सादर ब्लॉगस्ते!: शोभना फेसबुक रत्न सम्मान प्रविष्टि संख्या - 14
 Posted on Sunday, March 3, 2013 by डॉ. दिलबागसिंह विर्क  in 
सादर ब्लॉगस्ते!: शोभना फेसबुक रत्न सम्मान प्रविष्टि संख्या - 14: ग़ज़ल    सोचो तुम तन्हाई में     लुटते हम दानाई में ।     उथले जल में कुछ न मिले    मिलता सब गहराई में ।     दौलत को सब कुछ माना    उलझे ...
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1 comments:
nice.
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