भारतीय नारी का चीरहरण अमेरिका में, कब तक? Devyani Khobragade

कल टी. वी. पर देखा कि अमेरिका ने फिर से एक भारतीय देवयानी खोबरागाडे का अपमान कर दिया है। वह अमेरिका में भारत की एक राजनयिक हैं। इस तरह की ख़बरें देखने के हम आदी हो चुके हैं लेकिन हमें यह उम्मीद बिल्कुल नहीं थी कि भारत उनके इस अपमान पर इतना सख्त रद्दे-अमल ज़ाहिर करेगा। बहरहाल भारत का यह काम वाक़ई तारीफ़ के क़ाबिल है। इस विषय पर आज (18 दिसंबर 2013) हिन्दुस्तान में छपा में यह लेख छपा है जिसमें अमेरिका की नीयत और नीति का ख़ुलासा किया गया है-
राजनयिक का अपमान
अमेरिका में भारतीय राजनयिक देवयानी खोबरागड़े की गिरफ्तारी और उनके साथ बदसलूकी पर भारतीय समाज और सरकार की सख्त प्रतिक्रिया स्वाभाविक है। देवयानी खोबरागडे पर जो आरोप हैं, वे गंभीर आपराधिक आरोप नहीं हैं, इसलिए उनके साथ ऐसा रवैया न सिर्फ राजनयिक नजरिये से गलत है, बल्कि अमानवीय भी है। राजनयिकों के साथ व्यवहार के बारे में वियना समझौते के नियमों के मुताबिक भी उनकी गिरफ्तारी और उन्हें हथकड़ी लगाना कहीं से जायज नहीं ठहराया जा सकता। किसी अमेरिकी नागरिक पर भी ऐसे आरोप होते, तो शायद उसके साथ ऐसा नहीं किया जाता, लेकिन एक मित्र देश की राजनयिक के साथ ऐसा सुलूक करना अमेरिकी अहंकार और असंवेदनशीलता को दिखाता है। लेकिन यह पहला मौका नहीं है कि विदेशी राजनयिकों के साथ अमेरिका में आम अपराधी जैसा सुलूक किया गया है।
इसके पहले भी ऐसी घटनाएं भारत या अन्य देशों के राजनयिकों के साथ होती रही हैं। अमेरिका दुनिया की एकमात्र महाशक्ति है, इसलिए दूसरे देश सिर्फ औपचारिक विरोध करके रह जाते हैं। मगर भारत सरकार ने बदले में सख्त कार्रवाई करके जो संदेश दिया है, वह शायद दूसरे ऐसे देशों का हौसला भी बढमएगा। अमेरिका का यह कहना है कि वियना समझौते के तहत प्राप्त सुरक्षा सिर्फ राजनयिक कामकाज के लिए है, और अगर कोई राजनयिक किसी अराजनयिक मामले में फंसता है, तो उसके साथ आम अपराधी की तरह की सलूक किया जाएगा। कुछ साल पहले एक यूरोपीय देश के राजनयिक को एक सड़क दुर्घटना के सिलसिले में अमेरिका में जेल भेज दिया गया था। लेकिन अमेरिका दूसरे देशों में अपने राजनयिक ही नहीं, अन्य लोगों के लिए भी विशेष सुविधाएं चाहता है, भले ही वे संदेहास्पद चरित्र के लोग हों।
कुछ वक्त पहले अमेरिकी दूतावास के लिए काम कर रहे एक अमेरिकी ठेकेदार ने पाकिस्तान में कुछ लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी थी। उसे राजनयिक सुरक्षा नहीं मिली हुई थी, लेकिन अमेरिका ने दबाव डालकर उसे पाकिस्तान से छुड़वाकर अमेरिका पहुंचा दिया। ऐसे अनेक उदाहरण हैं। मुंबई में 26/11 के आतंकवादी हमलों का आरोपी डेविड हेडली अमेरिकी जेल में बंद है, लेकिन अमेरिका उसे भारत को सौंपने को तैयार नहीं है। डेविड हेडली अमेरिकी खुफिया एजेंसियों के लिए काम करता था और उसकी हरकतों की जानकारी होते हुए भी अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों ने उसे वक्त रहते नहीं पकड़ था, न भारत को उसकी हरकतों की जानकारी दी थी। अगर ऐसा किया जाता, तो शायद 26/11 का हमला रोका जा सकता था। इससे जाहिर होता है कि अमेरिका का दूसरे देशों से व्यवहार परस्पर सम्मान और अंतरराष्ट्रीय परंपराओं के मुताबिक नहीं, बल्कि ताकत के तर्क से तय होता है। इस मामले में भी भारत का यही कहना है कि सामान्य मानवीय शिष्टाचार का खयाल तो रखा जाना चाहिए था। 
भारत में राजनयिकों के विशेषाधिकारों का खयाल रखा जाता है। कुछ तो यह राजनयिक शिष्टाचार की वजह से है, और कुछ भारत की वीआईपी संस्कृति की वजह से। अगर भारत ने अमेरिकी राजनयिकों के विशेषाधिकारों में कटौती की है, तो यह वक्त है कि हम अपने रवैये में कुछ स्थायी बदलाव लाएं। ऐसे देशों के राजनयिकों के विशेषाधिकार कम कर दें, जो हमारे नागरिकों के सम्मान का खयाल नहीं रखते। अगर हम सिर्फ राजनयिकों या विदेशी नागरिकों ही नहीं, हमारे अपने विशेषाधिकार प्राप्त नागरिकों को भी आम नागरिकों की तरह समझना सीख जाएंगे, तो हमारी नाराजगी का भी असर ज्यादा पडेगा।
इस लेख के बाद यह सवाल उठता है कि आखि़र अमेरिकी हाथों से क्यों उतर रहे हैं भारतीयों के कपड़े ?
इसका जवाब यही है कि एशियाई देशों की शक्ति बिखरी हुई है। जब तक ये देश अपने साझा हित के लिए एक नहीं होंगे तब तक भारतीयों के कपड़े उतरते ही रहेंगे। आगे से चाहे राजनियकों के कपड़े न भी उतारे जाएं तब भी आम भारतीयों को तो ज़िल्लत बर्दाश्त करनी ही पड़ेगी।
बहरहाल संशोधित लोकपाल मुबारक हो।
सुना है कि यह संसद में पास हो गया है और अन्ना ने अपना अनशन तोड़ दिया है। उनके मंच पर उनके साथ खड़े बीजेपी और कांग्रेस के समर्थक भी ख़ुशी से तिरंगा फहरा रहे हैं।
अब सरकार को इस लोकपाल से दो चार मंत्रियों को पकड़वाना ही पड़ेगा वर्ना अरविंद केजरीवाल का आरोप सच साबित हो जाएगा कि इस क़ानून से तो एक चूहा भी जेल नहीं जाएगा।
धन्यवाद अरविंद केजरीवाल, इतने अच्छे कमेंट के लिए कि लोकपाल के शिकंजे में भ्रष्टाचारी को फंसना ही पड़ गया।
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फिर वही ढाक के तीन पात



चार राज्यों में चुनाव के परिणामों ने आज सच में भारत में महोत्सव का माहौल बना दिया है ! वर्षों की मायूसी, मोह भंग एवँ जद्दोजहद की ज़िंदगी जीने के बाद आज भारत की जनता के मुख पर अरसे के बाद एक सच्ची मुस्कान दिखाई दी है ! सत्ता परिवर्तन के साथ देश में राहत का वातावरण भी तैयार हो सकेगा जनता इसके लिये आशान्वित हो उठी है ! अन्याय, अराजकता, भ्रष्टाचार, मँहगाई, असुरक्षा और आतंक की चक्की में पिसते-पिसते आम जनता की मनोदशा इतनी दुर्बल हो गयी थी कि उसके लिये आस्था, विश्वास, निष्ठा, भरोसा जैसे शब्द अपना अर्थ खो चुके थे ! इतने वर्षों तक आकण्ठ भर चुका पाप का घड़ा एक दिन तो फूटना ही था ! आज के चुनाव परिणाम के साथ यह शुभ दिन भी आ गया ! आज सच में उत्सव मनाने का दिन है !
इन चुनावों में कॉंग्रेस पार्टी की हार होगी और भारतीय जनता पार्टी की जीत होगी इसके लिये तो जनता मानसिक रूप से तैयार थी ही लेकिन अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भी इतने ज़ोरदार तरीके से अपनी आमद दर्ज करायेगी यह अवश्य ही अप्रत्याशित था ! सभी विजेताओं को हार्दिक बधाई एवँ शुभकामनायें !
जिस तरह से दिल्ली में सीटों के आँकड़े सामने आये हैं उनके अनुसार दिल्ली में पुन: त्रिशंकु विधान सभा बनने के आसार दिखाई दे रहे हैं ! ३१ सीटें जीत कर पूर्ण बहुमत ना मिलने के कारण सरकार बनाने के लिये ना तो भारतीय जनता पार्टी ही उत्सुक दिखाई दे रही है ना ही २८ सीटें जीतने के बाद आम आदमी पार्टी ! बदलाव होना चाहिये लेकिन इस तरह का जनादेश जनता का कोई भला नहीं कर सकता यह भी विचारणीय है ! जनता ने अपना समर्थन देकर कॉंग्रेस पार्टी को करारी हार दिलाई सिर्फ इसी आशा में कि अब साफ़ सुथरी सरकार सत्ता सम्हालेगी और आम जनता की चिंताओं और फिक्रों को विराम लग जायेगा ! लेकिन जो परिणाम सामने आये उसमें कोई भी पार्टी अकेली सरकार बनाने के लिये समर्थ नहीं ! और आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी दोनों मिल कर सरकार बनाने के लिये तैयार नहीं ! दोनों ही विपक्ष में बैठने की बात कर रहे हैं जिसका सीधा अर्थ है राष्ट्रपति शासन अर्थात परदे के पीछे से फिर कॉंग्रेस का ही शासन ! यानी कि फिर वही ढाक के तीन पात ! यदि ऐसा होता है तो जनता फिर छली जायेगी ! चुनाव खाली हार जीत का ही खेल नहीं है यह जनता द्वारा सरकार बनाये जाने की एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रक्रिया है ! चुनाव में खड़े होना का अर्थ देश के प्रति अपने समर्पण एवं त्याग को स्थापित करना है यह मात्र अहम तुष्टि का साधन नहीं है ! इन परिणामों ने फिर से चिंतित कर दिया है ! तो क्या अब भी दिल्ली के भविष्य पर अनिश्चय के बादल ही मँडराते रहेंगे ?
जनता ने चुनाव में मतदान करके अपना फ़र्ज़ अदा कर दिया ! अब फ़र्ज़ अदायगी का नंबर नेताओं का है कि वे आपसी मतभेद भूल कर अपने अपने प्रदेशों को साफ़ सुथरी, निष्ठावान एवँ कर्तव्यपरायण सरकार दें जो आम आदमी की दिक्कतों को समझे, उन्हें दूर करने के लिये प्रयासरत रहे और भ्रष्टाचार, स्वार्थ और अकर्मण्यता की पुरानी प्रचलित परम्पराओं को तोड़ कर अपनी साफ़ सुथरी छवि जनता के सामने स्थापित करे !

साधना वैद  

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लिफ़्ट (कहानी)

        आलीशान होटल की लिफ़्ट ऊपर से नीचे आकर रूकी तो अंदर से एक एक करके सभी निकले और चले गए। मैं इत्मीनान से उसमें दाखि़ल हो गया। मेरे पीछे पीछे लम्बे क़द की एक ख़ूबसूरत लड़की भी लिफ़्ट में आ गई। वह उम्र में मेरी छोटी बेटी जैसी थी लेकिन उसका लिबास मेरी बेटियों जैसा न था। उसने मिनी स्कर्ट से भी छोटा कुछ पहन रखा था और टॉप के नाम पर जो था, वह स्किन कलर में भी था और स्किन टाइट भी। अलबत्ता उसका गला ढीला था, जो उसकी छातियों पर पड़ा दायें बायें झूल रहा था। मुख्तसर यह कि उसका अन्दाज़ पूरी तरह अमेरिकन था। एक औरत जो कुछ छिपाना चाहती है, वह सब यह दिखा रही थी।
       शायद उसने क़ानून के सम्मान के लिए ही कपड़े पहन रखे थे क्योंकि सार्वजनिक जगहों पर नंगा घूमना क़ानूनी तौर पर मना है। लिफ़्ट का बटन दबाने के लिए उसने अपना हाथ बढ़ाया तो मैंने घबरा कर अपना हाथ रोक लिया। उसने अपनी मंज़िल का बटन दबाकर अपना सनग्लास माथे पर अटका लिया और फिर मेरी तरफ़ देखा। वह मेरे घबराए हुए चेहरे का बग़ौर मुआयना कर रही थी। 
उसके बाल, बदन और लिबास से जो मुरक्कब ख़ुश्बू (मिश्रित सुगंध) उड़कर मेरी नाक में आ रही थी। वही मेरे बूढ़े दिल की धड़कनें बढ़ा रही थीं। इस पर यह कि उसने अपने पर्स से एक छोटी सी बॉटल निकाल कर एक घूंट भी पी ली। अब उसके मुंह से व्हिस्की की गंध भी आ रही थी। शराबी नशे में किसी भी हद तक जा सकता है और इसकी हद तो बेहद लग रही थी। मुझ पर बदहवासी तारी हो गई। ए.सी. के बावुजूद मेरी पेशानी पर पसीने के क़तरे नुमूदार हो गए। मैंने जेब से रूमाल निकाल कर अपना माथा साफ़ किया तो उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान तैरने लगी।
उसकी मंज़िल आने में अभी कुछ वक्त और था। उसने वक्तगुज़ारी के लिए अपना पर्स खोलकर कुछ तलाश किया। इस तलाश में हर बार वह कोई न कोई चीज़ हाथ में लेकर बाहर निकालती। जिनकी बनावट देखकर और इस्तेमाल की कल्पना करके ही मेरी धड़कनें बेक़ाबू हो रही थीं। इस तलाश में उसने अपने काम की सारी चीज़ें एक एक करके मुझे दिखा दीं। शायद यही उसका मक़सद था। 
उसका पर्सं भी इम्पोर्टेड था और उसकी चीज़ें भी। पर्स बंद करके उसने एक बार फिर मुझे मुस्कुरा कर देखा। मैं समझ गया कि वह मेरी हालत से लुत्फ़अन्दोज़ हो रही है। कभी कभी लम्हे कैसे सदियां बन जाते हैं, इसका अंदाज़ा मुझे आज हो रहा था।
उसकी मंज़िल पर लिफ़्ट रूकी तो मैं भी उसके पीछे पीछे ही लिफ़्ट से निकल आया। इस जैसी क़ातिल हसीना किसी भी मंज़िल से लिफ़्ट में फिर से दाखि़ल हो सकती थी। मैं दोबारा रिस्क नहीं लेना चाहता था। मैं उसके बराबर से निकला तो उसने बड़ी अदा के साथ अपने बाल समेटे और खुलकर एक क़हक़हा लगाया। मुझे अभी 5 मंज़िल और ऊपर जाना था। मैं सीढ़ियों की तरफ़ बढ़ गया। होटल की सीढ़ियां लिफ़्ट के मुक़ाबले ज़्यादा सेफ़ होती हैं।  
मैं बूढ़ा हूँ, दिल का मरीज़ हूँ। सीढ़िया चढ़ना मेरे लिए जानलेवा हो सकता है लेकिन फिर भी इज़्ज़त बचाने का यही एक तरीक़ा मुझे नज़र आया। वह मुझे सीढ़ियों पर चढ़ते देखकर और ज़्यादा ज़ोर से हंस रही है। उसकी नज़र के दायरे से निकलने के लिए मैं घबराकर तेज़ तेज़ क़दम उठा रहा हूँ। अचानक मुझे अपना दिल बैठता हुआ सा लग रहा है और मेरी चेतना डूबती जा रही है। पता नहीं अब कभी आंख खुलेगी या नहीं लेकिन मेरी इज़्ज़त बच गई है। मुझे ख़ुशी है कि मैं अपने दोस्तों, रिश्तेदारों और घरवालों की नज़र में शर्मिन्दा होने से बच गया हूँ।
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भारतीय नारी ब्लॉग पर हिन्दी ब्लॉगर शिखा कौशिक जी की लघुकथा ‘पुरूष हुए शर्मिन्दा’ पढ़कर हमें यह लघुकथा लिखने की प्रेरणा प्राप्त हुई है जो एक दूसरा पहलू भी सामने लाती है। इससे पता चलता है कि हमारे समाज में कितने रंग-बिरंगे व्यक्ति रहते हैं और यह कि न सभी पुरूष एक जैसे हैं और न ही सारी औरतें एक जैसी हो सकती हैं।
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जमाली चाय दे स्वर्गिक आनंद का अहसास Best Herbal Tea

कहते हैं कि शराब इनसान को उसकी अपनी ही नज़र में गिरा देती है। अख़बारी दुनिया के टी. टी. बहादुर अपनी नज़र में गिरे या नहीं, इसका तो पता नहीं है लेकिन वह अपने दुश्मनों की नज़र में ज़रूर चढ़ गए हैं। टी के बजाय उन्होंने शराब पी ली और अपने दोस्त की लड़की को कुछ ऐसा दिखा दिया कि वह सीसीटीवी फ़ुटेज में लिफ़्ट से निकल कर तेज़ तेज़ भागती सी दिखाई दी। शराब इनसान को बदनामी और जि़ल्लत के सिवाय और दे ही क्या सकती है?
अक्लमंद आदमी तो आजकल चाय पीने से भी बचते हैं। इसके ज़रिये बिला वजह  बॉडी में शुगर जाती रहती है और फिर अपने ही हाथों करेले निचोडकर पीने पड़ते हैं। चाय पीने से शरीर में तेज़ाब बनता है और वीर्य भी पतला पड़ जाता है। इसी के चलते एक बड़े लीडर को अपनी घरवाली को छोड़कर भागना पड़ गया। पहले वह चाय बेचा करता था। 
लोगों ने खोजबीन की तो उसने बहाना बनाया कि दरअसल उसके माता पिता ने उसकी मर्ज़ी  के बिना उसका विवाह कर दिया था। इसलिए उसने अपनी पत्नी को छोड़ दिया था। वह एक स्वयंसेवी संस्था का मेम्बर बन गया। जो माता पिता की सेवा न कर पाया वह देश की सेवा में जुट गया। बीवी का फ़रार मुजरिम टी. वी. पर छाता चला गया। कर्तव्य  और नैतिकता से डिगा हुआ वह चाय वाला अपने भाषणों में भी तेज़ाब के सिवा कुछ और न उगल सका। बदले में उसे मोटी मलाई मिलने लगी। मलाई मिली तो चाय के साइड इफ़ेक्ट भी दूर होते चले गए।
आज (24 नवंबर 2013 को) चाय वाले के बारे में टी. वी. पर यह ताज़ा ख़बर मिल रही है कि बीवी को छोड़ने के बाद उसने बरसों से एक बाहरवाली को एंगेज कर रखा है। उस बाहरवाली के परिवार वालों को उस चायवाले ने बहुत नवाज़ा है। इससे मलाई की तासीर का पता चलता है। चाय वाले ने मलाई खिलाई तो बाहरवाली ने आज तक यौन शोषण की शिकायत नहीं की।
आज भलाई का ज़माना हो या न हो लेकिन मलाई का ज़माना ज़रूर है। शराब के नशे में अपने टी. टी. बहादुर यह हक़ीक़त भी फ़रामोश कर बैठे। बिना मलाई के तो शिकायत ही होनी थी सो हुई। टी. टी. बहादुर परेशान हैं। पुलिस किसी भी वक्त उनके घर की बेल बजा सकती है। जो प्रशिक्षित कार्यकर्ता चायवाले की बाहरवाली पर आंखें बन्द किये बैठे हैं, वे टी. टी. पर त्यौरियां चढ़ा रहे हैं। अन्याय सांप्रदायिकता का मूल लक्षण है। प्रतिशोध ही उनका राष्ट्रवाद है।
वे न्याय की बात कभी नहीं कह सकते। वे चायवाले से कभी नहीं कह सकते कि भाई साहब! जिस पत्नी का जीवन ख़राब किया है, उससे माफ़ी मांगो। बाहर जो नैतिकता, मर्यादा और क़ानून का उल्लंघन कर रहे हो, उसकी सज़ा भुगतो। अलबत्ता ये लोग टी. टी. बहादुर को जेल भिजवाने की जी जान से कोशिश कर रहे हैं।
जब आदमी अपनी न्याय चेतना को खो दे तो समझ लीजिए कि वह इंसान कहलाने का हक़ खो चुका है। इंसान वही है जो न्याय को पहचाने और अपने कर्तव्य को पूरा करे। इसके बदले में इंसान को कोई मालो-शोहरत भले ही न मिले लेकिन वह ‘स्व में स्थित’ रहता है, अपने आपे में क़ायम रहता है। जो बड़ी साधनाओं से नहीं हो पाता। वह सहज ही हो सकता है। यह सबसे बड़ी दौलत है। परलोक में यही दौलत काम आएगी। इसके लिए बार बार अपने माईन्ड को डी-कन्डीशंड करते रहने की ज़रूरत है। 
किसी की हिमायत में या किसी के विरोध में बोलते समय बार बार अपने मन में यह सवाल पूछो कि मैं इसकी हिमायत या इसका विरोध क्यों कर रहा हूं?
फ़ौरन ही आपको जवाब मिल जाएगा। या तो आप कुछ दुनियावी चीज़ पाने के लिए ऐसा कर रहे होंगे या फिर कुछ खोने के डर से। यह पशुवृत्ति है।
आप इसे नकार दीजिए। थोड़ी सी कोशिश करने के बाद आपके कर्म न्याय और कर्तव्य की भावना से होने लगेंगे। यही आपके जन्म लेने का मक़सद है। ऐसे लोगों के लिए मौत नहीं है। इनके लिए मौत अनन्त जीवन के अनन्त सुख में प्रवेश का माध्यम है। योग के बाद अब बात हो जाए आयुर्वेद की।
बहरहाल जब तक जीवन है। तब तक शराब न पिएं। चाहें तो चाय पी लें। चाय एसिड बनाए तो बाद में मलाई का सेवन कर लें। चाय में ही दूध और मलाई डाल लें तो आपका वक्त बच जाएगा।
हम एक निराली चाय का सेवन करते हैं। एक बड़े कप के बराबर पानी में 10 दाने सौंफ़, 10 अजवायन, 1 ग्राम अदरक, 1 लौंग, 2 काली मिर्च फोड़कर, एक छोटी इलायची, 5-7 तुलसी के पत्ते, 1 छुहारा व 1 बादाम मोटा कतरकर हल्की आंच पर चन्द मिनट पका लेते हैं। इसे छानकर कप में निकाल लेते हैं। छलनी में से बादाम और छुहारे के पीस चम्मच से चुन चुन कर उठाकर कप में डाल लेते हैं। मिठास के लिए एक-दो चम्मच शहद मिलाते हैं। इस चाय को पीने के साथ हम बीच बीच में छुहारे और बादाम के पीस भी चम्मच से निकाल कर खाते रहते हैं। यह निराली चाय हमारे द्वारा विकसित किये जाने के कारण जमाली चाय के नाम से याद की जा सकती है।
जमाली चाय के फ़ायदेः 
इसका ज़ायक़ा बेनज़ीर और फ़ायदे बे-मिसाल हैं। कहां तक इसके फ़ायदे बताएं। यह चाय घर को स्वर्ग बना देती है। जो स्वर्ग और जन्नत के इनकारी हैं। वे इसका सेवन करके नमूने के तौर पर दुनिया में ही स्वर्ग का आनंद और जन्नत का लुत्फ़ का अहसास कर सकते हैं। जो नियमित रूप से इसे पीता है। वह घरवाली को छोड़कर नहीं भाग सकता और घरवाली उसे छोड़कर नहीं भाग सकती। आंत, लिवर, मन और माईन्ड पर भी इसके लाजवाब असरात पड़ते हैं। डिप्रेशन पास नहीं आता, आ जाए तो टिक नहीं पाता। आत्महत्या का विचार मन को नहीं भाएगा और जवानी में बुढ़ापा नहीं आएगा। बुढ़ापे में सुस्ती और थकावट नहीं आएगी। आप ख़ुद को हर दम घोड़े पर सवार महसूस करेंगे। अगर आज के ज़माने में आपके पास घोड़ा है तो वास्तव में आप एक राजा हैं। आप राजा हैं तो आपकी पत्नी रानी है। आपके पास घोड़ा (अश्व) भी है और रानी भी है। अश्वमेघ यज्ञ का पुण्य पाना अब आपके अपने हाथ में है। इस चाय से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष सबकी सिद्धि सहज ही हो जाएगी। ऋषियों ने आयुर्वेद से भी जीवन का मक़सद ही पूरा किया है।
दूध और मलाई हम नाश्ते में ले लेते हैं। आप दूध-मलाई न लेना चाहें तो भी किसी न किसी रूप में कैल्शियम की निश्चित मात्रा नियमित रूप से लेते रहें। हड्डियां मज़बूत हों तो आदमी बहुत कुछ झेल सकता है।
टी. टी. बहादुर के कंधे देखकर लगता है कि उनकी हड्डियां भी काफ़ी मज़बूत हैं। राजनीति के महा-मगरमच्छों के जबड़े उनकी हड्डियों की डेन्सिटी कैसे नापते हैं?
चाय पीते हुए हम देख ही रहे हैं। आप भी देखते रहिए।

डिस्क्लेमरः 

  • यह लेख किसी अख़बार वाले की हिमायत में या किसी चाय वाले के विरोध में नहीं है। 
  • इस पोस्ट को समझने के लिए पिछली पोस्ट ‘यौन उत्पीड़न किसे कहते हैं?’ पढ़ना ज़रूरी नहीं है।
 Source: http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/BUNIYAD/entry/ayurvedic-tea
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यौन उत्पीड़न किसे कहते हैं? yaun shoshan

तरूण तेजपाल ने बड़ी हिम्मत के साथ स्वीकार किया है कि हां, उन्होंने अपनी सहकर्मी महिला पत्रकार के साथ वह किया है जिसे वह यौन उत्पीड़न बता रही है।
वह सहकर्मी महिला पत्रकार भी बहुत बहादुर निकली। उसनेभी अपना उत्पीड़न भले ही करवा लिया लेकिन उसे बर्दाश्त बिल्कुल नहीं किया। उसने चिठ्ठी लिखकर तहलका पत्रिका की प्रबंध संपदिका शोमा सिंह को सारा माजरा बता दिया और सच्चाईदुनिया के सामने आ गई। पत्रकार का फ़र्ज़ यही तो होता है कि दुनिया के सामने सच्चाई ले आए।
देखिए, मॉडर्न एजुकेशन हमारे देश को कैसे कैसे बहादुर दे रही है।
उधर शोमा सिंह कह रही हैं कि मेरी पहली तरजीह महिला पत्रकार को अच्छा फ़ील कराना है और वह करा भी रही हैं।
अगर उत्पीड़िता ने अच्छा फ़ील कर लिया तो मामला आपसी सहमति से निपट भी सकता था लेकिन तरूण तेजपाल की सताई हुई पार्टियों को बैठे बिठाए मौक़ा मिल गया। वे तरूण तेजपाल को लम्बा नापने की फ़िराक़ में हैं। अगर ऐसे आड़े वक्त के लिए तरूण तेजपाल ने कोई सीडी बचाकर नहीं रखी है तो वह चौड़े में मारे जाएंगे। इसमें कोई शक नहीं है। जल में रहकर मगरमच्छों से इसीलिए तो कोई बैर नहीं करते।
बहरहाल ताज़ा ख़बर यह है कि गोवा पुलिस के उपमहानिरीक्षक ओ. पी. मिश्रा जी ने बताया है कि तरूण तेजपाल के खि़लाफ़ एफ़आईआर दर्ज कर ली गई है।
इस कांड के बाद एजुकेटिड पुरूषोंमें सहकर्मी महिलाओं के प्रति अविश्वास उत्पन्न होने का ख़तरा भी पैदा हो गया है। आनन्द के पलों का लुत्फ़ उठाते हुए कौन यह जान सकता है कि कल इसी लुत्फ़ को उत्पीड़न क़रार दिया जा सकता है।
तमाम अंदेशों के बावजूद होटलों में सम्मेलन और सेमिनार चलते रहेंगे और औरत और मर्द तरक्क़ी करते रहेंगे। यह भी सच है।
इस तरह की घटनाएं हमें कन्फ़्यूज़ कर देती हैं कि आखि़र यौन उत्पीड़न क्या है?
एक पढ़ी लिखी और बालिग़ लड़की को क्या चीज़ मजबूर करती है कि वह अपने आप को यौन शोषण के लिए अर्पित करने के लिए होटल के कमरे में ख़ुद ही चल कर जाए और फिर शोर मचाए।
क्या इसे मर्द का यौन उत्पीड़न न माना जाए?
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धर्म को विदा करो, विवेक को अपनाओ (कहानी)


ज्ञानतंत्र की रहस्यबोध कथाएं

वैसे तो उनका नाम तुषार था लेकिन श्री श्री गजदन्त प्रवेश पीड़क देव जी महाराज ने उसका अनुवाद करके उसे सरल कर दिया था। वह उन्हें ओला कहकर बुलाते थे। ओला बाबू ग़ज़ब के पियक्कड़थे। जब वे पी लेते थे तो बाज़ारे हुस्न की तरफ़ उनके क़दम ख़ुद ब ख़ुद उठ जाते थे। घर पर भी उनकी गर्लफ़्रेंड सेलेकर ब्वायफ़्रेन्ड तक सभी हस्बे ख्वाहिश आते जाते रहते थ। जिस समय तेज़ तूफ़ानी बरसात में उनकी पत्नी शीतल घर पर प्रसव पीड़ा से कराह रही थी। उस समय भी वे बाज़ारे हुस्न की किसी सिगड़ी पर अपना दिल सेक रहेथे। बहरहाल उनके घर दो जुड़वा बच्चे हुए।  बच्चे जनते हुए शीतल तन्हाई मेंही मर गई। तूफ़ान थमा तो कोई पड़ोसन उसके पति की शिकायत लेकर आई कि शीतल का पति उसके पति को अपनी सोहबत में रखकर ख़राब कर रहा है लेकिन वहां उसे जुड़वा बच्चे रोते हुए मिले। मुहल्ले के पंडित जी ने एक का नाम धर्म रख दिया और दूसरे का विवेक। पड़ोसी कभी नहीं जान पाए कि इन में पहले कौन पैदा हुआ, धर्म या विवेक?
बेमां के बच्चे पड़ोसियों और रिश्तेदारों की देखरेख में बड़े हुए। इसलिए वे ओला बाबूके बुरे असर से बच गए। धर्म और विवेक स्कूल जाने लायक़ हुए तो ताऊ, चाचा और मामा फूफा ने, सबने उन्हें बोर्डिंग स्कूल में दाखि़ल करवा दिया। साल में एक दो बार ही वे दोनोंअपने घर आ पाते। इसलिए वे ओला बाबू की सोहबत से बच बचाकर बड़े होते चले गए।
पढ़ाई पूरी करके वे दोनों घर लौटे तोओला बाबू की जान आफ़त में आ गई। अब अगर वे शराब पीतेया कोई और ऐब करते तो धर्म और विवेक दोनों उन्हें टोकते। इस टोका टोकी के चलतेओला बाबू के गर्लर्फ़ेन्ड और ब्वाॅयफ़्रेंन्ड ने तो उनके घर आना ही छोड़ दिया था। ओला बाबू की अक्ल शराब पीकर खोखली हो चुकी थी। वे उनके पास विचार करने लायक़ अक्ल न बची थी। उनके दोस्त भी उनकी ही तरह खोखले हो चुकेथे।  फिर भी उन्होंनेअपना मसला अपने दोस्तों के सामने रखा।
ओला बाबू बोले-मैंने तय कर लिया है कि मैं अपने दोनों बच्चों को, धर्म को और विवेक को त्याग दूंगा।
जग्गी ने पूछा-लेकिन क्यों?
ओला बाबू-दोनों बहुत टोका टाकी करते हैं। यह सब मुझे पसंद नहीं है। मां मर गई लेकिन दो मुस्टंडे मेरी जान को छोड़ गई।
केशव-यह ठीक नहीं है।
शरद-हां, यह ठीक नहीं है।
ओला बाबू-यह ठीक नहीं हैतो फिर ठीक तुम बता दो।
देखोठीक तो तुम्हारी रज्जो ही बता सकती है। तुम उसी से पता कर लो।
ओला बाबू बाज़ारे हुस्न पहुंचे। रज्जो ने पूरी बात सुनी। वह दो चार बार धर्म और विवेक से मिल भी चुकी थी। उसने कहा कि दोनों को छोड़ना वाक़ई ठीक नहीं है। बुढ़ापे के लिए एक लाठी तो साथ रखनी ही चाहिए। तुम धर्म को विदा करोऔर विवेक को अपना लो।
...लेकिन टोका टोकी तो विवेक भी करता है-ओला बोला।
अब करता है। धर्म से जुदा होकर नहीं करेगा।-रज्जो बोली।
क्या मतलब?-ओला ने कॉस्मिक लेवल की हैरानी ज़ाहिर की।
देखो, धर्म सोचता है सही-ग़लत की बुनियाद पर और विवेक सोचता है नफ़े-नुक्सान की बुनियाद पर। धर्म साथ में होता है विवेक पर धर्म हावी रहता है। वह नफ़ा नुक्सान सही-ग़लत की बुनियाद पर तय करता है। आपको मनमानी करनी है तो धर्म कोविदा कर दोगे तो फिर विवेक सही-ग़लत की बुनियाद पर नहीं सोचेगा। वह सोचेगा नफ़े-नुक्सान की बुनियाद पर। विवेक को लगेगा कि अगर वह आपकोआपकी लतों पर टोकेगा तो फिर आप उसे भी विदा कर देंगे। लिहाज़ा वह आपको नहीं टोकेगा और तुम्हारी मनमानी चलती रहेगी। धर्म से कटते ही विवेक का सोचने का अंदाज़ बदल जाता है। यह हम से ज़्यादा कौन जान सकता है।-रज्जो ने अपने तजुर्बे को दलील के तौर पर पेश किया।
ओला बाबू ने अपने घर से धर्म को विदा कर दिया। विवेक अब भी उनके साथ है लेकिन विवेक के साथ कोई नहीं है। विवेक ने धर्म से जुदा नहीं होना चाहा लेकिन उसके अरमानों पर तुषारापात हो चुका है।
ओला बाबू अब इस समस्या को हल करने के विशेषज्ञ के रूप में मशहूर हो चुके हैं। दूर दराज़ से लोग उनके वचन सुनने के लिए आने लगे हैं। सबके घर में धर्म और विवेक के रूप में कोई न कोई मौजूद है। वह सबको यही सलाह देते हैं कि धर्म को विदा करो, विवेक को अपना लो।

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मानवता को इमाम हुसैन की बेमिसाल देन Imam Husain

सांप्रदायिकता आतंकवाद की जननी है। सत्ता पाने के इच्छुक तत्व लोगों का समर्थन पाने के लिए सांप्रदायिकता का सहारा लेते हैं। वे सांप्रदायिकता के घिनौने चेहरे पर राष्ट्रवाद और क़ौमियत का पर्दा डाल देते हैं। अब वे अपने विरोधियों को राष्ट्र-विरोधी कहते हैं और उन्हें मार डालते हैं। इस तरह जो आतंकवाद मानवता के प्रति बदतरीन जुर्म है, उसे राष्ट्र की सेवा के रूप में पेश किया जाता है।
आतंक फैलाने के लिए जन और धन की ज़रूरत होती है। पूंजीपतियों और ज़मींदारों की मदद से राजनेता उन्हें ये दोनों मुहैया कराते हैं। आतंकवाद राजनैतिक संरक्षण के बिना पल ही नहीं सकता। दुनिया में जितने भी आतंकवादी हुए हैं या आज हैं, वे किसी न किसी राजनैतिक शक्ति के द्वारा खड़े किए गए हैं। आतंकवाद का लाभ इन राजनेताओं को ही मिलता है और वे पूंजीपतियों और ज़मींदारों को भरपूर लाभ पहुंचाते हैं। आम जनता के हिस्से मे हमेशा सिर्फ़ नुक्सान आता है।
धर्म पर चलने वाले लोग सांप्रदायिकता (अरबी में असबियत) को ख़त्म करते हैं। सांप्रदायिकता पर चलने वाले ऐसे धार्मिक लोगों को अपने रास्ते की रूकावट मानते हैं और हटा देते हैं। सांप्रदायिकता का परवान चढ़ना धर्म का नष्ट होते चले जाना है। सांप्रदायिकता धर्म की दया, प्रेम और परोपकार की भावना का लोप करती है और वह जनमानस के रूझान और उनकी रूचि को बदल देती है।
इसकी एक मिसासल यज़ीद है। उसके सैनिकों ने हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु का क़त्ल कर दिया, उनके परिवार के दर्जनों लोगों को क़त्ल कर दिया। उनके बच्चों तक को क़त्ल कर दिया। उनके घर की जिन औरतों को सब मुसलमान माँ कहकर पुकारते थे। उन्हें क़ैद कर लिया। यह सब उसने हुकूमत के लिए किया और यह सब उसने लोगों के सामने किया और लोगों के सपोर्ट से किया। यह सब उसने अपने लोगों से ही करवाया। लोगों ने उसके लिए यह सब क़बीलाई असबियत (क़बीला आधारित सांप्रदायिकता) की बुनियाद पर किया। इमाम हुसैन रज़ि. के क़त्ल के बाद उनका सिर काट कर यज़ीद के दरबार में लाया गया। उस मुबारक सिर को देखकर यज़ीद ने जो कहा, वह उसकी असबियत (सांप्रदायिकता) साबित करने के लिए काफ़ी है-
‘...और क़त्ले हुसैन और उनके साथियों के क़त्ल के बाद उसने मुंह से निकाला कि मैंने (हुसैन वग़ैरह से) बदला ले लिया है जो उन्होंने मेरे बुज़ुर्गों और रईसों के साथ बदर में किया था।’
-शहीदे करबला और यज़ीद, पृष्ठ 109, लेखकः मौलाना क़ारी तैयब साहब रह., पूर्व मोहतमिम दारूल उलूम देवबन्द
The place where Husayn's head is kept, Umayyad Mosque, Damascus

यज़ीद के सामने धार्मिक शक्तियाँ कमज़ोर पड़ चुकी थीं। वे उससे मुक़ाबला नहीं कर सकती थीं लेकिन फिर भी उसके ज़ुल्म को ज़ुल्म कहने से वे न रूके। हज़रत ज़ैद बिन अरक़म एक ऐसे ही धार्मिक शख्स थे। वह अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथियों में से थे। यज़ीद के वक़्त तक वह बूढ़े हो चुके थे। उन्होंने जो कहा, वह भी सांप्रदायिक शक्तियों के चाल, चरित्र और चेहरे को बेनक़ाब करता है-
‘तो ज़ैद (बिन अरक़म) रोने लगे तो इब्ने ज़ियाद ने कहा ख़ुदा तेरी आंखों को रोता हुआ ही रखे। ख़ुदा की क़सम अगर तू  बुड्ढा न होता जो सठिया गया हो और अक्ल तेरी मारी गई न होती तो मैं तेरी गर्दन उड़ा देता, तो ज़ैद बिन अरक़म खड़े हो गए और यहां से निकल गए, तो मैंने लोगों को यह कहते हुए सुना। वे कह रहे थे अल्लाह, ज़ैद बिन अरक़म ने एक ऐसा कलिमा कहा कि अगर इब्ने ज़ियाद उसे सुन लेता तो उन्हें ज़रूर क़त्ल कर देता। तो मैंने कहा, क्या कलिमा है जो ज़ैद बिन अरक़म ने फ़रमाया। तो कहा कि ज़ैद बिन अरक़म जब हम पर गुज़रे तो कह रहे थे कि ऐ अरब समाज! आज के बाद समझ लो कि तुम ग़ुलाम बन गए हो। तुमने फ़ातिमा के बेटे को क़त्ल कर दिया और सरदार बना लिया इब्ने मरजाना (इब्ने ज़ैद) को। जो तुम में के बेहतरीन लोगों को क़त्ल करेगा और बदतरीन लोगों को पनाह देगा।’
-शहीदे करबला और यज़ीद, पृष्ठ 101
हज़रत ज़ैद बिन अरक़म रज़ि. ने जो कहा था। वह हरफ़ ब हरफ़ सच साबित हुआ। इसी किताब के पृष्ठ 106 पर मशहूर अरबी किताब ‘अल-बदाया वन्-निहाया’ जिल्द 8 पृष्ठ 191 के हवाले से क़ारी तैयब साहब ने लिखा है कि जब इमाम हुसैन रज़ि. के क़त्ल पर इब्ने ज़ियाद ख़ुश हो रहा था। तब उसे हज़रत अब्दुल्लाह बिन अफ़ीफ़ अज़दी ने टोक दिया। इब्ने ज़ियाद ने उसे वहीं फांसी दिलवा दी।
यज़ीद में एक सांप्रदायिक व्यक्ति के सभी लक्षण पूरी तरह से देखे जा सकते हैं। वह एक नमूना है। यज़ीद मर गया लेकिन सांप्रदायिक प्रवृत्ति नहीं मरी। यज़ीद के बाद भी हुकूमत हथियाने के लिए सांप्रदायिकता का सहारा लिया गया और उसे राष्ट्रवाद का चोला ओढ़ाया गया।
वर्तमान पाकिस्तान सांप्रदायिक मुसलिम नेताओं की देन है। इसलाम के नाम पर पाकिस्तान मांगा गया और किसी मुसलिम धार्मिक हस्ती को पाकिस्तान सौंपने के बजाय उस पर सांप्रदायिक शक्तियां क़ाबिज़ हो गईं।
पाकिस्तानी राजनेता भारत में आतंकवादी भेजते हैं। वे भारत के सैनिकों के सिर काट कर ले जाते हैं। सिर काटने का काम केवल यज़ीदी सोच के ज़ालिम ही कर सकते हैं। इससे इस क्षेत्र में अशान्ति और अस्थिरता पैदा होती है। नेताओं को सुरक्षा के लिए हथियार ख़रीदने का बहाना मिलता है। पाकिस्तानी और भारतीय नेता, दोनों अमेरिका आदि देशों से हथियार ख़रीदते हैं। इसमें इन्हें लाभ के रूप में मोटा कमीशन मिल जाता है।
तमाम आतंकवादी घटनाओं के बाद भी भारत के नेता कहते हैं कि भारत पाकिस्तान को आतंकवाद के मामले में संदेह का लाभ देने के लिए तैयार है। आज आतंकवाद एक इंडस्ट्री बन चुकी है। इसका लाभ हथियार बेचने वाले देश उठा रहे हैं।
सांप्रदायिकता से सांप्रदायिकता को बढ़ावा मिलता है। पाकिस्तानी आतंकवादियों की चर्चा भारत के सांप्रदायिक तत्वों का पौष्टिक आहार है। ये हर दम पाकिस्तान के सांप्रदायिक नेताओं और आतंकवादियों की चर्चा करते रहते हैं। राष्ट्रवादी कहलाने वाले एक संगठन के प्रशिक्षित सांप्रदायिक विचारक और प्रचारक पाकिस्तान को संदेह का लाभ नहीं देना चाहते। ये उस पर हमला करना चाहते हैं। इससे भी इस क्षेत्र में अशान्ति और अस्थिरता पैदा होगी। इसका लाभ भी यहां के पूंजीपतियों, जमाख़ोरों, कालाबाज़ारी करने वाले ब्याजख़ोरों को ही मिलेगा, आम जनता को नहीं। ये लोग बिना जंग के भी आलू-प्याज़ से लेकर नमक तक महंगा किये हुए हैं। कोई युद्ध हो जाए तो ये खाना, पानी और दवा को मुंह मांगी क़ीमत पर बेच कर कई नस्लों की ऐश का इंतेज़ाम कर लेंगे।
सांप्रदायिक व्यक्ति निजि स्वार्थ के लिए आतंकवाद का सहारा लेकर धार्मिक हस्तियों का क़त्ल करते हैं क्योंकि वे सामूहिक हित और सामाजिक न्याय के लिए काम करते हैं। जिसकी आज्ञा परमेश्वर ने दी है।
परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना ही धर्म कहलाता है। ‘इसलाम’ शब्द का यही अर्थ है। सांप्रदायिक व्यक्ति धर्म का पालन नहीं कर सकता। वह अपने कुकर्मों को राष्ट्रवाद के आवरण से ढक लेता है। आम जनता उन्हें पहचान नहीं पाती लेकिन धार्मिक व्यक्ति उन्हें पहचानता है। मुजरिम उन लोगों को ज़रूर क़त्ल करते हैं, जो उन्हें जुर्म करते हुए देख ले, पहचान ले और उनके खि़लाफ़ गवाही दे। मारने और बचाने के इसी काम को सत्य-असत्य का संघर्ष कहा जाता है। सत्य और असत्य का संघर्ष इमाम हुसैन रज़ि. से पहले भी हुआ है और उनके बाद आज भी हो रहा है।
हम इसे टाल नहीं सकते लेकिन चुनाव हमारे अपने हाथ में है कि हम किस पक्ष का साथ देंगे ?
इमाम हुसैन रज़ि. केवल शियाओं के ही इमाम नहीं हैं बल्कि वे सुन्नियों के भी हैं। ‘शहीदे करबला और यज़ीद’ नामक किताब एक सुन्नी आलिम की लिखी हुई किताब है। दारूल उलूम देवबन्द के संस्थापक मौलाना क़ासिम नानौतवी साहब रह. का क़ौल भी इसके पृष्ठ 85 पर दर्ज है। जो उनके एक ख़त (क़ासिमुल उलूम, जिल्द 4 मक्तूब 9 पृष्ठ 14 व 15) से लिया गया है। इसमें मौलाना क़ासिम साहब रह. ने ‘यज़ीद पलीद’ लिखा है।
आलिमों की अक्सरियत ने यज़ीद को फ़ासिक़ माना है और जिन आलिमों पर यज़ीद की नीयत भी खुल गई। उन्होंने उसे काफ़िर माना है। इमाम अहमद बिन हम्बल रहमतुल्लाह अलैहि एक ऐसे ही आलिम हैं। सुन्नी समुदाय में उनका बहुत बड़ा रूतबा है। इस किताब के पृष्ठ 109 पर इस बात का भी तज़्करा है।
इमाम हुसैन शिया और सुन्नी के लिए ही इमाम (मार्गदर्शक) नहीं हैं बल्कि हरेक इंसान के लिए मार्गदर्शक हैं। जो सत्य का मार्ग देखना चाहे, वह उनकी जीवनी पढ़े और ग़ौर व फ़िक्र करे कि ऐसे महान मार्गदर्शक से हम कितना लाभ उठा पाए हैं और कितना लाभ उठा सकते हैं?
आतंकवाद को समाप्त करना है तो इमाम हुसैन रज़ि. की ज़िन्दगी को जाने बिना चारा ही नहीं है वर्ना आतंकवाद को ख़त्म करने के नाम पर उन कमज़ोरों और ग़रीबों को ख़त्म किया जाता रहेगा जिनका आतंकवाद से कोई रिश्ता ही नहीं है। इससे आतंकवाद पहले से ज़्यादा भीषण रूप लेता चला जाएगा।
आज यही हो रहा है और यह सब जानबूझ कर किया जा रहा है।
इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु की शहादत के क़िस्से का ज़िक्र कोई धार्मिक रस्म महज़ नहीं है बल्कि यह ज़माने की एक ज़रूरत है। यह एक आईना है। जिसमें हर शख्स अपना और अपने लीडरों को चेहरा देख सकता है। चाहे उसे कितने ही ख़ूबसूरत नक़ाब से क्यों न ढक दिया हो!
इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु इंसानियत के दुश्मनों को पहचानने की नज़र रखते थे। उन्होंने अपनी शहादत के ज़रिये हमें अपनी नज़र (दृष्टि) और अपना नज़रिया सब कुछ अता कर दिया है। अब कोई अंधा न रहेगा सिवाय उसके जिसे सत्य का विरोध ही करना है।
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