शाम हो चुकी है , डूब रहा है आफ़ताब यारो
मुझे भी पिला दो अब तुम घूँट दो घूँट शराब यारो .
दिन तो उलझनों में बीता , रात को ख्वाबों का डर है
या बेहोश कर दो या फिर कर दो नींद खराब यारो .
बुरी चीजों को क्योंकर गले लगा लेते हैं सब लोग
तुम खुद ही समझो , नहीं है मेरे पास जवाब यारो .
जश्न मनाओ , आसानी से नहीं मिला मुझे ये मुकाम
खूने-जिगर दे पाया है , बेवफाई का ख़िताब यारो .
एक छोटा-सा दिल टूटा और उम्र भर के गम मिल गए
नफे में ही रहे होंगे , लगाओ थोडा हिसाब यारो .
किसे सजाकर रखें किसे न , बस 'विर्क' यही उलझन है
मुहब्बत में मिला हर जख्म निकला है लाजवाब यारो .
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