ये कैसी जिद्द है अन्ना दा.......

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  • Friday, August 12, 2011
  • by
  • महेन्द्र श्रीवास्तव
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  • एक संवेदनशील मुद्दे को आगे रख कर आंदोलन खडा करना आसान है, पर उसे समेटना बहुत मुश्किल है, लोगों को सड़क पर लाना आसान है, वापस घर भेजना मुश्किल है, लोगों को एक बार भड़काना तो आसान है, पर भड़के लोगों को समझाना बहुत मुश्किल। देश भर से जिस तरह के संकेत मिल रहे हैं, मुझे पता नहीं क्यों लगता है कि दिल्ली पर ऐसा दाग लगने वाला है, जिसे कई साल तक धोना मुश्किल होगा।
    बिना लाग लपेट के कुछ मुद्दों पर चर्चा करना चाहता हूं। पत्रकारिता से जुड़े होने की वजह से अक्सर देश के विभिन्न इलाकों में जाने का अवसर मिलता है। मैं जहां भी जाता हूं,लोगों से एक सवाल जरूर जानने की कोशिश करता हूं कि उनकी सबसे बड़ी समस्या क्या है। जवाब एक ही है दो वक्त की रोटी अब मुश्किल से मिलती है। मंहगाई ने ये हाल कर दिया है कि सुबह खाना खाया तो रात का गायब और रात को मिला तो सुबह नहीं। पता नहीं अन्ना और उनकी टीम को मालूम है या नहीं पिछड़े इलाकों और ज्यादातर गांवो के लोग हैरान हो जाते हैं जब उन्हें ये पता चलता है कि शहरों में लोगों के घर में एक रसोई घर अलग से होती है, जहां सिर्फ खाने पीने का इंतजाम होता है। अन्ना जी आप तो गांव से जुडे हैं, आप गांव वालों की असली मुश्किलों से वाकिफ हैं। कुछ ऐसा कीजिए कि गांव वाले भी अपने घर में एक रसोई घर बनाने लगें। ये तब होगा जब उन्हें लगेगा कि हां अब दोनों वक्त खाना बनेगा।
    अन्ना जी आप क्या मांग रहे हैं, जनलोकपाल। यानि एक ऐसा कानून जिसमें भ्रष्ट्राचारियों को सख्त और जल्दी सजा मिले। जनलोकपाल में आप प्रधानमंत्री और सर्वोच्च अदालत को भी शामिल करना चाहते हैं। आप अपनी जगह सही हो सकते हैं, लेकिन मुझे लगता है कि सरकारी लोकपाल जिसे आप सड़कों पर फूंकते फिर रहे हैं, वो भी कम नही है। जिस सिविल सोसाइटी की रहनुमाई आप कर रहे हैं, उसमें 95 फीसदी लोग स्थानीय प्रशासन और राज्य सरकार के भ्रष्ट्राचार से परेशान हैं। कानूनगो, नायब तहसीलदार, तहसीलदार, एसडीएम, डीएम और राज्य सरकारों के अफसरों ने इनकी नींद उडा रखी है। पीएमओ के भ्रष्ट्राचार से पांच फीसदी प्रभावित होते हैं और बडे लोग हैं, वो जिस तरह का काम करते हैं, उसे पूरा करने का रास्ता भी निकाल लेते हैं। अन्ना जी अगर सरकारी लोकपाल ही संसद में पास हो जाए तो देश में एक क्रांति आ जाएगी। आप अभी पांच फीसदी लोगों को छोड़ दीजिए, 95 फीसदी को इसी सरकारी लोकपाल से राहत मिल जाएगी।
    मै एक उदाहरण देता हूं आपको..। सूचना के अधिकार कानून में पीएमओ समेत कई और मंत्रालयों को इससे अलग रखा गया है, तो क्या आपको लगता है कि सूचना का अधिकार कानून बेकार है। इसमें कोई ताकत नहीं है। इसकी प्रतियां आप फूंकने लगेगें। अन्ना के सहयोगी अरविंद केजरीवाल को कोई जानने वाला नहीं था, आज अगर इनकी पहचान बनी है तो आरटीआई एक्टिविस्ट के नाम से जाने जाते हैं। इसी सूचना के अधिकार के तहत उन्होंने बहुत बडी लडाई लडी। अगर इसी बात को लेकर विवाद खड़ा कर दिया जाता कि आरटीआई के तहत पीएमओ और रक्षा मंत्रालय सभी को शामिल किया जाए, तो क्या होता, एक अच्छा कानून देश में लागू ना हो पाता। अभी इस पर भी विवाद बना  रहता।
    भीड़ में आप कुछ भी बोलते रहें, उसका कोई मतलब नहीं है। सच ये  है कि आपका मुद्दा सही है, पर तरीका गलत है। अन्ना दा ये तो आप भी जानते  हैं देश में कोई भी कानून जंतर मंतर या रामलीला मैदान में नहीं बन सकता। इसके लिए तो संसद की ही शरण लेनी होगी। अब आपने पहले तो नेताओं को जंतर मंतर से कुत्तों की तरह खदेड़ दिया। आपने सोचा कि अब तो कानून जंतर मंतर पर ही बन जाएगा। कुछ दिन बाद आप कांग्रेसियों के झांसे में आकर उनके साथ गलबहियां करने लगे। आज आपको ये दिन न देखना पडता अगर आपने थोडा सा सूझ बूझ के साथ काम लिया होता। दादा अन्ना ये महाराष्ट्र नहीं दिल्ली है। यहां राज ठाकरे नहीं, उनके पिता जी बैठे हैं। अगर आपने  ड्राप्टिंग कमेटी के गठन के दौरान व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा को अलग कर देश हित में सोचा होता तो आज ये हालत ना होती। आपको सिर्फ इतना करना था कि कमेटी में सभी राजनीतिक दलों के नेताओं को प्रतिनिधित्व देने की मांग करते। यहीं सबके पत्ते खुल जाते और आपको एक एक नेता दरवाजे पर मत्था टेकना नहीं पडता।
    हम सब आपमें गांधी की तस्वीर देखते हैं। हमने जब देखा कि आप एक भ्रष्ट्र नेता लालू यादव के घर गए और लोकपाल पर समर्थन मांगा, जवाब में उसने पत्रकारों के सामने आपका मजाक बनाया, तो ये अच्छा नहीं लगा। अन्ना जी सच तो ये है कि हमारे देश में पर्याप्त कानून है, बशर्ते उस पर अमल हो। आप देखें कानून की वजह से ही तो ए राजा, सुरेश कलमाडी जेल में है। यहां तक की राजकुमारी की तरह जिंदगी जीने वाली कनिमोझी को भी जेल की सलाखों के पीछे जाना पडा है। बीजेपी के मुख्यमंत्री वी एस यदुरप्पा, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्वाण को भ्रष्टाचार में शामिल होने की वजह से ही कुर्सी छोड़नी पडी।    
    बहरहाल अब जिस तरह से आप राजनीतिक दलों की तरह लोकपाल को जोकपाल बता रहे हैं। सड़कों पर उसकी प्रतियां फूंक रहे हैं। इससे लगता है कि आप एक राजनीतिक दल की तरह काम कर रहे हैं। इस आंदोलन के पीछे विरोधी दलों का हाथ बताया जाने लगा है। मै मानता हूं कि भ्रष्टाचार गंभीर समस्या बन चुकी है। इसे खत्म होना ही चाहिए। लेकिन अन्ना दा जब हम आतंकवादियों को सजा नहीं दे पा रहे हैं तो भ्रष्टाचारियों को क्या दे पाएंगे। बहरहाल अन्ना जी, मैं जानता हूं कि आपकी बात इतनी आगे बढ चुकी है कि पीछे नहीं हटेंगे। लेकिन मैं ये भी जानता हूं कि इस बार भी आपको सिर्फ भरोसा मिलेगा और आपको ये अनशन खत्म करना ही होगा। सरकार की नीयत भी साफ नहीं है, उसकी पूरी कोशिश होगी कि यहां भीड़ को जमा ना होने दिया जाए। इसके लिए वो किसी भी हद तक जा सकती है।
    देश को दो दिन बाद आजादी का जश्न मनाना है। दिल्ली में सरकार की तैयारी स्वतंत्रा दिवस समारोह को कामयाब बनाने की है, आपकी अनशन को कामयाब बनाने की। आतंकवादी खतरे के मद्देनजर पहले ही दिल्ली को अलर्ट पर रखा गया है। संसद का मानसून सत्र चल रहा है, यहां कोई काम नहीं हो पा रहा। आज आपने भी इतने सियासी दलों को अपना विरोधी बना लिया है कि सरकार जनलोकपाल की बात मान भी ले तो उसे संसद में पास कराना मुश्किल होगा। महिला आरक्षण संबधी विधेयक कितने साल से लटका हुआ है। इसे सरकार पास नहीं करा पा रही है। बहरहाल मेरा तो मानना है कि अब ये तथाकथित सिविल सोसायटी भी देश की शांति व्यवस्था के लिए एक बडा खतरा है।


    6 comments:

    DR. ANWER JAMAL said...

    आपने मामले को बहुत सही तरीके समझा और बयान किया है.
    शुक्रिया .

    shyam gupta said...

    महेंद्र जी---आप अभी बात की मूल तक नहीं पहुंचे....आधे अधूरे क़ानून बनने से तो न् बने यही अच्छा है...कम से कम आगे का रास्ता तो खुला रहेगा....अधूरे बिल बनने से तो आगे का रास्ता बंद...सब अपने अपने घर चले जाएँ ...भ्रष्टाचारी उसी तरह मौज करते रहें....यही मंशा है सरकार की ....
    ---- यदि मौजूदा कानूनों पर अमल होपाता तो फिर किसी को आन्दोलन की आवश्यकता ही क्यों हो...कोई ही सत्याग्रह क्यों हो ...क्रान्ति की आवश्यकता क्यों पड़े....क्या ब्रिटिश साम्राज्य में क़ानून पर्याप्त नहीं थे फिर भी ...आंदोलन चले देश स्वतंत्र हुआ ..क्यों...
    ---- आज आम जनता सड़क पर रहती है संसद, संसद में पैसा लेकर प्रश्न पूछने वाले नेता रहते हैं , निश्चय ही वहाँ यह बिल नहीं बन् सकता....जब राज्य भ्रष्ट होजाता है तो जनता ही सडकों से क़ानून बनाती है....क्या आप नहीं मानते कि लोकतंत्र में राज्य जनता का है...

    महेन्द्र श्रीवास्तव said...

    डाक्टर श्याम जी.... जहां तक आम जनता का सवाल है तो संसद में पेश लोकपाल मे उतने प्रावधान किए गए हैं जिससे आम जनता को राहत मिल जाएगी। आम जनता की शिकायतें बहुत छोटी छोटी होती हैं, उन्हें राहत चाहिए लेखपाल और तहसीलदार और दरोगा से। पीएम से आम जनता का लेना देना नहीं।

    सूचना के अधिकार कानून में भी तो पीएमओ नहीं है,तो क्या इसका फायदा आम आदमी को नहीं मिल रहा।

    मै मानता हूं देश को भ्रष्ट नेता और अफसर बर्बाद कर रहे हैं, लेकिन उनके लिए कानून है, और कानून का सख्ती से पालन हो तो कोई भी नहीं बच सकता।

    जो नेता आज जेल में हैं, वो जनलोकपाल की वजह से नहीं, मौजूदा कानून ने ही उन पर नकेल कसी है

    फिर मेरी समझ में एक बात और नहीं आती कि देश में कितने प्रधानमंत्री भ्रष्ट रहे हैं, जो प्रधानमंत्री को इसमें शामिल करने की बात हो रही है। हमारे देश में ऐसा नहीं रहा है कि कोई भ्रष्ट इस कुर्सी तक पहुंच गया हो।

    Gyan Darpan said...

    लेख में लिखे विचारों से १००% सहमत way4host

    Ayaz ahmad said...

    Sahi raay hai .
    zyada ke chakkar men kahin kam bhi khataai men n pad jaaye.

    अभिषेक मिश्र said...

    Vakai samagra pahlu par vichar ki jarurat hai.

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