चलो बुलावा आया है....

Posted on
  • Monday, April 4, 2011
  • by
  • Atul Shrivastava
  • in
  • Labels: , ,

  • http://www.atulshrivastavaa.blogspot.com/
    डोंगरगढ  की मां  बम्‍लेश्‍वरी देवी  
    (मेरी यह पोस्‍ट पिछले साल अक्‍टूबर महीने में प्रकाशित हो चुकी है। इसे आज से शुरू हो रहे चैत्र नवरात्रि के मौके पर फिर से प्रकाशित कर रहा हूं। मां बम्‍लेश्‍वरी मंदिर के इतिहास, पौराणिक महत्‍व और मां की महिमा का बखान करती यह पोस्‍ट आपके समक्ष फिर से प्रस्‍तुत है।)
    जय माता दी। राजनांदगांव जिले के डोगरगढ़ में स्थित है मां बम्लेश्वरी देवी का मंदिर। हर साल नवरात्रि के मौके पर मां के दरबार में बड़ा मेला लगता है। दूर दूर से लोग मां के दर्शन को आते हैं। मां से मनोकामना मांगते हैं। और मां सबकी मनोकामना पूरी भी करती  है। छत्तीसगढ़ राज्य की सबसे ऊंची चोटी पर विराजित डोंगरगढ़ की मां बम्लेश्वरी का इतिहास काफी पुराना है। वैसे तो साल भर मां के दरबार में भक्तों का रेला लगा रहता है लेकिन लगभग दो हजार साल पहले माधवानल और कामकंदला की प्रेम कहानी से महकने वाली कामावती नगरी में नवरात्रि के दौरान अलग ही दृश्य होता है। छत्तीसगढ़ में धार्मिक पर्यटन कस सबसे बड़ा केन्द्र पुरातन कामाख्या नगरी है जो पहाड़ों से घिरे होने के कारण पहले डोंगरी और अब डोंगरगढ़ के नाम से जाना जाता है। यहां ऊंची चोटी पर विराजित बगलामुखी मां बम्लेश्वरी देवी का मंदिर छत्तीसगढ़ ही नहीं देश भर के श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केन्द्र बना हुआ है। हजार से ज्यादा सीढिय़ां चढ़कर हर दिन मां के दर्शन के लिए हजारों श्रद्धालु आते हैं और जो ऊपर नहीं चढ़ पाते उनके लिए मां का एक मंदिर पहाड़ी के नीचे भी है जिसे छोटी बम्लेश्वरी मां के रूप में पूजा जाता है। अब मां के मंदिर में जाने के लिए रोप वे भी लग गया है। 
    वैसे तो मां बम्लेश्वरी के मंदिर की स्थापना को लेकर कोई स्पष्ट  प्रमाण नहीं है पर जो तथ्य सामने आए हैं उसके मुताबिक  उज्जैन के राजा विक्रमादित्‍य को मां बगलामुखी ने सपना दिया था और उसके बाद डोंगरगढ़ की पहाड़ी पर कामाख्या नगरी के राजा कामसेन ने मां के मंदिर की स्थापना की थी। एक कहानी यह भी है कि राजा कामसेन और विक्रमादित्य के बीच युद्ध में राजा विक्रमादित्य के  आव्हान पर उनके कुल देव उज्जैन के महाकाल कामसेन की सेना का विनाश करने लगे और जब कामसेन ने अपनी कुल देवी मां बम्लेश्वरी का आव्हान किया तो वे युद्ध के मैदान में पहुंची, उन्हें देखकर महाकाल ने अपने वाहन नंदी से उतर कर मां की शक्ति को प्रमाण किया और फिर दोनों देशों के बीच समझौता हुआ। इसके बाद भगवान शिव और मां बम्लेश्वरी अपने अपने लोक को विदा हुए। इसके बाद ही मां बम्लेश्वरी के पहाड़ी पर विराजित होने की भी कहानी है। यह भी कहा जाता है कि कामाख्या नगरी जब प्रकृति के तहत नहस में नष्ट हो गई थी तब डोंगरी में मां की प्रतिमा स्व विराजित प्रकट हो गई थी। सिद्ध महापुरूषों और संतों ने अपने आत्म बल और तत्व ज्ञान से यह जान लिया कि पहाड़ी में मां की प्रतिमा प्रकट हो गई है और इसके बाद मां के मंदिर की स्थापना की गई।
          
    प्राकृतिक रूप से चारों ओर से पहाड़ों में घिरे डोंगरगढ़ की सबसे ऊंची पहाड़ी पर मां का मंदिर स्थापित है। पहले मां के दर्शन के लिए पहाड़ों से ही होकर जाया जाता था लेकिन कालांतर में यहां सीढिय़ां बनाई गईं और मां के मंदिर को भव्य स्वरूप देने का काम लगातार जारी है। पूर्व में खैरागढ़ रियासत के राजाओं द्वारा मंदिर की देखरेख की जाती थी बाद में राजा वीरेन्द्र बहादुर सिंह ने ट्रस्ट का गठन कर मंदिर के संचालन का काम जनता  को सौंप दिया। अब मंदिर में जाने के लिए रोप वे की भी व्यवस्था हो गई है और मंदिर ट्रस्ट अस्पताल धर्मशाला जैसे कई सुविधाओं की दिशा में काम कर रहा है। मंदिर में आने वाले श्रद्धालु मां के दिव्य स्वरूप को देखकर यहीं रूक जाने को लालायित रहते हैं। मां के मंदिर में आस्था के साथ हर रोज हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं। सिर्फ छत्तीसगढ़ ही नहीं, देश के कई हिस्सों से मंदिर में लोग आते हैं और मां से आशीर्वाद मांगते हैं। आम दिनों में श्रद्धालुओं की संख्या तो फिर भी कम होती है लेकिन नवरात्रि के मौके पर मां के मंदिर में हर दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। मां के दरबार में आने वाला हर श्रद्धालु खुद को भाग्यशाली समझता है और मां के दर्शन कर लौटते वक्त उसके जेहन में अगली बार फिर आने की लालसा जग जाती है।

    डोंगरगढ़ में मां बम्लेश्वरी  के दो मंदिर हैं। एक मंदिर पहाडी के नीचे है और दूसरा पहाड़ी के ऊपर। पहाडी के नीचे के मंदिर को बड़ी बमलई का मंदिर और पहाड़ी के नीचे के मंदिर को छोटी बमलई का मंदिर कहा जाता है।

    मां बम्लेश्वरी  मंदिर को  लेकर कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां

    00   एतिहासिक और धार्मिक  नगरी डोंगरगढ़ में मां बम्लेश्वरी के दो मंदिर विश्व प्रसिद्ध हैं। एक मंदिर 16 सौ फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित है जो बड़ी बम्लेश्वरी के नाम से प्रसिद्ध है। समतल पर स्थित मंदिर छोटी बम्लेश्वरी के नाम से विख्यात है।

    00   ऊपर विराजित मां और नीचे विराजित मां को एक दूसरे की बहन कहा जाता है। ऊपर वाली मां बड़ी और नीचे वाली छोटी बहन मानी गई है।

    00   सन 1964 में खैरागढ़ रियासत के भूतपूर्व नरेश श्री राजा वीरेन्द्र बहादुर सिंह ने एक ट्रस्ट की स्थापना कर मंदिर का संचालन ट्रस्ट को सौंप दिया था।

    00   मां बम्लेश्वरी देवी शक्तिपीठ का इतिहास लगभग 2200 वर्ष पुराना है। डोंगरगढ़ से प्राप्त भग्रावेशों से प्राचीन कामावती नगरी होने के प्रमाण मिले हैं। पूर्व में डोंगरगढ़ ही वैभवशाली कामाख्या नगरी कहलाती थी।

    00   मंदिर के पुराने पुजारी और जानकार बताते हैं कि राजा विक्रमादित्य को माता ने स्वप्‍न  दिया था कि उन्हें यहां की पहाड़ी पर स्थापित किया जाए और उसके बाद उन्होंने मंदिर का निर्माण कराया। ऐसा भी कहा जाता है कि राजा विक्रमादित्य के स्वप्‍न के बाद मंदिर का निर्माण राजा कामसेन ने कराया था।

    00   मां बम्लेश्वरी मंदिर के इतिहास को लेकर कोई स्पष्ट  तथ्य तो मौजूद नहीं है, लेकिन मंदिर के इतिहास को लेकर जो पुस्तकें और दस्तावेज सामने आए हैं, उसके मुताबिक डोंगरगढ़ का इतिहास मध्यप्रदेश के उज्जैन से जुड़ा हुआ है।

    00   मां बम्लेश्वरी को मध्यप्रदेश के उज्जैयनी के प्रतापी राजा विक्रमादित्य की कुल देवी भी कहा जाता है।

    00   ऐसी किवदंती है कि राजा वीरसेन की कोई संतान नहीं थी। वे इस बात से दुखी रहते थे। कुछ पंडितों की सलाह पर राजा वीरसेन और रानी महिषमतिपुरी मंडला गए। वहां पर उन्होंने भगवान शिव और देवी भगवती की आराधना की। उन्होंने वहां एक शिवालय का निर्माण भी कराया। इसके एक साल के भीतर रानी गर्भवती हुई और उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। पुत्र का नाम मदनसेन रखा गया।  इसके बाद राजा वीरसेन ने पुत्र रत्न प्राप्त होने को शिव और भगवती की कृपा मानकर मां बम्लेश्वरी के नाम से डोंगरगढ़ में मां बम्लेश्वरी का मंदिर बनवाया।

    00  इतिहासकारों और विद्वानों ने इस क्षेत्र को कल्चूरी काल का पाया है लेकिन अन्य उपलब्ध सामग्री जैसे जैन मूर्तियां यहां दो बार मिल चुकी हैं, तथा उससे हटकर कुछ मूर्तियों के गहने, उनके वस्त्र, आभूषण, मोटे होठों तथा मस्तक के लम्बे बालों की सूक्ष्म मीमांसा करने पर इस क्षेत्र की मूर्ति कला पर गोंड कला का प्रमाण परिलक्षित हुआ है।

    00  यह अनुमान लगाया जाता है कि 16 वीं शताब्दी तक  डूंगराख्या नगर गोंड राजाओं के अधिपत्‍य में रहा। यह अनुमान भी अप्रासंगिक  नहीं है कि गोंड राजा पर्याप्त समर्थवान थे, जिससे राज्य में शांति व्यवस्था स्थापित थी। आज भी पहाड़ी में किले के बने हुए अवशेष बाकी हैं। इसी वजह से इस स्थान का नाम डोंगरगढ़ (गोंगर, पहाड़, गढ़, किला) रखा गया और मां बम्लेश्वरी का मंदिर चोटी पर स्थापित किया गया।

    अन्य जानकारियां

    00   एतिहासिक और धार्मिक स्थली डोंगरगढ़ में कुल 11 सौ सीढिय़ां चढऩे के बाद मां के दर्शन होते हैं।

    00   यात्रियों की सुविधा के लिए रोपवे का निर्माण किया गया है। रोपवे सोमवार से शनिवार तक सुबह आठ से दोपहर दो और फिर अपरान्ह तीन से शाम पौने सात तक चालू रहता है। रविवार को सुबह सात बजे से रात सात बजे तक चालू रहता है। नवरात्रि के मौके पर चौबीसों घंटे रोपवे की सुविधा रहती है।

    00   बुजुर्ग यात्रियों के लिए कहारों की भी व्यवस्था पहले थी पर रोपवे हो जाने के बाद कहार कम ही हैं।
    00   मंदिर के नीचे छीरपानी जलाशय है जहां यात्रियों के लिए बोटिंग की व्यवस्था भी है।

    00   डोंगरगढ़ में मां बम्लेश्वरी के दो मंदिरों के अलावा बजरंगबली मंदिर, नाग वासुकी मंदिर, शीतला मंदिर,  दादी मां मंदिर भी हैं।

    00  मुंबई हावड़ा मार्ग पर राजनांदगांव से डोंगरगढ़ जाते समय राजनांदगांव में मां पाताल भैरवी दस महाविद्या पीठ मंदिर है, जो अपनी भव्यता के चलते दर्शनीय है। जानकार बताते हैं कि विश्‍व के सबसे बडे शिवलिंग के आकार के मंदिर में मां पातालभैरवी विराजित हैं। तीन मंजिला इस मंदिर में पाताल में मां पाताल भैरवी, प्रथम तल में दस महाविद़़यापीठ और ऊपरी तल पर भगवान शंकर का मंदिर है।
    00  मां बम्लेश्वरी मंदिर में ज्योत जलाने हर वर्ष देश और विदेशों से हजारों श्रद्धालु आते हैं। हालत यह है कि मंदिर में वर्तमान में ज्योत के लिए जो बुकिंग कराई जा रही है है, वह वर्ष 2015 के क्वांर नवरात्रि के लिए है।

    00   ट्रस्ट समिति अस्पताल संचालित करती है। अब मेडिकल कालेज खोले जाने की भी योजना है।

    00   मंदिर का पट सुबह चार बजे से दोपहर एक बजे तक और फिर दोपहर दो बजे से रात 10 बजे तक खुला रहता है। रविवार को सुबह चार बजे से रात दस बजे तक मंदिर लगातार खुला रहता है।
    00   नवरात्रि के मौके पर मंदिर का पट चौबीसों घंटे खुला रहता है।

    डोंगरगढ़ कैसे पहुंचे

    00   डोंगरगढ़ के लिए ट्रेन और सड़क मार्ग दोनों ओर से रास्ता है।

    00   मुबई हावड़ा रेल मार्ग पर हावड़ा की ओर से राजधानी रायपुर के बाद डोंगरगढ़ तीसरा बड़ा स्टेशन है। बीच में दुर्ग और राजनांदगांव रेलवे स्टेशन पड़ता है।

    00   रायपुर से डोंगरगढ़ की रेल मार्ग से दूरी लगभग 100 किलोमीटर है।

    00   राजनांदगांव जिला मुख्यालय से डोंगरगढ़ की रेल मार्ग से दूरी 35 किलोमीटर है।
    00   सड़क  मार्ग से डोंगरगढ़ के लिए राजनांदगांव जिला मुख्यालय से दूरी 40 किलोमीटर है और नेशनल हाईवे में राजनांदगांव से नागपुर की दिशा में जाने के बाद 15 किलोमीटर की दूरी पर तुमड़ीबोड गांव से डोंगरगढ़ के लिए पक्की सड़क मुड़ती है जो सीधे डोंगरगढ़ जाती है।

    00  डोंगरगढ़ रेलवे स्टेशन जंक्शन की श्रेणी में आता है। यहां सुपर फास्ट ट्रेनों को छोड़कर सारी गाडियां रूकती हैं, लेकिन नवरात्रि में सुपर फास्ट ट्रेनें भी डोंगरगढ़ में रूकती हैं।
    00  डोंगरगढ़ जाने वाले यात्रियों के लिए रायपुर से लेकर राजनांदगांव तक यात्री बसों और निजी टैक्सियों की व्यवस्था रहती है।

    00  डोंगरगढ़ के लिए निकटस्थ हवाई अड्डा रायपुर के माना में स्थित है।

    00   डोंगरगढ़ में यात्रियों की सुविधा के लिए ट्रस्ट समिति द्वारा मंदिर परिसर में धर्मशाला का निर्माण किया गया है। रियायती दर पर यहां कमरे मिलते हैं। मुफ्त में भी धर्मशाला के हाल में रूकने की व्यवस्था है।

    00   यात्रियों के लिए रियायती दर पर भोजन की व्यवस्था भी रहती है। ट्रस्ट द्वारा मंदिर के नीचे और बीच में केंटीन संचालित है।

    00   नवरात्रि पर विभिन्न संगठनों द्वारा नि:शुल्‍क भंडारा की व्यवस्था भी की जाती है।

    00   डोंगरगढ़ में यात्रियों की सुविधा के लिए होटल और लाज भी उपलब्ध है।

    00   डोंगरगढ़ आने वाले यात्रियों की सुविधा के लिए राज्य सरकार के पर्यटन विभाग ने तुमड़ीबोड के पास मोटल बनाया है।

    00  डोंगरगढ़ चारों ओर से पहाड़ों से घिरा हुआ है और पहाड़ों पर हरियाली यहां मन मोह लेती है।

    00   डोंगरगढ़ में एक पहाड़ी पर बौद्ध धर्म के लोगों का तीर्थ प्रज्ञागिरी स्थापित है। यहां भगवान बुद्ध की विशालकाय प्रतिमा स्थापित है।

    00  डोंगरगढ़ में वर्ष भर छत्तीसगढ़ी देवी भक्ति गीतों की शूटिंग होते रहती है और प्रदेश के अलावा बाहर के कलाकार यहां लगातार आते रहते हैं।http://www.atulshrivastavaa.blogspot.com/

    0 comments:

    Read Qur'an in Hindi

    Read Qur'an in Hindi
    Translation

    Followers

    Wievers

    join india

    गर्मियों की छुट्टियां

    अनवर भाई आपकी गर्मियों की छुट्टियों की दास्तान पढ़ कर हमें आपकी किस्मत से रश्क हो रहा है...ऐसे बचपन का सपना तो हर बच्चा देखता है लेकिन उसके सच होने का नसीब आप जैसे किसी किसी को ही होता है...बहुत दिलचस्प वाकये बयां किये हैं आपने...मजा आ गया. - नीरज गोस्वामी

    Check Page Rank of your blog

    This page rank checking tool is powered by Page Rank Checker service

    Promote Your Blog

    Hindu Rituals and Practices

    Technical Help

    • - कहीं भी अपनी भाषा में टंकण (Typing) करें - Google Input Toolsप्रयोगकर्ता को मात्र अंग्रेजी वर्णों में लिखना है जिसप्रकार से वह शब्द बोला जाता है और गूगल इन...
      12 years ago

    हिन्दी लिखने के लिए

    Transliteration by Microsoft

    Host

    Host
    Prerna Argal, Host : Bloggers' Meet Weekly, प्रत्येक सोमवार
    Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

    Popular Posts Weekly

    Popular Posts

    हिंदी ब्लॉगिंग गाइड Hindi Blogging Guide

    हिंदी ब्लॉगिंग गाइड Hindi Blogging Guide
    नए ब्लॉगर मैदान में आएंगे तो हिंदी ब्लॉगिंग को एक नई ऊर्जा मिलेगी।
    Powered by Blogger.
     
    Copyright (c) 2010 प्यारी माँ. All rights reserved.