है अगर कुछ आग दिल में ;
तो चलो ए साथियों !
हम मिटा दे जुल्म को
जड़ से मेरे ए साथियों .
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रौंद कर हमको चला
जाता है जिनका कारवा ;
ऐसी सरकारों का सर
मिलकर झुका दे साथियों .
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रौशनी लेकर हमारी;
जगमगाती कोठियां ,
आओ मिलकर नीव हम
इनकी हिला दे साथियों .
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घर हमारे फूंककर
हमदर्द बनकर आ गए ;
ऐसे मक्कारों को अब
ठेंगा दिखा दे साथियों .
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जो किताबे हम सभी को
बाँट देती जात में;
फाड़कर ,नाले में उनको
अब बहा दे साथियों .
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हम नहीं हिन्दू-मुस्लमान
हम सभी इंसान हैं ;
एक यही नारा फिजाओं में
गुंजा दे साथियों .
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है अगर कुछ आग दिल में
तो चलो ए साथियों
हम मिटा दे जुल्म को
जड़ से मेरे ए साथियों .
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3 comments:
बहुत ही जोशीले अंदाज़ में लिखा है शिखा जी ने.
इस सन्देश को जन जन तक पहुंचाने की ज़रूरत है.
Nice post.
आपका संदेश जन जन तक पहुँचे इसके लिए ही इस फोरम को वुजूद बख़्शा गया है ।
इस फोरम का हरेक सदस्य अपने निजी ब्लाग का लिंक मेरी पहली पोस्ट में अपनी टिप्पणी के रूप में जरूर उपलब्ध करा दे ताकि उसे यहाँ सबके लिए सुलभ कराया जा सके ।
नया लेख कम से कम 4 घंटे बाद ही पेश किया जाए ताकि हरेक लेख को टॉप पर कम से कम 4 घंटे प्रदर्शन का अवसर मिल सके ।
इसके लिए लेखक मंडल अपनी पोस्ट को शेड्यूल पर डाल सकता है ।
हमारी वाणी के लोगो पर भी क्लिक करके यह यक़ीनी कर लें कि आपकी पोस्ट हमारी वाणी पर नज़र आ रही है ।
धन्यवाद !
hum saath saath hain
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