धूप अधिक ,छावं कम है जिंदगी
जिम्मदारियों को मंजिलों तक
पहुंचाने की चाह है जिंदगी
रात -दिन मेहनत करके ,आधी से ज्यादा
धूप में निकल जाती है जिंदगी
इसी आशा में की जिम्मेदारियों से मुक्त होने पर
ठंडी-ठंडी छावं में गुजर जायेगी जिंदगी
पर जब जिम्मेदारियां मंजिल पाकर मुक्त होकर
हवा हो जातीं हैं
तो दुःख से ठंडी-ठंडी छावं की आशा लिए
दुनिया से विलुप्त हो जाती है जिंदगी
2 comments:
behatarin post
यह समझ ले इंसान
तो बन जाए गुणवान !
आपका स्वागत है HBFI में ।
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