क्यों सोचते
तुम हो अकेले
वो भी साथ तुम्हारे
जो नाम तुम्हारा
नफरत से लेते
दिन रात तुम्हें कोसते
चर्चे शहर में करते
चाहते नहीं तो क्या
निरंतर याद तो करते
जो भी है दिल में
साफ़ साफ़ बताते
बेहतर हैं उनसे
जो अपना तो कहते
दिल में जहर रखते
भूले से याद ना करते
देख कर मुस्काराते
पीछे से मुंह चिडाते
इधर हाथ मिलाते
उधर खंजर मारते
24-03-03
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर4
497—167-03-11
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