यह ब्लॉग दलित और मुस्लिम जीवन-मानसिकता आदि को लेकर है लेकिन इस बार इससे थोड़ा हटने की इजाजत चाहता हूं। दरअसल, मैं कनफ्यूज हो गया हूं और आपकी मदद चाहता हूं। मसला ही ऐसा है। गुस्सा भी है, संतोष भी लेकिन सबसे ज्यादा है तो भ्रम। मेरा छोटा बेटा पुणे में सिम्बायसिस का छात्र है। मैं उत्तर भारतीय हूं इसलिए वह भी यही है। उसकी मराठियों ने इसी कारण पिटाई कर दी। उसने रोते हुए फोन किया, ‘पापा, आज तक मुझे किसी ने एक थप्पड़ भी नहीं मारा था। आपने भी नहीं। लेकिन इन लोगों ने मुझे बहुत पीटा है।’ इस कारण मुझे गुस्सा बहुत है। एक पिता के तौर पर मुझे जो करना था, वह मैं कर रहा हूं। उसमें अपने जानते कोई कमी नहीं कर रहा। इस कारण संतोष है। लेकिन असमंजस इस कारण है कि आगे मुझे क्या करना चाहिए। वह फाइनल इयर में है और बस तीन महीने बचे हैं इसलिए उसे वापस जाने से रोकना मुमकिन नहीं है। कॅरियर का सवाल है। उसकी सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है। मैं अदना-सा आदमी। उसके लिए सुरक्षा-चक्र की व्यवस्था नहीं कर सकता। उसे कह भी नहीं सकता कि आगे ऐसी घटना नहीं होगी क्योंकि ऐसी घटनाएं रोज हो रही हैं। मैं जिस पीड़ा से गुजर रहा हूं, उससे संभव है, आपमें से कुछ लोग भी गुजर रहे हों। फिर भी, यह सवाल इसलिए है कि इसका इलाज क्या है। ‘पूरा देश एक है’- जैसी बातें उस आदमी के लिए महत्वपूर्ण नहीं हैं जो ऐसी पीड़ा से गुजर रहे हों। उन्हें ऐसा होता नहीं दिखता।
दिक्कतें एक-दो नहीं हैं। राष्ट्र-राज्य शक्ति में यकीन करने वालों के लिए इन कथित हिन्दुत्ववादी शक्तियों ने संकट पैदा करने में कभी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। यहां तक कि आजादी की लड़ाई के दौरान कांग्रेस में भी निचले स्तर तक कई ऐसे लोग थे जो इन शक्तियों के प्रभाव में थे। हाल के वर्षों में भी कांग्रेस में यह सोच दिखती रही है जिसे राजनीतिक विश्लेषकों ने ‘सॉफ्ट हिन्दुत्व’ का नाम दिया हुआ है। यह दरअसल वोटों की लड़ाई है और दोनों ही पक्ष आमने-सामने हैं। मुश्किल यह है कि अपनी तमाम राष्ट्रीय सोच के बावजूद कोई भी पार्टी इससे रास्ता निकालने में रुचि नहीं रख रही क्योंकि उसे यहां या वहां वोटों की फसल दिख रही। राहुल गांधी, ठाकरे परिवार के खिलाफ बयान दे रहे हैं लेकिन महाराष्ट्र में तो कांग्रेस-एनसीपी सरकार है। अगर इसी तरह की वारदात बिहार-यूपी में अभी हो तो कांग्रेसी कैसे-कैसे क्या-क्या करेंगे, यह देखने लायक हो सकता है। लेकिन महाराष्ट्र में हिंसक घटनाएं और जहरीली बयानबाजी होगी तो उसका फायदा भी क्यों न उठाया जाए!
यह अजीब बात है कि दुनिया जब ग्लोबल विलेज का शक्ल अख्तियार कर चुकी हो, इस तरह की बातें हो रही है। आस्ट्रेलिया और यहां-वहां भारतीयों पर होने वाले हमलों पर चीख-पुकार मचाने का ऐसे में कोई मायने नहीं। निहित स्वार्थ के चलते घर में खुद ही आग लगाने वाले लोगों को दुनिया के बारे में कहने का अधिकार नहीं है। ऐसा भी नहीं है कि हम-आप इसे नहीं समझते।
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इस ब्लॉग की शुरुआत दिल्ली से लखनऊ आते वक्त शताब्दी एक्सप्रेस में किया था। बगल में बैठे सज्जन ने दो-तीन वाक्य पढ़ लिए और पूछा, ‘यह सब किसे लिख रहे हैं?’ अपना परिचय देने से कतरा गया और कहा, ‘बस, ऐसे ही’ तो उन्होंने अखबार में छपी कुछ तस्वीरें दिखाते हुए कहा, ‘असली आतंकवादी यही हैं।’ पीछे बैठे दो युवा भी पूरी यात्रा के दौरान नेताओं की बातों का माखौल उड़ाते रहे। राजनीति इतनी बुरी चीज तो नहीं। अपना देश पूरी दुनिया में इसलिए भी सिर उठाए हुए है कि हमने इसी राजनीति के बल पर लोकतंत्र को हर हालत में जिंदा और जीवंत रखा है।
ऐसे में यह सब..। मैं और कनफ्यूज हो गया हूं।
साभार
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