लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आज़ादी की क़ीमत अगर महज़ 5 रूपये अदा करनी पड़ रही है तो इसमें क्या बुरा है ?
जनता को लोकतंत्र चाहिए और लोकतंत्र को जनता के चुने हुए प्रतिनिधि चाहिएं। चुनाव के लिए धन चाहिए और धन पाने के लिए पूंजीपति चाहिएं। पूंजीपति को ‘मनी बैक गारंटी‘ चाहिए, जो कि चुनाव में खड़े होने वाले सभी उम्मीदवारों को देनी ही पड़ती है।
देश-विदेश सब जगह यही हाल है। जब अंतर्राष्ट्रीय कारणों से महंगाई बढ़ती है तो उसकी आड़ में एक की जगह पांच रूपये महंगाई बढ़ा दी जाती है और अगर जनता कुछ बोलती है तो कुछ कमी कर दी जाती है और यूं जनता लोकतंत्र की क़ीमत चुकाती है।
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