रमजान इस्लामी कैलेंडर का एक महीना है। रमजान में पूरे महीने रोजे रखे
जाते हैं। रोजे का वक्त रहता है, सुबह सादिक से लेकर सूरज के डूबने तक।
रोजे में जब हम खाने-पीने से रुकते हैं, तो इससे हमारे अंदर रूहानी ताकत
बढ़ जाती है और तकवा हासिल हो जाता है। अल्लाह की इबादत के लिए खाने-पीने
और अपनी ख्वाहिशों को छोड़ने का जो जज्बा पैदा होता है, उससे एक तरह से
रूहानी ट्रेनिंग हो जाती है। यह जज्बा सारी जिंदगी काम आता है।
रमजान में दिन में रोजा होता है और रात में तरावीह (नमाज) पढ़ी जाती है।
ये दो इबादतें इस महीने की खास इबादतें हैं। रसूलल्लाह जब हिजरत करके
मदीने आए थे तो दूसरे साल में रमजान के रोजे फर्ज हुए थे और दूसरे ही साल
में जकात फर्ज हुई थी। रोजा एक बहुत ही पाक इबादत है, जिस पर अल्लाह
रोजेदार से बहुत खुश होता है। दुनिया में भी उसकी दुआएं कुबूल होती हैं।
कयामत के दिन भी उस पर हिसाबो-किताब माफ होगा और उसे जन्नत की खुशखबरी दी
जाएगी। रोजेदारों के लिए जन्नत में अलग से दरवाजा है। इसका नाम है— बाबुर
रय्यान। इससे रोजेदार जन्नत में बुलाए जाएंगे। रमजान के महीने में
रोजेदारों के लिए जरूरी है कि वे हर गुनाह से बचें व ऐसा समझों कि उनके
पूरे शरीर का रोजा है। पैगम्बर साहब (स.) ने फरमाया कि अल्लाह ने कहा है
कि बंदे ने रोजा मेरे लिए रखा है और मैं इसका अजर (बदला) दूंगा। रोजेदार
का सीधा ताल्लुक अल्लाह से होता है। तरावीह में कुराने मुकद्दस पढ़ा जाता
है। रमजान में आमतौर पर घरों में भी कुरान शरीफ पढ़ते हैं। पैगम्बर साहब
ने फरमाया है कि एक रात ऐसी आती है, जिसमें अल्लाह अपने बंदों पर बहुत
ज्यादा ईनाम करता है। वह रात ईद की चांद रात होती है। जिस दिन रमजान का
महीना खत्म होता है, उस दिन उन तमाम लोगों को ईनाम मिलता है, जिन्होंने
पूरे महीने रोजे रखे हों, पूरे महीने तरावीह की नमाज पढ़ी हो।
Hindustan 31 July 2012
Source : http://www.livehindustan.com/news/tayaarinews/tayaarinews/article1-story-67-67-246885.html
1 comments:
सुन्दर |
धनबाद वापस आ गया हूँ -
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