कहते हैं कल रावण वध है .................

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  • Wednesday, October 5, 2011
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  • आपका अख्तर खान अकेला
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  • जी हाँ दोस्तों बुराई पर अच्छाई की जीत .....अन्याय पर न्याय की विजय का प्रतीक रावण दहन पुरे देश में कल उसका वध कर किया जाएगा हर जगह राजनीति से जुड़े लोग जिनपर भ्रष्टाचार और अन्याय अत्याचार के सेकड़ों आरोप होंगे वही रावण का वध कर उसके दहन की परम्परा को आगे बढ़ाएंगे ...................जी हाँ दोस्तों आप देख लोग हर साल हमारे देश में बुराई पर अच्छाई की जीत की इस धार्मिक परम्परा को प्रेक्टिकल कर सिखाया जाता है .....अधिकतम धर्म से जुड़े लोग जो घंटो पूजा पाठ में अपना वक्त लगाते हैं .धर्म के नाम पर कट्टर पंथी की बातें कर समाज को ज़हर घोल हिस्सों में बांटते हैं वही लोग रावण की परम्परा को आगे बढ़ते है .अभी हम देश की राजनीति को ही देख लें टू जी स्पेक्ट्रम से लेकर शक्कर घोटाले ..क्रिकेट घोटाले .....कोमन वेल्थ घोटाले से लेकर महिलाओं का अपहरण कर उनकी हत्या करने वाले मंत्रियों की पोल खुलने के बाद भी वोह जनता के सामने शेर बन कर घूम रहे हैं सारे सुबूत सारे हालात उनके खिलाफ है लेकिन यह रावण हैं के मानते ही नहीं कोई सद्भावना यात्रा निकालता है ,,,,तो कोई रथयात्रा निकालता है कोई उपवास यात्रा निकालता है कोई भ्रस्टाचार मुक्त भारत को घोषित करवाने की यात्रा निकालता है और जनता है के इन रावणों के आगे सिसक सिसक कर दम तोडती हैं इन रावणों ने देश की खुश हाली ..सुख शांति .तरक्की ...अमन सुकून .भाईचारा सद्भावना .संस्क्रती .ईमानदारी सभी को सीता माता की तरह हरण कर लिया हैं हमारे देश में रावण तो हैं लेकिन राम कोई बन नहीं पा रहा है चारो तरफ जिधर जिस पार्टी में नज़र उठाकर देखो रावण ही रावण नज़र आते है और अफ़सोस जो रावण जितना बढा है वही सत्ता में रहकर मेले दशहरे के बुराई के प्रतीक रावण का वध कर उसे जलाने की परम्परा निभाता है सब जानते है रावण का वध राम ने किया था लेकिन उसके शव का अंतिम संस्कार राक्षसों ने किया था और बस रावण का दहन भी राक्षस ही कर रहे हैं हालात यह हैं के राम राज रावण राज में खो गया है और आज या भविष्य में कोन राम बन कर इस रावण से जनता और देश को छुटकारा दिलाएगा इस सवाल का जवाब भविष्य के भूगर्भ में छुप गया है ..............तो जनाब दुआ करो फिर से बने कोई राम फिर से अवतार ले कोई राम जो वध करे देश के इस रावण का ..........अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

    3 comments:

    रविकर said...

    दस सिर सहमत नहीं रहे थे |
    गिरि-कानन में बैठ दशानन त्रेता में मुस्काया था |
    बीस भुजाओं से सिर सारे मन्द मन्द सहलाया था ||
    सीता ने तृण-मर्यादा का जब वो जाल बिछाया था-
    बाँये से पहले वाला सिर बहुत-बहुत झुँझलाया था |
    ब्रह्मा ने बाँधा था ऐसा, कुछ भी ना कर पाया था |
    कायर जैसे वचन सहे थे |
    दस सिर सहमत नहीं रहे थे ||

    दहन देख दारुण दुःख लंका दूजा मुख गुर्राया था |
    क्षत-विक्षत अक्षय को देखा गला बहुत भर्राया था |
    अंगद के कदमों के नीचे तीजा खुब अकुलाया था |
    पैरों ने जब भक्त-विभीषण पर आघात लगाया था |
    बाएं से चौथे सिर ने आँखों की नमी छुपाया था-
    भाई ने तो पैर गहे थे |
    दस सिर सहमत नहीं रहे थे ||
    सहस्त्रबाहु से था लज्जित दायाँ वाला पहला सिर |
    दूजे ने रौशनी गंवाई एक आँख बाली से घिर |
    तीजा तो बचपन से निकला महादुष्ट पक्का शातिर |
    मन्दोदरी से चौथा चाहे बातचीत हरदम आखिर |
    नव माथों ने जुल्म सहे थे |
    दस सिर सहमत नहीं रहे थे ||

    शीश नवम था चापलूस बस दसवें की महिमा गाये |
    दो पैरों के, बीस हाथ के, कर्म - कुकर्म सदा भाये |
    मारा रावण राम-चन्द्र ने, पर फिर से वापस आये |
    नया दशानन पैरों की दस जोड़ी पर सरपट धाये |
    दसों दिशा में बंटे शीश सब, जगह-जगह रावण छाये -
    जैसा सारे शीश चहे थे |
    दस सिर सहमत नहीं रहे थे ||

    चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

    बुराई पर अच्छाई की जीत.... बातें हैं बातों का क्या

    मदन शर्मा said...

    जी हाँ... बिलकुल सही कहा.
    असत्‍य पर सत्‍य की जीत के पर्व दशहरा की शुभकामनाएं………

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