इसका पता हमें ‘ब्लॉग की ख़बरें‘ से चला।
दरअसल यह कोई मुददा ही नहीं है लेकिन इसे मुददा बना दिया है मुददा बनाने वालों ने और जब मुददा बन ही गया है तो लोगों को रस भी आने लगा है इसकी चर्चा में।
कैसे कोई बरसों लिखता रहता है और उसे पुरस्कार में मिलते हैं अपने बीवी बच्चों के ताने और कैसे कोई दूसरों के लिखे पर लिखता है लेकिन वह शोहरत के साथ दाम भी कमा लेता है।
जब दुनिया में यही हो रहा है तो फिर ब्लॉगिंग में भी यही होगा। जिसका सौदा जहां पटेगा, वह वहीं सैट हो जाएगा।
जब तक जूते सिर पर नहीं पड़े थे तो 2 जी और 3 जी वालों के भी अभिनंदन धड़ल्ले से किए जा रहे थे।
ब्लॉगिंग में भी यह सब तो होना ही है।
आखि़र सब जगह इंसान ही तो हैं।
दरअसल यह कोई मुददा ही नहीं है लेकिन इसे मुददा बना दिया है मुददा बनाने वालों ने और जब मुददा बन ही गया है तो लोगों को रस भी आने लगा है इसकी चर्चा में।
कैसे कोई बरसों लिखता रहता है और उसे पुरस्कार में मिलते हैं अपने बीवी बच्चों के ताने और कैसे कोई दूसरों के लिखे पर लिखता है लेकिन वह शोहरत के साथ दाम भी कमा लेता है।
जब दुनिया में यही हो रहा है तो फिर ब्लॉगिंग में भी यही होगा। जिसका सौदा जहां पटेगा, वह वहीं सैट हो जाएगा।
जब तक जूते सिर पर नहीं पड़े थे तो 2 जी और 3 जी वालों के भी अभिनंदन धड़ल्ले से किए जा रहे थे।
ब्लॉगिंग में भी यह सब तो होना ही है।
आखि़र सब जगह इंसान ही तो हैं।
2 comments:
लोमडियों के लिए अंगूर न मिले तब तक सदैव खट्टे ही होते है। मिल जाय तो मीठे!!
बोए बीज बबुल के वहां उगते नहीं है धान।
किए कर्म अपमान के, कैसे फल मिले सम्मान??
सौदा पटाने के भी तो गुर बताइये :)
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