bloging ki tika atippni ki duniya bhi ajib he

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  • Friday, March 25, 2011
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  • आपका अख्तर खान अकेला
  • in
  • ब्लोगिंग में टीका टिप्पणी की दुनिया भी अजीब हे

    दोस्तों यह ब्लोगिंग की दुनिया भी अजीब हे ब्लोगिंग की इस दुनिया में कभी ख़ुशी कभी गम तो कभी दोस्ती कभी दुश्मनी का माहोल गरम हे ब्लॉग की दुनिया में कई अच्छे अच्छे ऐसे लेखक हे जो स्थापित नहीं हो सके हें बहतरीन से बहतरीन लेखन बिना टिप्पणी का अनटच पढ़ा रहता हे जबकि एक सामान्य से भी  कम घर गृहस्ती का न समझ में आने वाला लेखन दर्जनों टिप्पणिया ले जाता हे . 
    ब्लोगिंग की दुनिया यह पक्षपात या रोग हे जिसे अपनी अपनी ढपली अपना अपना राग भी कहा जा सकता हे मेरे एक दोस्त जो हाल ही के नये ब्लोगर हें उन्होंने बहतर से बहतर लेखन पर भी टिप्पणिया नहीं आने का राज़ जब मुझसे पूंछा तो में निरुत्तर था इन ब्लोगर जनाब की खुद की कम्पुटर की दूकान हे साइबर केफे हे सो इन्होने सभी ब्लोगर्स जो रोज़ अपने लेखन पर दर्जनों टिप्पणियाँ प्राप्त करते हें प्रिंट आउट निकलवाकर कई साहित्यकारों पत्रकारों से जंचवाया  सभी ने जो लेखन दर्जनों टिप्पणी प्राप्त कर चुके थे उन्हें स्तरहीन ,व्यक्तिगत और मनमाना लेखन माना लेकिन जो लेखन एक भी टिप्पणी प्राप्त नहीं कर सका था उसको बहतरीन लेखन बताया यह ब्लोगर जनाब मेरे पास सभी की राय और सेकड़ों प्रिंट आउट लेकर आये में खुद सकते में था में समझ नहीं पा रहा था के इन नये जनाब ब्लोगर भाई को बेहतरीन लेखन के बाद भी टिप्पणियाँ क्यों नहीं मिल पा रही हे में सोचता रहा ब्लोगिंग की दुनिया में फेले जिस रोग से में भी पीड़ित हूँ में भी गिव एंड टेक के एडजस्टमेंट का बीमार हूँ और मेरी जिन पोस्टों को अख़बार की दुनिया ने सराहा हे पाठकों ने सराहा हे उन्हें भी प्रारम्भ में ब्लोगिंग की दुनिया में किसी ने देखना भी मुनासिब नहीं समझा खेर में तो लिखने के जूनून में व्यस्त हूँ में पीछे मुड़कर देखना नहीं चाहता लेकिन मुझे इन नये काबिल पत्रकार ब्लोगर को तो जवाब देना था उनका  सवाल में एक बार फिर दोहरा दूँ आखिर बहतर लिखने वाला अगर पूल में शामिल नहीं हे तो उसे वाह और टिप्पणिया क्यूँ नहीं मिलती और जो स्तरहीन निजी लेखन हे उन पर भी पूल होने के बाद दर्जनों टिप्पणियाँ केसे मिल जाती हे तो जनाब इस सवाल का जवाब देने के लियें मेने एक तकनीक अपनाई और वोह नीचे अंकित हे. 
    जनाब  हमारे कोटा में एक गुमानपुरा इलाका हे यहाँ एक मिठाई की और इसी नाम से नमकीन की मशहूर दूकान हे इस दूकान पर ब्रांड नेम बिकता हे दूकान के नाम से ही मिटाई बेशकीमती होती हे और लोग लाइन में लग कर इस दूकान से महंगी मिठाई खरीद कर ले जाते हें में इन ब्लोगर भाई को पहले इस दूकान पर मिठाई खिलाने ले गया वहन की दो तीन मिठाइयाँ टेस्ट की और भाव ताव किया एक कागज़ पर हर मिठाई का नाम और कीमत लिखी , फिर में इन जनाब को इंदिरा मार्केट ब्रिज्राज्पुरा एक दूकान नुमा कारखाने पर ले गया उनकी मिठाई की भी दूकान हे और मकबरा थाने के सामने एक ठेला भी लगता हे लेकिन सारी मिठाई इसी कारखाने में कारीगर बनाते हें मेने और इन जनाब ब्लोगर भाई ने इस दूकान पर वही महंगी दुकान वाली मिठाइयों के भाव पूंछे टेस्ट किया मिठाई वही थी लेकिन कीमत आधी थी जो मिठाई यहाँ दो सो से तीन सो रूपये किलो की थी वोह मिठाई इस गुमानपुरा की दूकान पर ६०० से एक हजार रूपये किलो थी मेने इन जनाब को बताया देखो मिठाई वही हे ब्रांड का फर्क हे जो मिठाई कम कीमत में भी कोई नहीं पूंछ रहा वही मिठाई महगी दुकान पर लोग लाइन लग कर ले रहे हें हम बाते कर ही रहे थे के इतनी देर में एक जनाब आये और वोह इस कारखाने का बना सारा माल एक टेम्पो में भर कर यहाँ से इसी सस्ते दामों में अपनी महंगी दूकान पर ले गये यानी इस कारखाने में जो मिठाई बन रही थी वही मिठाई कम कीमत देकर अपने ब्रांड से अपने डिब्बे में महंगे दामों में बेचीं जा रही थी मेरी इस तरकीब से नये ब्लोगर भाई को तुरंत बात समझ में आ गयी के ब्लोगर की दुनिया में भी अच्छा और बेहतर लेखन नहीं केवल और केवल ब्रांड ही चलता हे पूल बनता हे ग्रुप बनता हे और एक दुसरे को उठाने एक दुसरे को गिराने का सिलसिला चलता हे लेकिन मेने उनसे कहा के में आपकी बात से सहमत नहीं हूँ यहाँ कुछ बुरे हें तो बहुत सरे लोग इतने अच्छे हें जिनकी मदद से आप जर्रे से आफताब बन सकते हो और मेने उन्हें कुछ मेरे अनुभव मेरे अपने गुरु ब्लोगर भाईयों के किस्से मदद के कारनामे सुनाये तो यह जनाब थोड़े संतुष्ट हुए अब हो सकता हे के यह जनाब भी मेरे गुरु ब्लोगरों से सम्पर्क करे अगर ऐसा हुआ तो मुझे यकीन हे के मेरे गुरु ब्लोगर इन जनाब की मदद कर मेरे भरोसे को और मजबूत बनायेंगे और एक ऐसा वातावरण तय्यार करेंगे जिससे कोई अच्छा लिखें वाला छोटा ब्लोगर खुद को उपेक्षित और अकेला न समझे तभी इस ब्लोगिंग के कुछ दाग हट सकेंगे ............................. . अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

    1 comments:

    Dr. Yogendra Pal said...

    वैसे तो इस लेख पर कमेन्ट नहीं करता पर आपने मजबूर कर दिया

    १. सैंकडों प्रिंट आउट निकलवाकर साहित्यकारों को दिखाए, जिन साहित्यकारों को फालतू कमेन्ट पढ़ने का टाइम हो वो भी सैंकडों पेज, वो स्तर वाले हैं यह मैं कैसे मानूं?

    २. क्या टिप्पणियां स्तर को जांचने का सही तरीका है?

    ३. आप टिप्पणियों के लिए लिखते हो या पाठकों के लिए?

    ४. आप अपने लेख को ३-४ जगह लिख कर भी यदि टिप्पणी नहीं पा पा रहे हैं तो मुझे लगता है कि आपको अपना स्तर सुधारने की आवश्यकता है, सबसे पहले तो टाइटल को हिन्दी में लिखना शुरू कर दीजिए

    ५. ऐसा भी तो हो सकता है कि आपके एक ही लेख को ३-४ जगह देख कर मेरी तरह और लोग भी झुन्झुला जाते हों और आपके लिखे को पढते ही ना हों, मुझे यदि एक ही लेख तीन चार जगह लिखा मिलता है तो मैं मान लेता हूँ कि लिखने वाले ने सिर्फ टिप्पणी के लिए लिखा है, और बहुत ही निम्न स्तर का होगा, और मैं निम्न स्तरीय लेख क्यूँ पढूं |

    आपको सिर्फ ३-४ सामूहिक ब्लॉग ही मिले क्या, ठीक से खोजिये २५-३० मिल जायेंगे, शुरू हो जाओ कट-पेस्ट कट-पेस्ट करने में, मुफ्त ही तो है कौन सा रुपया लगता है- है ना?

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