी एक मछली आज भी तैर रही है !
3 comments:
एक मछुआरा जो
केवल एक शिकारी था
कब लौटता है
नए नयनों के
नए घाट पर
जाल बिछाए
बैठा होगा आज भी
सपनों की नदिया में
मछलियां सलामत हैं गर
तो आएगा वह भी इक रोज़
जो लेने नहीं , देने आएगा
ख़ुद को , सदा के लिए
क्योंकि वह शिकारी नहीं होगा ।
यशोधरा के मान से कम अगर तेरा मान नहीं है
फिर से शिकार होना क्या अपमान नहीं है
समय बदलता है तो नदी भी मक़ाम बदलती है
सपन-सरिता में मछली आज भी उछलती है
bahut sundar bhavabhivyakti.
यशोधरा के मान से कम अगर तेरा मान नहीं है
फिर से शिकार होना क्या अपमान नहीं है
सारगर्भित और सुंदर रचना , शुभकामनायें
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