माफियाओं के चंगुल में ब्लागिंग - 2

पिछले भाग में हम बात कर रहे थे अशोभनीय टिप्पणियों की, बिना किसी लाग लपेट के हम कहना चाहेंगे की हम ब्लॉग में अपने अधिकारों का सदुपयोग नहीं दुरुपयोग कर रहे हैं. जब हम किसी से खुद के सम्मान की अपेक्षा रखते हैं तो निश्चित रूप से हमें दूसरों का भी सम्मान करना होगा, किसी भी एक व्यक्ति के लिए हम सम्पूर्ण समुदाय को दोषी नहीं ठहरा सकते, निश्चित रूप से कुछ भटके लोग इस्लाम या हिंदुत्व के नाम पर आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं. पर उनके किये गए कृत्यों से पूरा जनमानस प्रभावित होता है. चंद भटके हुए लोग सामाजिक विन्ध्वंस का काम करते हैं, जिसका भुगतान सर्व समाज को करना पड़ता है.  पर उसके लिए कोई भी धर्म दोषी नहीं है. यदि यह जिम्मेदारी हम किसी विशेष धर्म या समुदाय के ऊपर थोपते हैं तो निश्चित रूप से सामाजिक विन्ध्वंस में हम भी दोषी है. यदि हम यह अपेक्षा करते हैं की दूसरे लोग सुधर जाय तो पहले हमें सुधर कर दिखाना होगा. जरा आशुतोष जी की यह टिपण्णी देखें.........
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आशुतोष ने कहा…
नूर मोहम्मद जैसे जघन्य गद्दार &^@#$$ कातिलों व उनके आकाओं के लिए एक पंक्ति याद आई मेरी कविता की ........................................ ये नर मुंडो की मस्जिद मे खूनी नमाज को पढ़ते है. अपने पापों का प्रश्चित भी गोहत्या करके करते है | ......................................... इन कुत्ते की औलादों(माफ़ करे गलत शब्द इस्तेमाल करने के लिए) को जिन्दा दफ़न कर देना चाहिए..
-------------------------------------- अपनी रोजी रोटी का साधन नूर मोहम्मद ही नहीं गोपाल भी ढूंढता है. आज यदि गाय का वध किया जा रहा है तो क्या उसके लिए सिर्फ मुसलमान ही दोषी हैं, जी नहीं उसके लिए हिन्दू भी उतने ही दोषी हैं. जानवरों के चमड़े से बनी हुयी तमाम चीजे हम सभी अपने दैनिक उपभोग में लेते हैं. सिर्फ मांस खाने वाले लोग ही उन निरीह जानवरों के वध के लिए दोषी नहीं है बल्कि वे शाकाहारी लोग भी दोषी हैं जो चमड़े से निर्मित वस्तुओ का उपभोग करते हैं. फिर  ऐसे शब्दों का प्रयोग कहा तक उचित है जो हिन्दू - मुसलमानों या फिर किसी भी समुदाय के बीच आपसी विद्वेस पैदा करते हैं. डॉ. अनवर जमाल साहब ने सही कहा गाय बेचने वाले निश्चित रूप से गौपालक होते हैं. वही एम सिंह का कहना रहा की जिनसे यह गाये खरीदी जाती हैं वे भोले भाले लोंगो को पता नहीं होता की उनका हस्र क्या होता है. यहाँ पर मैं अनवर भाई का समर्थन करता हू. जो लोग गाय बेचते हैं वे अच्छी तरह जानते हैं की उनका हस्र क्या होगा. जब गायें दूध देने के काबिल नहीं रह जाती तो उन्हें चंद रुपयों की खातिर जिन लोंगो के हाथ में बेचा जाता है वे उनकी सेवा करने के लिए नहीं ले जाते, क्या आज के ज़माने में लोग इतने भोले हो गए हैं की उन्हें यह नहीं पता की उन गायों का हस्र क्या होगा. यदि ऐसी सोच नहीं होती और चंद सिक्को की लालच नहीं रहता  तो निश्चित रूप से उन गायों को गौशाला में दान दे दी जाती. यही नहीं बड़े पैमाने पर देंखें तो आज देश में  कई स्थान ऐसे हैं जहा पर गाय का मांस निर्यात किया जाता है. उन बूचडखानो में काम करने वाले सिर्फ मुसलमान ही नहीं होते, बल्कि हिन्दू भी होते हैं, मैं कई ऐसे हिन्दुओ को जनता हूँ जो यह काम करते हैं.  बल्कि यह कहना उचित होगा की गाय के मांस को निर्यात करने वाले सिर्फ मुसलमान ही नहीं होते, बल्कि बड़े पैमाने पर हिन्दू भी इस कृत्य में शामिल है. जो सरकार गायों को काटने और उनके मांस को निर्यात करने की अनुमति देती है वह सरकार मुसलमानों की नहीं बल्कि उस सरकार का बड़ा तबका हिन्दुओ का ही  है. हिन्दू धर्म की रक्षा का अलाप लगाने वाली भाजपा ने भी गाय के वध पर रोक नहीं लगा पाई फिर सारा दोष मुसलमानों को ही क्यों दिया जाता है. हम लोग कोई बात कहने से पहले सोचते नहीं है और धर्म पर अंगुली उठाना शुरू कर देते हैं. एक तरफ हम चाहते हैं की आपस में सांप्रदायिक सौहार्द, भाईचारा, प्रेम बना रहे और दूसरी तरफ आरोप-प्रत्यारोप के संकुचित दायरे से निकलने का प्रयास नहीं करते. यदि हम चाहते है की देश व समाज का विकास हो तो हमें एक दूसरे पर विश्वास करना होगा, एक दूसरे की अच्छी बातों को ग्रहण करना होगा. यदि कोई मुसलमान यह सोचे की हिन्दू धर्म को नीचा दिखाकर हम बड़े बन जायेंगे या फिर हिन्दू यह सोचे की मुसलमानों पर अंगुली उठाकर हम बड़े कहलायेंगे तो यह दूषित मानसिकता के अलावा कुछ नहीं है. हमें गौर करना होगा की जब हम अपनी एक अंगुली दूसरे की तरफ उठाते हैं तो बाकी चार अंगुलिया खुद बा खुद हमारी ओर उठ जाती हैं. ब्लोगिंग में भी यही हो रहा है जो हिंदी का  सम्मान नहीं बढ़ा रहा है बल्कि हिंदी का सर नीचा कर रहा है.
नोट-- अगले भाग में पढ़े हमारीवाणी की माफियागिरी और अनवर जमाल तथा सलीम खान का कसूर ..

2 comments:

Arshad Ali said...

यदि कोई मुसलमान यह सोचे की हिन्दू धर्म को नीचा दिखाकर हम बड़े बन जायेंगे या फिर हिन्दू यह सोचे की मुसलमानों पर अंगुली उठाकर हम बड़े कहलायेंगे तो यह दूषित मानसिकता के अलावा कुछ नहीं है.

ye baat ham sabhi ko kab samjh me aayegi...usi din ka intazaar kar raha hun

Aapse purn rup se sahmat. aabhar.

DR. ANWER JAMAL said...

भाई हरीश जी ! बड़ी धांसू पोस्ट लिखी है आपने। ब्लॉग की ख़बरें पर आपने जो फ़ोटो लगाया है उससे उसका लुक फ़िल्मी सा हो गया है जो कि आकर्षित करता है।
हमारी वाणी के मार्गदर्शक मंडल की नीतियां साझा ब्लॉग के खि़लाफ़ हैं। हरेक साझा ब्लॉग के अपने मक़सद हैं। कोई लेखक कहां पोस्ट डाल रहा है और कितनी जगह डाल रहा है ?
यह मैटर ब्लॉग के संयोजक-संपादक और लेखक के बीच का है न कि एग्रीगेटर का। अगर वह एक पोस्ट को एक से ज़्यादा बार अपने मेनपेज पर नहीं दिखाना चाहता है तो वह एक पोस्ट को ही दिखाए और अन्य को हटा दे। यह अधिकार उसे है। लेकिन यह क़तई दुरूस्त नहीं है कि इसके लिए वह साझा ब्लॉग को निलंबित कर दे और उनके संयोजकों से माफ़ियां मंगवाए। हमने न तो माफ़ी मांगी है और न ही इसे अपना कोई जुर्म मानते हैं कि इसके लिए हम माफ़ी मांगें।
हां, हमारी वाणी को नैतिक रूप से अपनी ग़लती स्वीकारते हुए अकारण निलंबित किए गए साझा ब्लाग्स के संयोजकों से ज़रूर माफ़ी मांगनी चाहिए और अगर वह हठवश माफ़ी नहीं भी मांगती है, तब भी हम उसे माफ़ कर देंगे क्योंकि हमारा दिल बड़ा है।
मैंने हमारी वाणी को बताया है कि साझा ब्लॉग के संयोंजक को बहुत से काम रहते हैं और बिजली सप्लाई भी अनियमित है, ऐसे में उसके लिए हर समय इंटरनेट पर मौजूद रहना संभव ही नहीं है। उदीयमान हिंदी ब्लॉगर में एक जज़्बा होता है कि मेरे लेख को ज़्यादा से ज़्यादा ब्लॉग पर देखा जाए। उनके जज़्बे पर नियम के हथौड़े चलाए जाएंगे तो हिंदी ब्लॉगिंग को हानि ही पहुंचेगी। फ़ेसबुक पर एक ही पोस्ट, एक ही आदमी का फ़ोटो हज़ारों और लाखों जगह पड़ा रहता है और उसे उसकी लोकप्रियता माना जाता है। तब हिंदी एग्रीगेटर उसके विपरीत जा रहे हैं जो कि हमारी वाणी और हिंदी ब्लॉगिंग दोनों के ही विपरीत है।
हमारी वाणी की देखा-देखी एक और एग्रीगेटर ने भी साझा ब्लाग के रास्ते में दिक्कतें खड़ी कर दी हैं। हरेक एग्रीगेटर निजी और सामूहिक ब्लॉग की मनमाफ़िक परिभाषाएं गढ़कर नियम पे नियम पेले जा रहा है।
जानना चाहिए कि साझा ब्लॉग एक मंच मुहैया कराता है हिंदी ब्लॉगर्स को आपस में जुड़ने के लिए। बातें फ़ासलों की दीवारें गिराती हैं और प्यार की फ़सल उगाती हैं बशर्ते कि अपने नज़रिये को बयान करने साथ साथ दूसरों के नज़रियों को, उनके हालात को भी सहानुभूतिपूर्वक समझने की कोशिश की जाए। आम तौर पर साझा ब्लॉग पर लेखक संयत भाषा का प्रयोग करते हैं और उन्हें दूसरों के नज़रियों से भी अवगत होने का मौक़ा मिलता है जो कि एक बेहतर समाज के निर्माण के लिए आवश्यक है। साझा हित के लिए काम करने वाले साझा ब्लॉग को ब्लॉग माफ़ियाओं के चंगुल से आज़ाद रखने की हरसंभव कोशिश की जानी चाहिए। जब तक हमारी वाणी आपके ब्लॉग बिना किसी माफ़ीनामे के स्वीकार नहीं करेगी, तब तक हम भी अपने दो साझा ब्लॉग को हमारी वाणी पर नहीं भेजेंगे। एकता में बल है और हम आपके साथ हैं बिना आपसे किसी बदले की अपेक्षा के। आप पर कोई दबाव नहीं है, आप जो चाहें वह निर्णय करने के लिए स्वतंत्र हैं। हम आपके साथ हैं हर हाल में।
आपके भतीजे उपेन्द्र की तबीयत अब कैसी है ?
चिकित्सा के लिए आप उसे जहां ले गए थे, वहां उसे क्या उपचार दिया गया और क्या कहा गया उसके बारे में ?

एक और एग्रीगेटर ने भी साझा ब्लाग के रास्ते में दिक्कतें खड़ी कर दी हैं No Problem

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