झारखंड के अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आये 11 साल हो गए. इस बीच जितनी भी सरकारें बनीं उनमें मुख्यमंत्री का पद आदिवासियों के लिए अघोषित रूप से आरक्षित रखा गया. लेकिन सरकार की कृपादृष्टि उन्हीं जजतियों की और रही जो वोट बैंक बनने की हैसियत रखते थे. झारखंड की उन नौ आदिम जनजातियों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया जिनका अस्तित्व आज खतरे में है. उनकी जनसंख्या में ह्रास होता जा रहा है. मृत्यु दर में वृद्धि और जन्म दर में कमी के कारण ऐसा हो रहा है. भूख, कुपोषण और संक्रामक रोगों के कारण उनके यहां अकाल मौत के साये मंडराते रहते हैं. अशिक्षा, गरीबी और रोजगार के अवसरों का अभाव उनकी नियति बन चुकी है. वे आज भी जंगलों पहाड़ों के बीच पर्णकुटी बनाकर आदिम युग की मान्यताओं के बीच रह रहे हैं. भूत-प्रेत, ओझा-डायन बिसाही में अभी भी उनका गहरा विश्वास है. बीमार होने पर वे अस्पताल में नहीं बल्कि अपने इलाके के ओझा-सोखा की शरण में जाते हैं.
खबरगंगा: झारखंड: विलुप्त हो चली हैं ये आदिम जनजातियां
Posted on Tuesday, July 12, 2011 by devendra gautam in
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