द्विअर्थी शब्द हमेशा अश्लील नहीं होते। लेकिन अक्सर उनका इस्तेमाल अश्लील विचारों को कहने के लिए ही किया जाता है। इसलिए सभ्य समाज ऐसे शब्दों के प्रयोग से बचता है। एक शब्द है बाबा। बाबा एक द्विअर्थी नहीं बल्कि बहुअर्थी शब्द है, पर अश्लील नहीं। अंगरेज जब इस मुल्क में आए तो उनके बच्चे बाबा लोग कहलाए। हिन्दुस्तानी आयाएं इन बाबा लोगों की परवरिश करती थीं, ताकि मेमसाहब यहां की तपती गर्मी में कुछ सुकून महसूस कर सकें।
भारतीय राजनीति में देश को चलाने के लिए बाबा लोगों का एक तबकाहमेशा तत्पर रहा है। कुछ सीधे तो कुछ परोक्ष रूप से सत्ता चलाने वालों को नियंत्रित करके। इन बाबाओं की यात्रा कि शुरुआत अध्यात्म से होती है। वो आत्मा, परमात्मा, लोक-परलोक, सत्य-असत्य, योग, शुचिता आदि कि बातें करते हुए कब अचानक सेलेब्रिटी बन जाते हैं पता ही नहीं चलता। पहले हजारों फिर लाखो लोग उनके अनुयायी बन जाते हैं और तब राजनीतिक लोगों को बाबावाद भाने लगता है। कहते हैं चंद्रास्वामी की कार प्रधानमंत्री के निवास में बिना सुरक्षा जांच के घुसती थी। उन दिनों नरसिम्हाराव से जुड़े लगभग सभी प्रकरणों में चंद्रास्वामी का नाम जरूर जुड़ा होता था।
इंग्लैंड जा बसे गुजरात के व्यापारी लाखुभई पाठक ने राव और चंद्रास्वामी दोनों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। नामी अपराधी बबलू श्रीवास्तव ने जब सीबीआई को चंद्रास्वामी के दाऊद इब्राहीम से संबंधों के बारे में बताया, तब से स्वामीजी का सितारा डूबने लगा और नरसिम्हा राव भी किनारे लगे। लगभग उसी दौर में गहरी काली दाढ़ी और काले बाल वाले एक और गुरु कि तस्वीरें पत्रिकाओं में छपने लगीं। हमेशा सब कुछ समझ चुकने का भाव लिए उनकी मुस्कराहट उनका ट्रेड मार्क बन गई। श्री श्री रविशंकर सोने के गहनों में लदी-फदी उच्चवर्गीय महिलाओं और महंगी कारों में चलने वाले खाते पीते लोगों को जीवन जीने की कला सिखाने लगे।
एक पत्रकार मित्र श्री श्री के सहचर्य के किस्से रस ले कर सुनाते हैं। वो कुछ समय के लिए श्री श्री की टीम में रहे। एक दिन श्री श्री ने मंत्रणा के लिए उन्हें बुलाया और कहा, ‘ये पता कीजिए कि सोनिया गांधी तक कैसे पहुंचा जाए? उन तक पहुंचाना बहुत मुश्किल साबित हो रहा है।’ आर्ट ऑफ लिविंग सिखाने वाले किसी बाबा को आखिर सोनिया गांधी तक अप्रोच लगाने कि क्या जरुरत पड़ गई? फिर बाबा में नोबेल पुरस्कार की इच्छा बलवती हो उठी और श्री श्री के भक्त स्टोकहोम में उनके नाम की लोबिंग करने लगे।
दस साल पहले जब मैं नौकरी के लिए लंदन रवाना हुआ तो बाबा रामदेव आस्था चैनल पर नियमित कपालभाती करने लगे थे। धीरे-धीरे उनका नाम फैलने लगा। एक दिन बीबीसी के दफ्तर में हलचल बढ़ गई कि बाबा रामदेव लंदन आए हैं और संसद में योग करेंगे। ब्रिटेन के अखबारों में उनकी चर्चा थी और एक दिन वे बीबीसी स्टूडियो पहुंच गए। लेकिन उन्होंने तब राजनीति पर एक शब्द नहीं कहा। उनका पूरा जोर भारतीयता और योग पर था।
पर ये वो दौर था जब लालू यादव और नीतीश कुमार जैसे राजनीतिक लड़ाके बाबा रामदेव के साथ एक मंच पर आसीन नहीं हुए थे। शायद इसलिए बाबा के अंदर देश को राजनीतिक दिशा देने की इच्छा नहीं पनपी थी और अगर पनप रही थी तो उन्होंने उसे टीवी और अखबारों से बचा कर रखा था। बाबा रामदेव का राजनीतिक आत्मविश्वास उस दिन से अंगडाई लेने लगा जब सीपीएम की बृंदा करात को उन्होंने सरे-आम पटखनी देने में कामयाबी पाई। बृंदा ने आरोप लगाए थे कि बाबा के कारखानों में बनाई जाने वाली औषधियों में मानव हड्डियों का चूर्ण मिलाया जाता है। बृंदा ने सोचा होगा कि पश्चिम बंगाल में सफल सीपीएम के उग्र तेवरों से बाबा झटका खा जाएंगे पर यह दांव उल्टा पड़ गया। दूसरी ओर हर रंग के नेता बाबा को पलकों पर बिठा रहे थे। बाबा की उम्मीद बढ़ने लगी।
बाबा अपने अनुनायियों को समझाने लगे कि जब नेता हमारे बूते पर चुनाव जीत कर राज करते हैं तो हम सीधे चुनाव क्यों न जीतें? कपालभाती करने और पेट घुमाने से ही जब हर पार्टी के नेता गोल-गोल बाबा के चारों ओर घूमने लगे हों तो फिर बाबा खुद क्यों न नई दिल्ली के गोलघर में पहुंच कर सत्ता का स्वाद चखें? लेकिन बाबा को कल आधी रात के बाद यह अहसास हुआ होगा कि उनकी योगिक क्रियाओं पर मुग्ध हो जाने वाला राजनेता बहुत आसानी से नो एंट्री में उन्हें घुसने नहीं देगा। जिस सत्ता के चार-चार मंत्री बाबा के सामने साष्टांग करने हवाई अड्डे पहुंच सकते हैं ,वो सत्ता आधी रात को बाबा के टेंट और दरी समेटने में भी देरी नहीं करती।
भारतीय राजनीति में देश को चलाने के लिए बाबा लोगों का एक तबकाहमेशा तत्पर रहा है। कुछ सीधे तो कुछ परोक्ष रूप से सत्ता चलाने वालों को नियंत्रित करके। इन बाबाओं की यात्रा कि शुरुआत अध्यात्म से होती है। वो आत्मा, परमात्मा, लोक-परलोक, सत्य-असत्य, योग, शुचिता आदि कि बातें करते हुए कब अचानक सेलेब्रिटी बन जाते हैं पता ही नहीं चलता। पहले हजारों फिर लाखो लोग उनके अनुयायी बन जाते हैं और तब राजनीतिक लोगों को बाबावाद भाने लगता है। कहते हैं चंद्रास्वामी की कार प्रधानमंत्री के निवास में बिना सुरक्षा जांच के घुसती थी। उन दिनों नरसिम्हाराव से जुड़े लगभग सभी प्रकरणों में चंद्रास्वामी का नाम जरूर जुड़ा होता था।
इंग्लैंड जा बसे गुजरात के व्यापारी लाखुभई पाठक ने राव और चंद्रास्वामी दोनों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। नामी अपराधी बबलू श्रीवास्तव ने जब सीबीआई को चंद्रास्वामी के दाऊद इब्राहीम से संबंधों के बारे में बताया, तब से स्वामीजी का सितारा डूबने लगा और नरसिम्हा राव भी किनारे लगे। लगभग उसी दौर में गहरी काली दाढ़ी और काले बाल वाले एक और गुरु कि तस्वीरें पत्रिकाओं में छपने लगीं। हमेशा सब कुछ समझ चुकने का भाव लिए उनकी मुस्कराहट उनका ट्रेड मार्क बन गई। श्री श्री रविशंकर सोने के गहनों में लदी-फदी उच्चवर्गीय महिलाओं और महंगी कारों में चलने वाले खाते पीते लोगों को जीवन जीने की कला सिखाने लगे।
एक पत्रकार मित्र श्री श्री के सहचर्य के किस्से रस ले कर सुनाते हैं। वो कुछ समय के लिए श्री श्री की टीम में रहे। एक दिन श्री श्री ने मंत्रणा के लिए उन्हें बुलाया और कहा, ‘ये पता कीजिए कि सोनिया गांधी तक कैसे पहुंचा जाए? उन तक पहुंचाना बहुत मुश्किल साबित हो रहा है।’ आर्ट ऑफ लिविंग सिखाने वाले किसी बाबा को आखिर सोनिया गांधी तक अप्रोच लगाने कि क्या जरुरत पड़ गई? फिर बाबा में नोबेल पुरस्कार की इच्छा बलवती हो उठी और श्री श्री के भक्त स्टोकहोम में उनके नाम की लोबिंग करने लगे।
दस साल पहले जब मैं नौकरी के लिए लंदन रवाना हुआ तो बाबा रामदेव आस्था चैनल पर नियमित कपालभाती करने लगे थे। धीरे-धीरे उनका नाम फैलने लगा। एक दिन बीबीसी के दफ्तर में हलचल बढ़ गई कि बाबा रामदेव लंदन आए हैं और संसद में योग करेंगे। ब्रिटेन के अखबारों में उनकी चर्चा थी और एक दिन वे बीबीसी स्टूडियो पहुंच गए। लेकिन उन्होंने तब राजनीति पर एक शब्द नहीं कहा। उनका पूरा जोर भारतीयता और योग पर था।
पर ये वो दौर था जब लालू यादव और नीतीश कुमार जैसे राजनीतिक लड़ाके बाबा रामदेव के साथ एक मंच पर आसीन नहीं हुए थे। शायद इसलिए बाबा के अंदर देश को राजनीतिक दिशा देने की इच्छा नहीं पनपी थी और अगर पनप रही थी तो उन्होंने उसे टीवी और अखबारों से बचा कर रखा था। बाबा रामदेव का राजनीतिक आत्मविश्वास उस दिन से अंगडाई लेने लगा जब सीपीएम की बृंदा करात को उन्होंने सरे-आम पटखनी देने में कामयाबी पाई। बृंदा ने आरोप लगाए थे कि बाबा के कारखानों में बनाई जाने वाली औषधियों में मानव हड्डियों का चूर्ण मिलाया जाता है। बृंदा ने सोचा होगा कि पश्चिम बंगाल में सफल सीपीएम के उग्र तेवरों से बाबा झटका खा जाएंगे पर यह दांव उल्टा पड़ गया। दूसरी ओर हर रंग के नेता बाबा को पलकों पर बिठा रहे थे। बाबा की उम्मीद बढ़ने लगी।
बाबा अपने अनुनायियों को समझाने लगे कि जब नेता हमारे बूते पर चुनाव जीत कर राज करते हैं तो हम सीधे चुनाव क्यों न जीतें? कपालभाती करने और पेट घुमाने से ही जब हर पार्टी के नेता गोल-गोल बाबा के चारों ओर घूमने लगे हों तो फिर बाबा खुद क्यों न नई दिल्ली के गोलघर में पहुंच कर सत्ता का स्वाद चखें? लेकिन बाबा को कल आधी रात के बाद यह अहसास हुआ होगा कि उनकी योगिक क्रियाओं पर मुग्ध हो जाने वाला राजनेता बहुत आसानी से नो एंट्री में उन्हें घुसने नहीं देगा। जिस सत्ता के चार-चार मंत्री बाबा के सामने साष्टांग करने हवाई अड्डे पहुंच सकते हैं ,वो सत्ता आधी रात को बाबा के टेंट और दरी समेटने में भी देरी नहीं करती।
लेख साभार अमर उजाला : http://www.amarujala.com/Duniya360/The%20sage%20is%20different-2320.html
4 comments:
"बाबा" के बारे में बहुत कुछ जानने को मिला!
ARE BABA RE BABA.
नकारा सरकार ने सोते हुवे निहत्थे लोगों पर लाठी चार्ज कर के जो बर्बर कार्यवाही की उसकी जीतनी निंदा की जाया कम ही है | आधी रात को दिल्ली पुलिस बल ने आक्रमण किया और सत्याग्रहियों को मैदान से बाहर निकाल फेंका ! कितने घायल हुए , कुछ गायब , बाबा रामदेव को सलवार - समीज में छुप कर भागना पडा ! वाह रे सरकार ! ये कैसी नकारा सरकार है !
जहां तक हो सके रामदेव बाबा को भी राजनितिक पार्टिओं, आर एस एस तथा कट्टरवादी हिन्दू संगठनों से दूर ही रहना चाहिए | ऐसे लोगों से उनकी छवि धूमिल ही होगी | महर्षि दयानंद सरस्वती जी जिन्होंने जिन्दगी भर कट्टर हिन्दू धर्म का विरोध किया तथा इसी लिए अपने प्राण की आहुति दी को अपना मानसिक गुरु मानने वाले स्वामी राम देव जी कट्टर वादिओं से हाथ मिलाएं ये समझ में नहीं आता |
सत्य तभी निखार पर आता है जब उसमे किसी भी किस्म के झूठ की मिलावट न हो |आप लाख सच्चे हों किन्तु यदि आप झूठ और गलत लोगो के सहारे आगे बढ़ेंगे तो आप की गिनती भी उन्ही झूठों लोगों में की जायेगी |
सिर्फ इसलिए कि वो बावा है...फादर या फ़कीर नहीं....
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