इतना तय है कि देश में अभी इतने खजाने हैं कि देश के विकास या जन समस्याओं के निदान के लिए विश्व बैंक या अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष का मुंह ताकने की विवशता नहीं है. अब समस्या धन की नहीं एक ईमानदार और पारदर्शी सरकार की, दूरदर्शी नेताओं की है. ऐसा कोई खजाना अभी ज्ञात नहीं जहां इसकी आपूर्ति हो सके. विदेशी बैंकों में जमा काला धन देश के अन्दर मौजूद खजानों के सामने कुछ भी नहीं है. लेकिन जनहित में उसकी वापसी के प्रति अपनी उदासीनता और वापसी की मांग करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं के प्रति अपनी क्रूरता के जरिये मौजूदा सरकार ने यह अहसास दिला दिया कि उसकी प्रतिबद्धता किसके साथ है. लिहाजा गुप्त खजानों के प्रति नीति बनाते वक़्त इस बात का ध्यान रखना होगा. किसी खजाने की निगहबानी का जिम्मा लुटेरों के हाथ में देना तो कहीं से भी बुद्धिमानी की बात नहीं होगी. इसपर बहुत गहराई से विचार करने के बाद ही कोई निर्णय लेना उचित होगा.
अरे भई साधो......: खजाने की चाबी लुटेरों को...नहीं...बिल्कुल नहीं
Posted on Monday, July 11, 2011 by devendra gautam in
पद्मनाभस्वामी मंदिर के तहखानों से निकला खज़ाना सामने आने के बाद अब देश के 550 रियासतों, हजारों मंदिरों-मठों, पुराने किलों और रहस्यमयी गुफाओं में कैद अकूत खजानों की और बरबस ध्यान चला जाता है. गनीमत है कि इनके जनहित में उपयोग की संभावनाओं पर विचार करने का जिम्मा उच्चतम न्यायालय ने लिया है. अभी सत्ता में बैठे लोग घोटालों और भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे होने के कारण आम जनता का विश्वास खो चुके हैं. कई राजघरानों के खजाने सरकार पहले भी ले चुकी है लेकिन उनके उपयोग की कोई जानकारी नहीं है. आमलोगों को इस बात का भरोसा नहीं कि यदि सरकार को खजाने की चाभी सौंप दी जाये तो उसका जनहित में उपयोग होगा ही. पता नहीं उसका कितना हिस्सा मंत्रियों के पेट में समा जायेगा और कितना जनता के कल्याण में खर्च होगा. इस लिहाज से इतिहासकार देवेंद्र हांडा का यह सुझाव व्यावहारिक है कि मंदिरों के मौजूदा ट्रस्ट ही स्कूल, कालेज, अस्पताल और रोजगार का सृजन करने वाली आर्थिक गतिविधियों का संचालन करें. बेहतर होगा कि वे आर्थिक सलाहकारों की नियुक्ति कर इस दिशा में योजनायें बनायें और उन्हें अमली जामा पहनाएं.
इतना तय है कि देश में अभी इतने खजाने हैं कि देश के विकास या जन समस्याओं के निदान के लिए विश्व बैंक या अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष का मुंह ताकने की विवशता नहीं है. अब समस्या धन की नहीं एक ईमानदार और पारदर्शी सरकार की, दूरदर्शी नेताओं की है. ऐसा कोई खजाना अभी ज्ञात नहीं जहां इसकी आपूर्ति हो सके. विदेशी बैंकों में जमा काला धन देश के अन्दर मौजूद खजानों के सामने कुछ भी नहीं है. लेकिन जनहित में उसकी वापसी के प्रति अपनी उदासीनता और वापसी की मांग करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं के प्रति अपनी क्रूरता के जरिये मौजूदा सरकार ने यह अहसास दिला दिया कि उसकी प्रतिबद्धता किसके साथ है. लिहाजा गुप्त खजानों के प्रति नीति बनाते वक़्त इस बात का ध्यान रखना होगा. किसी खजाने की निगहबानी का जिम्मा लुटेरों के हाथ में देना तो कहीं से भी बुद्धिमानी की बात नहीं होगी. इसपर बहुत गहराई से विचार करने के बाद ही कोई निर्णय लेना उचित होगा.
इतना तय है कि देश में अभी इतने खजाने हैं कि देश के विकास या जन समस्याओं के निदान के लिए विश्व बैंक या अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष का मुंह ताकने की विवशता नहीं है. अब समस्या धन की नहीं एक ईमानदार और पारदर्शी सरकार की, दूरदर्शी नेताओं की है. ऐसा कोई खजाना अभी ज्ञात नहीं जहां इसकी आपूर्ति हो सके. विदेशी बैंकों में जमा काला धन देश के अन्दर मौजूद खजानों के सामने कुछ भी नहीं है. लेकिन जनहित में उसकी वापसी के प्रति अपनी उदासीनता और वापसी की मांग करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं के प्रति अपनी क्रूरता के जरिये मौजूदा सरकार ने यह अहसास दिला दिया कि उसकी प्रतिबद्धता किसके साथ है. लिहाजा गुप्त खजानों के प्रति नीति बनाते वक़्त इस बात का ध्यान रखना होगा. किसी खजाने की निगहबानी का जिम्मा लुटेरों के हाथ में देना तो कहीं से भी बुद्धिमानी की बात नहीं होगी. इसपर बहुत गहराई से विचार करने के बाद ही कोई निर्णय लेना उचित होगा.
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1 comments:
आज से नहीं बल्कि सदा से समस्या यही है कि ईमानदारों के हाथ में सिस्टम रहने ही नहीं पाता। बेईमान लोग छल बल करके हुकूमत में आ जाते हैं और फिर वे लोगों के दुख दर्द दूर करने के बजाय अपने लाभ के बारे में ही सोचते रहते हैं। इसी के साथ यह भी समस्या है कि एक अच्छी व्यवस्था की भी ज़रूरत है, ऐसे नियम क़ायदे की ज़रूरत है जिसमें नशा, व्यभिचार और फ़िज़ूलख़र्ची पर क़ानूनी रूप से पाबंदी हो। देश का बहुत ज़्यादा धन इन बेकार के ऐबों में भी बर्बाद हो रहा है।
एक अच्छे लेख के लिए शुक्रिया !
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