इस्लाम में स्त्री का स्थान Women in Islam

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  • Friday, August 12, 2011
  • by
  • DR. ANWER JAMAL
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  • नारी पर प्रतिकाल में अत्याचार हुआ है। यूनानियों ने उसे शैतान की बेटी, सुक्रात ने उसे हर प्रकार के उपद्रव की मुख्य, अफ्लातून ने बुरे लोगों की प्राण , अरस्तू ने उसे अवनति का कारण कहा है। अरब वासी लज्जा के भय से उसे ज़मीन में जीवित ही गाड़ देते थे और हमारे अपने भारत में सौ  साल पहले औरत को उस के पति के मृत्यु के बाद पति के साथ जिन्दा जला (सती कर) देते थे;  परन्तु इस्लाम ने चौदह सौ साल पहले उसे बहुत ही ऊंचा स्थान दिया , बहुत आदर-सम्मान दिया। मर्द और औरत को एक ही स्थान पर रखा, और लोगों को ज्ञान दिया कि औरत और पुरूष्य दोनों एक ही तत्व से पैदा किए गए हैं, दोनों के जीवन का कुछ लक्ष्य हैं। सब से पहला उद्देश्य यह कि मानव जाति के सिलसिले को क़ायम रखना। पवित्र कुरआन की इस आयत को धयानपुर्वक पढ़े।
    ” लोगो , अपने पालनहार की अवज्ञा से बचो, जिसने तुम्हें एक जात से पैदा किया और उसी से उस का जोड़ा बनाया।फिर उन दोनों में बहुत से मर्द और औरत दुनिया में फैला दिए।”
    कुरआन मजीद की इस आयत में स्पष्ट रूप से बता दिया गया है कि मर्द तथा स्त्री दोनों एक ही तरह के दो जीव हैं और दोनों जीवों की रचना का उद्देश्य मानव-जाति को बढ़ाना और उसके सिलसिले को क़ायम रखना है।
    इस रचना का दुसरा उद्देश्य भी बताया गया है। धयानपुर्वक से अल्लाह ताला के कथन को पढ़े। ” वही है जिसने तुमको एक जान से पैदा किया और उसी से उस का जोड़ा बनाया ताकि उसके पास सुकून हासिल करे ”
    इन दोनों आयतों पर विचार करें तो मालूम होगा कि मर्द और औरत को एक ही स्थान पर रखा गया है और दोनों को एक दूसरे की ज़रूरत है।
    इसलाम ही एक मात्र धर्म है जिस ने हर मानव को उस का सही स्थान दिया है जो उस के प्राकृतिक जन्म से मेल खाता है। उसे वह अधिकार दिया जो उस के शारीरिक एंव मानसिक शक्ति  के अनुसार है। औरत प्राकृतिक और शारीरिक शक्ति के अनुसार कमज़ोर है। इसी लिए जीवन के हर पराव में एक रक्षक दिया। जब बालिका हो तो बाप और बड़ा भाई उसकी एजूकेशन,खान-पान की व्यवस्था करे, उसकी हर तरह से रक्षा करे, उस से प्रेम करे, लड़का तथा लड़की में कोई अन्तर न रखे और जब बालिका बड़ी हो जाऐ तो उचित लड़के से विवाह कर दे। अब पति पर सरी ज़िमेदारी होगी कि अपनी शक्ति के अनुसार उसे अच्छे से अच्छा कपड़ा पहनाए , अच्छा खाना खिलाए और उसकी रक्षा करे, उसके साथ अच्छा व्यवहार करे और यह एहसान नहीं बल्कि पत्नी का पति पर अधिकार है यदि कोई पति अपनी पत्नी की जिमेदारी को सही ढंग से अदा नही करता तो वह अल्लाह के पास पापी होगा। जब औरत माता श्री हो जाए तो बच्चे अपने माता-पिता की आज्ञा करे और माता को पिता पर तीन दरजा ऊंचा स्थान दिया मोहम्मद स0 अ0 स0 के कथन को पढ़े :
    ” एक आदमी नबी स0 अ0 स0 के पास आया और कहाः ऐ अल्लाह के रसूल ” कौन मेरे अच्छे व्यवहार तथा खूब सेवा का ह़क़दार है ?  
    तो आप स0 अ0 स0 ने उत्तर दियाः तुम्हारी माँ, उस ने कहाः फिर कौन ? आप स0 अ0 स0 ने उत्तर दियाः फिर तुम्हारी माँ, उस ने कहाः फिर कौन ? आप स0 अ0 स0 ने उत्तर दियाः फिर तुम्हारी माँ, उस ने कहाः फिर कौन ?
    आप स0 अ0 स0 ने उत्तर दियाः फिर तुम्हारा बाप। ” 
    (सह़ीह़ुल बुखारीः ह़दीस संखियां- 113508)
    जब माता बुढ़ापे को पहुंच जाए तो बेटा जीविका का व्यवस्था करे और उसे किसी बात पर बुरा-भला न कहे और नहीं डांटे-फटकारे बल्कि उनके किसी बात पर ” हूँ ” तक न कहे । अल्लाह तआला ने मुसलमानों को इसी का आज्ञा दिया है।
    ” अगर तुम्हारे पास इन में से एक या यह दोनों (माता-पिता) बुढ़ापे की उम्र को पहुंच जायें तो उनको उफ़ तक न कहना और न ही उन्हें डाँटना “( सूरः इस्राः23)
    एक औरत चाहे वह बेटी हो, या पत्नी या माँ हर हाल में रानी है जिसकी सेवा करना मर्द संबंधी पर अनिवार्य है और इसलाम के नियमों में कोई भी व्यक्ती संशोधन नही कर सकता है। जो इस्लाम के आज्ञानुसार जीवन गुज़ारेगा, उसे पुण्य प्राप्त होगा और जो इस्लाम के आज्ञा का उलंघन करेगा वह पापी होगा .
    Source : http://ipcblogger.net/nawaz/?p=24

    1 comments:

    Rajesh Kumari said...

    aapke is aalekh ki har baat mere hisaab se shat prtishat sahi hain.naari aur purush dono hi ek doosre ke poorak hain fir dono ka sthan kam ya jyada kaise ho sakta hai.uttam lekh.

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