सुलगती राख को कभी छुआ नहीं करते आग के शरारे किसी के हुआ नहीं करते .
मुहब्बत में मैंने तो एक सबक पाया है
वक़्त और आदमी कभी वफा नहीं करते .
ये बात और है कि खुदा को कबूल नहीं हैं
वरना कौन कहता है कि हम दुआ नहीं करते .
वो परिंदे परवाज़ के लिए उड़ा नहीं करते .
दिल के साथ दिमाग की भी सुन लिया करो
जज्बातों की रौ में यूं बहा नहीं करते .
तुम दर्द छुपाने की भले करो लाख कोशिश
मगर ये आंसू आँखों में छुपा नहीं करते .
काट रहे हैं हम ' विर्क ' वक्त जैसे-तैसे
ये मत पूछो , क्या करते हैं , क्या नहीं करते .
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