ब्लॉगिंग और सोशल नेटवर्किंग के ज़रिये फ़ासले ख़त्म हो जाते हैं और एक इंसान दूसरे इंसान से जुड़ जाता है। यह जुड़ना इंसान को कुछ पा लेने का अहसास दिलाता है, उसमें आशा के दीप जलाता है और उसे ताक़तवर भी बनाता है। इंसान और इंसान के बीच बनने वाला यह रिश्ता कुछ ख़ुशियों के साथ कुछ ज़िम्मेदारियां भी लेकर आता है। जब उन ज़िम्मेदारियों को भुला दिया जाता है तो फिर वह ख़ुशी भी काफ़ूर हो जाती है, जो कि उस रिश्ते के बनते समय मिली थी। ब्लॉगिंग के दौरान ब्लॉगर्स भी कुछ भूलें और कुछ ग़लतियां कर जाते हैं और तब दुख देने वाले हालात पैदा हो जाते हैं, जिनसे सिर्फ़ दो इंसान ही दुखी नहीं होते बल्कि उन दोनों ब्लॉगर्स से जुड़े हुए लोग भी दुखी हो जाते हैं। भूल और ग़लती हो जाने पर उसे सुधार लेना ही एकमात्र व्यवहारिक हल है इस समस्या का। प्रस्तुत लेख ब्लॉगर्स को यही हल सुझा रहा है :
जीवन में ‘आशा’ ही एक ऐसा शक्तिशाली बल है, जो बेहतर दुनिया बनाने में सहायक हो सकता है। जब तक आप आशा का दामन नहीं छोड़ते, इस दुनिया में सब कुछ संभव है।
यदि हमारी बातों या व्यवहार से किसी को चोट पहुंची हो तो अहसास होते ही तुरंत क्षमा मांग लेनी चाहिए। यह तनाव को दूर रखने का एकमात्र तरीका है। यदि समय रहते क्षमा याचना न की जाए तो यह तनावपूर्ण हो सकता है। हमें अपनी गलतियों से सबक लेकर उनसे ऊपर उठना चाहिए। अपने जीवन व कार्यों के प्रति उत्तरदायी होने का यही एक तरीका है, परंतु इस राह में अहं हमारी सबसे बड़ी समस्या है, जो अक्सर हमारे व भूल को स्वीकारने के बीच आ जाता है। यदि आप सोचते हैं कि जीवन में कोई व्यक्ति भूलें किए बिना रह सकता है तो यह आपका भ्रम है। यदि हम भूलों से सबक नहीं लेते तो इसका अर्थ होगा कि हम एक और अवसर गंवा रहे हैं। गलतियों व संभावित गलत कदमों का निरंतर मूल्यांकन ही उनसे कुछ सीखने व भविष्य में उन्हें अनदेखा करने का तरीका है। उन परिस्थितियों की सूची बनाएं, जिनसे आप भयभीत हैं तथा बुरे से बुरा होने की कल्पना करें। कल्पना करें कि कोई आपको सताता है तो बुरे से बुरा क्या हो सकता है? या तो दुष्ट नीचा पड़ जाएगा या आपका संघर्ष होगा। ऐसा मौका शायद नहीं आएगा कि सताने वाला व्यक्ति और भी भड़क जाए, क्योंकि ऐसे में वह अपने बचाव का रास्ता तलाशेगा। आपको अपनी बात दूसरों तक पहुंचानी होगी, अन्यथा वे कैसे जान पाएंगे कि आप उनसे क्या उम्मीद रखते हैं। हर रोज किसी-न-किसी भय से ग्रस्त होकर कार्य करना, आपको कुंठा का शिकार बना सकता है। आपको हर प्रकार का भय पीछे छोड़ कर अगला कदम बढ़ाना होगा। भय से बचना चाहते हैं तो सबसे पहले अपने भय को पहचानें। इस पर ऊर्जा नष्ट करने की बजाय इसका खुल कर सामना करें। जिस कार्य से भय लगे, उसे बार-बार करें। प्राय: बचपन से हमें सिखाया जाता है कि दूसरों की मदद लेना अच्छी बात नहीं है। यही बात हमारे दिमाग में बस जाती है। यदि आप अब भी संदेह में हों तो स्वयं से पूछें कि आप किस उद्देश्य से किसी से विनती कर रहे हैं। सहायता की मांग एकतरफा नहीं होनी चाहिए। यदि आप से भी जब कोई सहायता मांगे या आपको मदद करने का अवसर मिले तो उसे कभी न चूकें। उनकी भी सहायता करें, जिन्होंने आपको कभी मदद नहीं की। अपने उद्देश्यों व लक्ष्यों तक पहुंचना ही हमारे जीवन का अंतिम लक्ष्य है। हमें केवल प्रयास नहीं करना, बल्कि एक विजेता के रूप में उभरना है। हम या तो सफल होंगे या फिर असफल होंगे। इन दोनों के बीच कुछ नहीं होता, लोग चाहे कुछ भी कहें।
केवल यह कह देना कि आपने कोशिश की, काफी नहीं है। अगर कुछ शुरू किया है तो लक्ष्य तक पहुंचने तक लगातार कोशिश करते रहें, रुके नहीं। हो सकता है कि उस समय आपको अहसास न हो कि कोशिश न करने से आप क्या खो देंगे। बस लक्ष्य तय करें व उस तक पहुंचने के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहें। जीवन में विघ्न-बाधाएं तो आती ही हैं। लक्ष्य को भुला कर इन अड़चनों से टकराना तो कोरी मूर्खता ही होगी। आपको लक्ष्य पर केंद्रित रहते हुए इन बाधाओं से पार पाना होगा। आपको अपने लक्ष्य प्राप्ति की राह में किसी की मदद लेने में भी संकोच नहीं करना चाहिए। काम को बीच में छोड़ देने पर तो असफलता निश्चित है, किंतु यह निर्णय भी केवल हमीं ले सकते हैं, कोई दूसरा नहीं ले सकता। आपको सफलता तक न पहुंचने के लिए स्वयं से ही बहाने नहीं गढ़ने चाहिए। कोई भी दैवीय शक्ति या करिश्मा आपको समस्या से छुटकारा नहीं दिलवाएगा। आप स्वयं ही करिश्मा हैं और आप स्वयं ही करिश्मा कर सकते हैं। हालात चाहे कोई भी हों, स्वयं से हमेशा कहते रहें कि आप इसे अवश्य ही कर सकते हैं। परिवार हो, स्वास्थ्य हो या फिर संबंध, हर समय सब कुछ फिट नहीं रह सकता। अगर आपको कोई काम, कोई खास जिम्मेदारी सौंपी गई है तो उसे इस सोच के साथ शुरू न करें कि वह पूरा नहीं होने वाला। जो जिम्मेदारी मिले, उसे बोझ न मानें। अगर आप हमेशा सकारात्मक नहीं रह सकते तो कम-से-कम नकारात्मकता न फैलाएं। किसी काम को करने व प्रयास करने से पहले और संभावित विकल्प तलाशने से पहले ही फैसला न सुनाएं कि ‘यह काम नहीं हो पाएगा।’ असफलता में कुछ भी स्थायी नहीं होता। यहां तक कि बाधाएं भी अस्थायी होती हैं। याद रखें कि आप योगदान नहीं दे सकते तो उन लोगों के बीच में न आएं, जो योगदान दे रहे हैं। यदि अपने भाग्य व भविष्य पर नियंत्रण पाना चाहते हैं तो सबसे पहले नकारात्मक रवैये को त्यागना होगा। अपने प्रतिदिन के कार्यों के उद्देश्यों को जीवन के उद्देश्यों से जोड़ें। स्वयं को सशक्त बनाने का यही एक तरीका हो सकता है। आपको जीवन के लक्ष्यों के प्रति पूरी तरह से वचनबद्ध होना चाहिए। यदि आप किसी संगठन के लिए काम कर रहे हैं तो उनके लक्ष्य आपके लक्ष्य होंगे। इस तरह आप अपने कार्यों को नए मूल्य प्रदान कर सकते हैं।
केवल यह कह देना कि आपने कोशिश की, काफी नहीं है। अगर कुछ शुरू किया है तो लक्ष्य तक पहुंचने तक लगातार कोशिश करते रहें, रुके नहीं। हो सकता है कि उस समय आपको अहसास न हो कि कोशिश न करने से आप क्या खो देंगे। बस लक्ष्य तय करें व उस तक पहुंचने के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहें। जीवन में विघ्न-बाधाएं तो आती ही हैं। लक्ष्य को भुला कर इन अड़चनों से टकराना तो कोरी मूर्खता ही होगी। आपको लक्ष्य पर केंद्रित रहते हुए इन बाधाओं से पार पाना होगा। आपको अपने लक्ष्य प्राप्ति की राह में किसी की मदद लेने में भी संकोच नहीं करना चाहिए। काम को बीच में छोड़ देने पर तो असफलता निश्चित है, किंतु यह निर्णय भी केवल हमीं ले सकते हैं, कोई दूसरा नहीं ले सकता। आपको सफलता तक न पहुंचने के लिए स्वयं से ही बहाने नहीं गढ़ने चाहिए। कोई भी दैवीय शक्ति या करिश्मा आपको समस्या से छुटकारा नहीं दिलवाएगा। आप स्वयं ही करिश्मा हैं और आप स्वयं ही करिश्मा कर सकते हैं। हालात चाहे कोई भी हों, स्वयं से हमेशा कहते रहें कि आप इसे अवश्य ही कर सकते हैं। परिवार हो, स्वास्थ्य हो या फिर संबंध, हर समय सब कुछ फिट नहीं रह सकता। अगर आपको कोई काम, कोई खास जिम्मेदारी सौंपी गई है तो उसे इस सोच के साथ शुरू न करें कि वह पूरा नहीं होने वाला। जो जिम्मेदारी मिले, उसे बोझ न मानें। अगर आप हमेशा सकारात्मक नहीं रह सकते तो कम-से-कम नकारात्मकता न फैलाएं। किसी काम को करने व प्रयास करने से पहले और संभावित विकल्प तलाशने से पहले ही फैसला न सुनाएं कि ‘यह काम नहीं हो पाएगा।’ असफलता में कुछ भी स्थायी नहीं होता। यहां तक कि बाधाएं भी अस्थायी होती हैं। याद रखें कि आप योगदान नहीं दे सकते तो उन लोगों के बीच में न आएं, जो योगदान दे रहे हैं। यदि अपने भाग्य व भविष्य पर नियंत्रण पाना चाहते हैं तो सबसे पहले नकारात्मक रवैये को त्यागना होगा। अपने प्रतिदिन के कार्यों के उद्देश्यों को जीवन के उद्देश्यों से जोड़ें। स्वयं को सशक्त बनाने का यही एक तरीका हो सकता है। आपको जीवन के लक्ष्यों के प्रति पूरी तरह से वचनबद्ध होना चाहिए। यदि आप किसी संगठन के लिए काम कर रहे हैं तो उनके लक्ष्य आपके लक्ष्य होंगे। इस तरह आप अपने कार्यों को नए मूल्य प्रदान कर सकते हैं।
Source : http://www.livehindustan.com/news/lifestyle/lifestylenews/article1-personality-development-50-50-181277.html
6 comments:
सार्थक व् गहराई से विश्लेषित करता तथ्यपरक आलेख .आभार
बहुत सार्थक व् सही विश्लेषण प्रस्तुत किया है आपने
अपनी गलती की जानकारी होने पर बिना किसी छोटे-बड़े की बात मन में लाये. क्षमा मांगनी चाहिए. क्षमा दान से बड़ा कोई दान नहीं हैं. आपका बहुत सुन्दर आलेख है.
बहुत सार्थक लेख |यदि अपनी गलती समझ कर कोइ क्षमा मांगले तो छोटा नहीं हो जाता |क्षमा से बढ़ कर कोइ हथियार नहीं होता भूल सुधार के लिए
बहुत अच्छी तरह से सोच कर ही कोइ कदम उठाया जाए वही उचित होता है |
आशा
बढ़िया प्रस्तुति .....सार्थक विश्लेषण .....सही सलाह
बढ़िया प्रस्तुति.....
बहुत सार्थक लेख ...........
आभार.....
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