आधा सच...: अनशन: टीम अन्ना का टीवी प्रेम ...
Posted on Thursday, July 26, 2012 by महेन्द्र श्रीवास्तव in
आधा सच...: अनशन: टीम अन्ना का टीवी प्रेम ...: आज एक बार फिर जरूरी हो गया है कि टीम अन्ना की बात की जाए । वैसे तो मेरा मानना है कि इनके बारे में बात करना सिर्फ समय बर्बाद करना है, लेकिन द...
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2 comments:
गहरी संजीदा बात कह देना आपकी रिवायत है।
यह एक अच्छी पोस्ट है.
शुरू में जरूर लगा कि अन्ना आंदोलन बड़े ताकतवर तरीके से उठा है, लेकिन लगातार आंतरिक मतभेदों और विवादों ने इसकी छवि को काफी धक्का पहुंचाया है। बेशक टीम अन्ना कहे कि सब कुछ ठीक है, लेकिन इनसे यह सवाल पूछा जाता रहेगा कि बिना ‘हेल्दी इंटरनल डेमोक्रेसी’ के आप देश के लोकतंत्र की कमियां दूर करने की बात कैसे कर सकते हैं? इस टीम के कई अहम सदस्य बीते कुछ महीनों में इसे छोड़ चुके हैं। अगर वे गलत थे, तो आपने उन्हें आंदोलन में साथ क्यों लिया? अगर ऐसा नहीं है, तो क्या आंदोलन किसी एक या दो लोगों की मर्जी का गुलाम तो बनने नहीं जा रहा? टीम अन्ना के मौजूदा और पूर्व सदस्यों से बात करने पर एक बात तो साफ होती है कि टीम में सहमति और तालमेल का भारी अभाव है, जो किसी लक्ष्य को पाने में बड़ी बाधा साबित हो सकता है। बहुत से ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर चर्चा जरूरी है, क्योंकि लोकतंत्र में जो काम हमारी राजनीतिक पार्टियों को करना था, वे कर न सकीं। देश ने उन्हें छह दशक से ज्यादा का समय दिया, जो काफी है।
ऐसे में टीम अन्ना की अगुआई में इन मुद्दों को उठाया और लागू कराया जा सकता है। पर सवाल यह है कि क्या अन्ना भ्रष्टाचार में मुद्दे कि जड़ को काट पायेंगे ?
भ्रष्टाचार सदाचार का विपरीत है.
जब तक लोगों में सदाचार की तमन्ना नहीं जागेगी तब तक अनशन करने से सरकार को तो परेशान किया जा सकता है लेकिन भ्रष्टाचार को नहीं मिटाया जा सकता है.
अनशन का रास्ता आत्महत्या और अराजकता का रास्ता है. इस तरह अगर सरकार अन्ना के क़ानून को बिना किसी विश्लेषण और सुधार ले मान लेती है तो यह भी गलत है और अगर अन्ना अपना अनशन तोड़ते हैं, जैसा कि अनशन करने की घोषणा वह कर चुके हैं, तो उस से जनता में मायूसी फैलेगी और अगर वह अनशन नहीं तोड़ते और वह चल बसे तो देश में भारी अराजकता फैल जायेगी.
तीनों मार्ग देश को ग़लत अंजाम की तरफ़ ले जा रहे हैं.
अनशन और आत्महत्या बहरहाल ग़लत है.
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