धर्म...एक ही...डा श्याम गुप्त...

धर्म एक ही होता है , वह -
जो- सबको  धारण करता ।
सबको अपना बना, जीव का-
वह लालन पालन करता ॥

सबको एक समान समझना,
सबकी ही सेवा करना ।
सबकी सम्मति से ही चलना,
अडिग सत्य पर ही रहना ॥

जीव मत्र से प्रेम करेंसब-
यह मानव धर्म बताता ।
जीने की हो यही धारणा,
यह जीवन धर्म कहाता ॥

सिन्धु सरस्वती तीरे जब ,
यह गाथा गयी सुनायी ।
प्रज़ा वहां पर रहती थी -
जो,वह हिन्दू कहलायी ॥

जहां मुहम्मद ने ये बातें,
थीं अपनों को समझायीं ।
जिन लोगों ने समझीं, वो-
सब बने मुसलमां भाई ॥

इन्हीं विचारों का मन्थन -
जब, ईशा ने फ़ैलाया ।
उनका आदर जो करता,
वह ,ईसाई कहलाया ॥

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई,
मानव ही रहा बनाता ।
देश काल सुविधानुसार,
वह जीवन मर्म सजाता ॥

1 comments:

Arshad Ali said...

Behtareen rachna..sundar sandesh..

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