हुमायूं और कर्मावती के बीच का प्रगाढ़ रिश्ता और राखी का मर्म

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  • Friday, August 12, 2011
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  • DR. ANWER JAMAL
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  • भारतीय नारी  का एक रूप ‘बहन‘ भी है और भारतीय पर्व और त्यौहारों की सूची में एक त्यौहार का नाम ‘रक्षा बंधन‘ भी है। जहां होली का हुड़दंग और दीवाली पर पटाख़ों का शोर शराबा लोगों के लिए परेशानी का सबब बन जाता है और उनके पीछे की मूल भावना दब जाती है वहीं रक्षा बंधन का त्यौहार आज भी दिलों को सुकून देता है। यह त्यौहार मुझे सदा से ही प्यारा लगता आया है।
    यह पर्व भाई-बहन के बीच पवित्र स्नेह का द्योतक भी है। बहन भाई की कलाई पर रेशम की डोरी यानी राखी बांधती है आरती उतार कर भाई के माथे पर टीका लगाती है तथा सुख एवं समृद्धि हेतु नारियल एवं रूमाल भाई को भेंट स्वरूप देती है। भाई भी बहन की रक्षा के संकल्प को दोहराते हुए भेंट स्वरूप कुछ रुपये अथवा वस्तुएं प्रदान करता है।
    इतिहास में एक अध्याय कर्मावती व हुमायूं के बीच प्रगाढ़ रिश्ते और राखी की लाज से जुड़ा है। कर्मावती ने हुमायूं को पत्र भेज कर सहायता मांगी थी। बादशाह हुमायूं ने राखी की लाज निभाते हुए अपनी राजपूत बहन कर्मावती की मदद की थी। अतः रक्षाबंधन हमारे लिए विजय कामना का भी पर्व है।

    हमें कर्मावती और हुमायूं की वह ऐतिहासिक घटना सदैव याद रखनी चाहिए कि पवित्र रिश्ते मजहब के फ़र्क़ के बावजूद भी बनाए जा सकते हैं।पवित्र रिश्तों का सम्मान करना हम सभी का नैतिक कर्तव्य भी है। 
    आओ और पेड़ों को राखी बांधो और उनके रक्षार्थ सामूहिक प्रयास करो। शायद यह प्रयास वृ़क्षों की अनावश्यक कटाई की रोकथाम में कारगर सिद्ध हो जाए। 
    इस त्यौहार के पीछे एक पौराणिक कथा भी बताई जाती है, जो इस प्रकार है : 
    उस दिन श्रावणमास शुक्ल की चतुर्थी थी। दूसरे दिन प्रातः इंद्र देवता की पत्नी ने गुरू बृहस्पति की आज्ञा से यज्ञ किया और यज्ञ की समाप्ति पर इंद्र की दाई कलाई पर ‘रक्षा‘-सूत्रा’ बांधा। तत्पश्चात देव-दानव युद्ध में देवताओं को जीत की प्राप्ति हुई। कहा जाता है तभी से श्रावणी की पूर्णिमा को रक्षाबंधन पर्व के रूप में मनाया जाने लगा।
    प्राचीन काल में शिष्य अपने गुरूओं के हाथ में सूत का धागा बांधकर उनसे आशीष प्राप्त करते थे। ब्राह्मण भी हाथ में सूत का धागा बांध कर आशीर्वाद प्रदान करते हैं। रक्षाबंधन भले ही हिंदुओं का पावन पर्व है किंतु दूसरे धर्म के अनुयायियों ने भी स्वेच्छा से रक्षा बंधन पर्व में अपनी आस्था व्यक्त की है।
    समयानुसार सभी पर्व प्रभावित हुए हैं। रक्षाबंधन भी प्रभावित हुए बगैर नहीं रह पाया। रेशम की डोरी की जगह फैंसी राखियां चलन में आ गई। हमारी अर्थव्यवस्था में रक्षाबंधन पर्व के महत्त्वपूर्ण योगदान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। करोड़ों रूपयों का कारोबार लाखों परिवारों को आजीविका प्रदान कर रहा है।
    ज्वैलरी मार्केट में भी रक्षाबंधन के दौरान उछाल आ जाता है। मिठाइयां, ड्रायफ्रुटस्, चाॅकलेटस की भी अच्छी खासी बिक्री होती है। डाक विभाग और कूरियर कारोबारी भी रक्षाबंधन के दौरान विशेष सेवाएं प्रदान करते हैं। रक्षा बंधन के पर्व को कुछ लोगों ने अपनी हरकतों से नुक्सान भी पहुंचाया है। पश्चिमी सभ्यता से रेशम की डोरी भी प्रभावित हुई है। फ्रैण्डशिप डे’ के दिन स्कूल और कालेज के विद्यार्थी एक-दूसरे की कलाइयों में फ्रैण्डशिप बेल्ट बांधते हैं नये दोस्त बनाने के लिए लड़के उन लड़कियों को भी बेल्ट बांधने से नही चूकते जिनसे जान थी और न ही पहचान।
    रक्षाबंधन को भी कान्वेंट स्कूलों ने उसी तर्ज पर मनाने की परंपरा स्थापित कर नुक्सान ही पहुंचाया है। माना कि खून के रिश्ते से भी ज्यादा मायने मानवीय रिश्तों में छुपे हैं। मुंहबोली बहन अथवा भाई बनाने का फैशन ही भाई-बहन के पवित्रा रिश्ते को संदेहास्पद बनाता है। बहनों और भाइयों दोनों को रिश्तों की नाजुकता को ध्यान में रखना चाहिए। नई पीढ़ी को शायद यह नहीं पता कि भावनाओं का अनादर एवं विश्वास के साथ घात अशोभनीय है।
    भैया और बहन के पावन रिश्ते को बांधने वाली रेशम की डोर का रंग और ढंग भी बदलते दौर में बदल गया है। अब इस रेशम की डोर पर फैशन का रंग चढ़ गया है। कारोबारी इस प्रेम के पर्व को अपने तरीके से कैश कर रहे हैं। बाजार में सोने और चांदी से जड़ी राखी उतारकर बहनों को आकर्षित किया जा रहा है। इसकी कीमत भी काफी हाई-फाई है। दूसरी तरफ बहनें भी अपने भैया के लिए महंगी राखी खरीदने को तवज्जो दे रही हैं। सोना-चांदी से जडि़त राखी के स्वर्णकारों के पास स्पेशल आर्डर भी आ रहे हैं। बाजार में 20 हजार रुपए कीमत वाली राखी आ गई है। बदलते दौर में स्वर्णकारों को भी भाई बहन के प्यार के पर्व पर चांदी कूटने का मौका मिल गया है। आशा शर्मा, मीना धीमान, पूजा राणा, मंजू कविता, आमना और रेखा धीमान का कहना है कि भाई की कलाई को सजाने के लिए हजारों रुपए भी कम पड़ जाते हैं।
    धर्मशाला के वर्मा ज्यूलर शाप के मालिक राजेश वर्मा का कहना है कि इस राखी के पर्व पर सोने चांदी से जडि़त राखियों के अलावा मोती जडि़त राखी के आर्डर भी आ रहे हैं। सोने और चांदी से जडि़त राखी के आर्डर धर्मशाला ही नहीं बल्कि प्रदेश भर में बुक किए जा रहे हैं। सोने का भाव आसमान पर है, बावजूद इसके बहनें अपने भाई की कलाई को सजाने के लिए इसकी परवाह नहीं कर रही हैं।

    ब्रह्माकुमारी दादी हृदयमोहिनी कहती हैं कि
    हम हर वर्ष रक्षाबंधन का पर्व मनाते हैं। हर बार हमें समझाया जाता है कि बहन, भाई को इसलिए राखी बांधती है कि वह उसकी रक्षा करेगा। लेकिन यदि बहन राखी नहीं बांधेगी, तो क्या भाई उसकी रक्षा नहीं करेगा? हिंदुओं को छोड़कर बाकी किसी संस्कृति -बौद्ध, क्रिश्चियन, मुस्लिम आदि संप्रदायों में राखी नहीं बांधी जाती, परंतु भाइयों द्वारा अपनी लौकिक बहनों की रक्षा तो वहां भी की जाती है। ऐसे कर्त्तव्य बोध के लिए कोई और त्योहार क्यों नहीं मनाया जाता? यदि कोई कहे कि यह त्योहार भाई-बहन के बीच प्रेम बढ़ने का प्रतीक है, तो भी प्रश्न उठता है कि क्या राखी न बांधी जाए तो बहन-भाई का प्रेम समाप्त हो जाएगा?
    भाई-बहन को सहोदर-सहोदरी कहा जाता है, यानी एक ही उदर (पेट) से जन्म लेने वाले। जो एक उदर से जन्म लें, एक ही गोद में पलें, उनमें आपस में स्नेह न हो, यह कैसे हो सकता है। सफर के दौरान किसी यात्री के साथ दो-चार घंटे एक ही गाड़ी में सफर करने से भी कई बार इतना स्नेह हो जाता है कि हम उसका पता लेते हैं, पुन: मिलने का वायदा भी कर लेते हैं। तो क्या सहोदर-सहोदरी में स्वाभाविक स्नेह नहीं होगा, जो उन्हें आपस के प्रेम की याद दिलाने के लिए राखी का सहारा लेना पड़े।

    फिर यह भी प्रश्न उठता है कि रिश्ते तो और भी हैं, क्या उनमें भी कर्त्तव्य बोध जागृत करने के लिए कोई त्योहार मनाया जाता है? क्या पिता अपने बच्चों की पालना करे, इसके लिए कोई त्योहार है? मां अपने बच्चों को खुशी दे, इसके लिए कोई त्योहार है? फिर भाई, बहन की रक्षा करे, इसी के लिए त्योहार क्यों?

    वास्तव में यह त्योहार एक बहुत ही ऊंची भावना के साथ शुरू हुआ था, जो समय के अंतराल में धूमिल हो गया और इस त्योहार का अर्थ संकुचित हो गया। भारतीय संस्कृति वसुधैव कुटुंबकम् में विश्वास करती है। इसका अर्थ है कि सारा विश्व ही एक परिवार है। भाई-बहन का नाता ऐसा नाता है जो कहीं भी, कभी भी बनाया जा सकता है।

    आप किसी भी नारी को बहन के रूप में निसंकोच संबोधित कर सकते हैं। बहुत छोटी आयु वाली को , हो सकता है , माता न कह सकें , पर बहन तो बच्ची , बूढ़ी हरेक को कह सकते हैं। वसुधैव कुटुंबकम् हमें यही सिखाता है कि संसार की हर नारी को बहन मानकर और हर नर को भाई मानकर निष्पाप नजरों से देखो।

    आपकी सगी बहन सब नारियों की प्रतिनिधि है - इस निष्पाप वैश्विक संबंध की याद दिलाने यह त्योहार आता है और इसके लिए निमित्त बनती है सगी बहन , क्योंकि बहन - भाई के नाते में लौकिक बहन का नाता स्वाभाविक रूप से पवित्रता लिए रहता है। बहन जब अपने लौकिक भाई की कलाई पर राखी बांधती है तो यही संकल्प देती है कि भाई , जैसे तुम अपनी इस बहन को पवित्र नजर से देखते हो , दुनिया की सभी नारियों को , कन्याओं को ऐसी ही नजर से निहारना। संसार की सारी नारियां तुझे राखी नहीं बांध सकतीं , पर मैं उन सबकी तरफ से बांध रही हूं। वो सब मुझमें समाई हुई हैं , उन सबका प्रतिनिधि बनकर मैं आपसे निवेदन करती हूं , आपको प्रतिज्ञाबद्ध करती हूं कि आप निष्पाप बनें।
    मेरी सुरक्षा भी तभी होगी जब आप औरों की बहनों की सुरक्षा करेंगे। यदि आपके किसी कर्म से संसार की कोई भी बहन असुरक्षित हो गई , तो आपकी यह बहन भी किसी के नीच कर्म से असुरक्षित हो सकती है। आपसे कोई अन्य बहन न डरे और अन्य किसी भाई से आपकी इस बहन को कोई डर न हो , यही राखी का मर्म है।

    16 comments:

    अशोक कुमार शुक्ला said...

    Happy rakshabandhan.
    Is awasar par eatihaasik bhai bahin prem
    ki yaad dilaane ka shukriyaa.

    कुमार राधारमण said...

    पर्व-त्यौहार चाहे जिस तात्कालिक कारण से शुरू किए गए हों,मगर इनके मूल में, वृहत्तर समाज का अंग बनने का प्रयोजन ही रहा है।

    डॉ टी एस दराल said...

    सार्थक सामयिक लेख .
    राखी ही एक ऐसा त्यौहार है जिसे हमारे देश में सब धर्मों के लोग ख़ुशी से मनाते हैं .

    हुमायूं और कर्मावती के बीच का प्रगाढ़ रिश्ता --रिश्तों में एक माइल स्टोन है .

    शुभकामनायें भाई जी .

    DR. ANWER JAMAL said...

    टी. एस. दराल जी ! आज आपकी आमद से दिल में कमल सा खिल गया।
    कभी हम ख़ुद को और कभी अपने ब्लॉग को देखते हैं।

    और फिर आपने इतनी सोहणी सी टिप्पणी भी कर डाली।
    आपका शुक्रिया !

    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

    राखी की महिमा ही होती है, भाई-बहन का रिश्ता पवित्र माना जाता है!
    रक्षाबन्धन की शुभकामनाएँ!

    संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

    रखी के महत्त्व को बताता विस्तृत लेख ..आभार

    गप्पी said...

    अनवर जी

    एसा कौन सा त्यौहार बचा है, जिसका बाजारीकरण नहीं हुआ|

    एम् बी ए में मिट्टी बेचना भी सिखाया जाता है,
    राखी तो फिर भी बेशकीमती होती है|

    त्यौहार क्यों ?

    इस सवाल के जवाब के लिए एक कहानी याद आती है|

    एक आदमी ने मिठाई की दुकान खोली और बोर्ड लगाया |
    यहाँ मिठाई मिलती है, लोगों ने कहा बोर्ड लगाने
    की क्या जरूरत है, मिठाई रखी है तो मिठाई ही मिलेगी
    जूते थोड़ी| हलवाई को लगा बात सही है और बोर्ड हटा दिया|
    कुछ दिन बाद लोग कहने लगे ये क्या मिठाई फैला कर
    बैठ गये , एक बोर्ड लगाओ "यहाँ मिठाई मिलती है" |

    गप्पी said...

    अनवर जी

    एसा कौन सा त्यौहार बचा है, जिसका बाजारीकरण नहीं हुआ|

    एम् बी ए में मिट्टी बेचना भी सिखाया जाता है,
    राखी तो फिर भी बेशकीमती होती है|

    त्यौहार क्यों ?

    इस सवाल के जवाब के लिए एक कहानी याद आती है|

    एक आदमी ने मिठाई की दुकान खोली और बोर्ड लगाया |
    यहाँ मिठाई मिलती है, लोगों ने कहा बोर्ड लगाने
    की क्या जरूरत है, मिठाई रखी है तो मिठाई ही मिलेगी
    जूते थोड़ी| हलवाई को लगा बात सही है और बोर्ड हटा दिया|
    कुछ दिन बाद लोग कहने लगे ये क्या मिठाई फैला कर
    बैठ गये , एक बोर्ड लगाओ "यहाँ मिठाई मिलती है" |

    गप्पी said...
    This comment has been removed by the author.
    राजन said...

    रक्षाबंधन के मर्म और उससे जुडी भावनाओं को खूबसूरती से व्यक्त करता सामयिक लेख.आपने सही कहा पवित्र रिश्तों में मज़हब आडे नहीं आता.सहमत हूँ आपसे.

    Anita said...

    वाह ! राखी पर इतनी सुंदर पोस्ट, जहां उसके हर पहलू पर विचार किया गया है... बहुत बहुत बधाई! हर उत्सव का अर्थ होता है प्रेम का विस्तार...राखी हो या अन्य कोई भी उत्सव हो.

    Sunil Deepak said...

    सुन्दर और दिलचस्प आलेख, धन्यवाद अनवर जी

    DR. ANWER JAMAL said...

    एक सुरक्षित समाज का निर्माण ही हम सब भाईयों की ज़िम्मेदारी है
    सबसे पहले तो हम अपने सभी भाई बहनों का शुक्रिया अदा करते हैं कि उन्हें हमारा यह लेख पसंद आया।
    इसके बाद हम यह कहना चाहेंगे कि भारत त्यौहारों का देश है और हरेक त्यौहार की बुनियाद में आपसी प्यार, सद्भावना और सामाजिक सहयोग की भावना ज़रूर मिलेगी। बाद में लोग अपने पैसे का प्रदर्शन शुरू कर देते हैं तो त्यौहार की असल तालीम और उसका असल जज़्बा दब जाता है और आडंबर प्रधान हो जाता है। इसके बावजूद भी ज्ञानियों की नज़र से हक़ीक़त कभी पोशीदा नहीं हो सकती।
    ब्लॉगिंग के माध्यम से हमारी कोशिश यही होनी चाहिए कि मनोरंजन के साथ साथ हक़ीक़त आम लोगों के सामने भी आती रहे ताकि हरेक समुदाय के अच्छे लोग एक साथ और एक राय हो जाएं उन बातों पर जो सभी के दरम्यान साझा हैं।
    इसी के बल पर हम एक बेहतर समाज बना सकते हैं और इसके लिए हमें किसी से कोई भी युद्ध नहीं करना है। आज भारत हो या विश्व, उसकी बेहतरी किसी युद्ध में नहीं है बल्कि बौद्धिक रूप से जागरूक होने में है।
    हमारी शांति, हमारा विकास और हमारी सुरक्षा आपस में एक दूसरे पर शक करने में नहीं है बल्कि एक दूसरे पर विश्वास करने में है।
    राखी का त्यौहार भाई के प्रति बहन के इसी विश्वास को दर्शाता है।
    भाई को भी अपनी बहन पर विश्वास होता है कि वह भी अपने भाई के विश्वास को भंग करने वाला कोई काम नहीं करेगी।
    यह विश्वास ही हमारी पूंजी है।
    यही विश्वास इंसान को इंसान से और इंसान को ख़ुदा से, ईश्वर से जोड़ता है।
    जो तोड़ता है वह शैतान है। यही उसकी पहचान है। त्यौहारों के रूप को विकृत करना भी इसी का काम है। शैतान दिमाग़ लोग त्यौहारों को आडंबर में इसीलिए बदल देते हैं ताकि सभी लोग आपस में ढंग से जुड़ न पाएं क्योंकि जिस दिन ऐसा हो जाएगा, उसी दिन ज़मीन से शैतानियत का राज ख़त्म हो जाएगा।
    इसी शैतान से बहनों को ख़तरा होता है और ये राक्षस और शैतान अपने विचार और कर्म से होते हैं लेकिन शक्ल-सूरत से इंसान ही होते हैं।
    राखी का त्यौहार हमें याद दिलाता है कि हमारे दरम्यान ऐसे शैतान भी मौजूद हैं जिनसे हमारी बहनों की मर्यादा को ख़तरा है।
    बहनों के लिए एक सुरक्षित समाज का निर्माण ही हम सब भाईयों की असल ज़िम्मेदारी है, हम सभी भाईयों की, हम चाहे किसी भी वर्ग से क्यों न हों ?
    हुमायूं और रानी कर्मावती का क़िस्सा हमें यही याद दिलाता है।

    वाणी गीत said...

    अच्छी पोस्ट!

    shyam gupta said...

    "मेरी सुरक्षा भी तभी होगी जब आप औरों की बहनों की सुरक्षा करेंगे। यदि आपके किसी कर्म से संसार की कोई भी बहन असुरक्षित हो गई , तो आपकी यह बहन भी किसी के नीच कर्म से असुरक्षित हो सकती है। आपसे कोई अन्य बहन न डरे और अन्य किसी भाई से आपकी इस बहन को कोई डर न हो ,
    ----यही राखी का मर्म है। --सुंदर अति-सुंदर ...

    rafat said...

    जनाब डाक्टर साहिब सामयिक और ज्ञानवर्धक रचना पढवाने के लिए शुक्रिया .

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