अमीर मंदिर गरीब देश

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  • Monday, July 18, 2011
  • by
  • prerna argal
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  • अमीर मंदिर गरीब देश 
    तिरूपति बालाजी मंदिर 
    लक्ष्मी गोल्डन मंदिर वेल्लौर  

    आप सभी जानते हैं की हमारे देश के मंदिर ,संत महात्मा ,बाबा कितने अमीर हैं /हमारे देश के मंदिर तिरूपति बालाजी ,वेल्लोर का लक्ष्मी मंदिर ,सिर्डिवाले साईं बाबा  का मंदिर  आदि ऐसे बहुत से मंदिर जिनके पास जनता के द्वारा चढ़ाये करोड़ों रुपये हैं /जिसका उपयोग या तो मंदिर के विस्तार में या उसको चांदी फिर सोने में मढ़ने में ,या पण्डे,पुजारिओं ,trustees को धर्म के नाम पर बैठे बिठाये अपना स्वार्थ सिद्ध करने के काम आता है /अभी सत्य साईं बाबा के बारे में सब जानते हैं की कैसे उनके कमरे के खजाने में करोड़ों रुपये मिले /कुछ लोग बस में रुपये ले जाते पकडे गए./आज भी उनकी करोड़ों की प्रोपर्टी पर मतभेद चल रहे हैं /कुछ तो हम लोगों को मीडिया के माध्यम  

    से पता लग जाता है और बाकी पैसों का क्या हो रहा है कोई नहीं जानता /वेल्लोर का लक्ष्मी मंदिर अभी १०-१५ साल पहले ही बना है पर आज के जमाने में भी जब लोग महंगाई की मार से परेशान है उस मंदिर की पूरी दीवारें 
    सोने से मडी हुई हैं /जिसमे लगभग २००tan सोने का उपयोग किया गया है /इतना पैसा कहाँ से आ रहा है ,चदावे
    से आ रहा है या कही और से आरहा है ये तो भगवान् ही जानता है /ऐसे  कितने ही मदिर हैं जहाँ लाखों करोड़ों रुपये उनके खजानों में जमा होंगे /इनका सदुपयोग क्यों नहीं हो सकता /
    मंदिरों के चदावे में आने वाले धन का हिसाब किताब  का ब्योरा मंदिर के trustees के पास लिखित में होना चाहिए /जितनी जरुरत मंदिर के लिए हो उतना पैसा मंदिर के खजाने में रखकर बाकी पैसा सरकारी  खजाने में जमा होना चाहिए /इससे काफी पैसा सरकार को मिलेगा/जो जरूरतमंद लोगों के काफी काम आ सकता है./मंदिरों के बाहर काफी भिखारी बैठे रहते हैं जो हमारे विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बने रहतें हैं /वो  उनका फोटो खीचकर ले जातें हैं और अपने देश में दिखाकर हमारा मजाक बनाते हैं /सबसे पहले तो इन भिखारियों का पूरा विवरण लेकर इनको पैसा देकर काम करने के लिए कहना चाहिए /और उसके बाद भी ये भीख मांगते दिखें  
    तो इनके लिए सजा का प्रावधान होना चाहिए /
    जनता का पैसा अगर जनता के ही काम आये तो क्या इससे भगवान् खुश नहीं होंगे /जिस देश में किसान आत्महत्या कर रहे हो ,कितने परिवार गरीबी रेखाओं के नीचे जी रहे हों ,कितने ही परिवारों को दो जून रोटी जुटाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है ,उस देश में करोड़ों रुपये भगवान् के नाम पर इस तरह उपयोग हो  रहें हैं क्या ये ठीक है ,क्यों नहीं इसका उपयोग गरीबों ,किसानो और जरुरत मंदों के लिए हो सकता /हमारे देश मैं धन की कमी नहीं है पर वो छुपा हुआ है जिसका सदुपयोग होना चाहिए /
    और इस पैसे से बहुत सारे काम हो सकतें हैं बस अच्छी सोच और ईमानदारी से उपयोग करने की इच्छा हो /सरकारी खजाने में बढोतरी होने से देश की तरक्की में भी बढोतरी होगी /जनता  का पैसा जनता की तरक्की में ही काम आयेगा /जनता खुशहाल तो देश खुशहाल /

    मंदिर,मस्जिद,गिरजाघरों में ईश्वर को चदाव श्रद्धा सुमन 
    सच्चे मन से सर झुकाकर करो उसको नमन 
    पैसे किसी गरीब और जरूरतमंद को दो 
    और उसका जीवन खुशियों से भर दो 
    यही तुम्हारी ईश्वर के प्रति सच्ची भक्ति होगी 
              तभी जीवन जीने की ख़ुशी और सही राह मिलेगी     
               


    3 comments:

    DR. ANWER JAMAL said...

    आपने बहुत अच्छा लेख लिखा है। हक़ीक़त यह है कि ईश्वर और धर्म के नाम पर आडंबर तब शुरू होता है जब भक्ति का रिश्ता ज्ञान से काट दिया जाता है। इस चीज़ को मैंने गहराई के साथ महसूस किया है क्योंकि
    मैं एक इंसान हूं और निवास भारत में है। लोगों को बेवजह नफ़रत करते हुए और अपना जीवन व्यर्थ करते हुए देखता हूं तो दुख होता है। लोगों को उसूली ज़िंदगी जीने की प्रेरणा देना मेरा काम है। रोज़ी-रोटी के लिए भी भागदौड़ करनी पड़ती है क्योंकि घर में बीवी बच्चे और मां-बाप भी हैं। हमारे मत और हमारी परंपराएं कुछ भी हो सकती हैं लेकिन हम सब इंसान हैं और जो बात भी इंसानियत के खि़लाफ़ जाती है, वह हमारा मत बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए। दुनिया बदल रही है, हमें भी बदलना चाहिए लेकिन यह बदलाव बेहतर इंसान बनने के लिए होना चाहिए। जो बात भी बुराई की तरफ़ ले जाए उसे बदलना नहीं भटकना कहा जाएगा। हमें भटकने और भटकाने से बचना चाहिए। यही मेरी सोच है और यही मेरा मिशन है।
    इंसान का परिचय Introduction

    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

    कमेंट में यही कहूगा कि-
    "श्वानों को मिलता दूध-वस्त्र भूखे बच्चे अकुलाते हैं!"

    devendra gautam said...

    भगवान अमीर, भक्त गरीब यही विडंबना है. दरअसल धार्मिक संस्थाओं की सामाजिक और समाज की धार्मिक भूमिका बदल गयी है. ब्रिटिश काल के पहले कृषि युग तक किसान उपज का एक हिस्सा धर्मस्थल के लिए निकलते थे और धार्मिक संस्थाएं राजमार्गों पर धर्मशालाएं चलाती थीं जहां यात्रियों के ठहरने और खाने की मुफ्त व्यवस्था रहती थी. उस ज़माने में परदेस जाने वालों को सिर्फ अपने वाहन की व्यवस्था करनी पड़ती थी. खाने ठहरने की व्यवस्था समाज की और से भी थी और धार्मिक संस्थाओं की और से भी. अब वह युग लौटकर नहीं आ सकता लेकिन उनकी भूमिकाओं को नए सिरे से समायोजित तो किया ही जा सकता है. मंदिरों के खजाने में स्थिर पड़ा धन समाज का दिया हुआ है. इसे समाज पर खर्च करने की व्यवस्था होनी चाहिए. तहखानों में लक्ष्मी को कैद रखना तो उसका सरासर अनादर करना है.

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