पत्रकार अडियार को इमरजेंसी के दौर में जेल जाना पड़ा और वहां कुरआन पढ़ने का मौक़ा मिला तो इस्लाम के उसूल सामने आ गए।

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  • Saturday, December 10, 2011
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  • Ayaz ahmad
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  • इस्लाम कबूल करने के पहले अब्दुल्लाह अडियार डी.एम.के. के प्रसिद्ध समाचार-पत्र 'मुरासोली' के 17 वर्षो तक संपादक रहे। डी.एम.के. नेता सी.एन. अन्नादुराई जो बाद में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री भी रहे, ने जनाब अडियार को संपादक पद पर नियुक्त किया था। जनाब अडियार ने 120 उपन्यास, 13 नाटक और इस्लाम पर 12 पुस्तकों की रचनाएं की।

    जनाब अब्दुल्लाह अडियार महरहूम तमिल भाषा के प्रसिद्ध कवि, प्रत्रकार, उपन्यासकार और पटकथा लेखक थे। उनका जन्म 16 मई 1935 को त्रिरूप्पूर (तमिलनाडु) में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा कोयम्बटूर में हुई। वे नास्तिक थे, लेकिन विभिन्न धर्मों की पुस्तकें पढ़ते रहते थे।

    किसी पत्रकार और साहित्यकार को विभिन्न धर्मों के बारे में भी जानकारी रखनी पड़ती है। जनाब अब्दुल्लाह अडियार अध्ययन के दौरान इस परिणाम पर पहुंचे कि इस्लाम ही सच्चा धर्म है और मनुष्य के कल्याण की शिक्षा देता है। आखिरकार 6 जून 1987 ई। को वे मद्रास स्थित मामूर मस्जिद गये और इस्लाम कबूल कर लिया। इस्लाम कबूल करने के पहले वे डी।एम।के। के प्रसिद्ध समाचार-पत्र 'मुरासोलीÓ के 17 वर्षो तक संपादक रहे। डी।एम.के. नेता सी.एन. अन्नादुराई जो बाद में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री भी रहे, ने जनाब अडियार को संपादक पद पर नियुक्त किया था।

    जनाब अडियार ने 120 उपन्यास, 13 नाटक और इस्लाम पर 12 पुस्तकों की रचनाएं की। इमरजेंसी के दौरान उन्हें गिरफ्तार किया गया और काफी प्रताडि़त किया गया। जेल में उन्होंने जनाब यूसुफ अली का कुरआन मजीद का अंग्रेजी अनुवाद पढ़ा और उससे काफी प्रभावित हुए। इस्लाम (इस्लाम जिससे मुझे प्यार है) पुस्तिका लिखी, जिसका बाद में हिन्दी, अंग्रेजी, मराठी, सिन्धी, मलयालम और उर्दू में अनुवाद हुआ। उनकी पत्नी थयममल जो ईसाई थीं, इस पुस्तिका को पढ़कर मुसलमान हो गयीं। इसे पढ़कर उ.प्र. के एक जमीदार 1987 ई. में मुसलमान हो गये। जनाब अब्दुल्लाह अडियार को पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल जियाउल हक ने पाकिस्तान आमंत्रित किया और विशेष अतिथि के रूप में उनका स्वागत किया। वे प्रखर वक्ता भी थे और इस्लाम पर धाराप्रवाह बोलते थे। उनके ब्रिटेन में अनेक संभाषण हुए, जिनका विषय था हजरत मुहम्मद (सल्ल.) का पवित्र जीवन। इनके कैसेट उपलब्ध हैं।

    वे तमिलभाषियों के आमंत्रण पर श्रीलंका और सिंगापुर भी गये। 1932 में तमिलनाडु सरकार ने तमिल साहित्य के विशिष्ट पुरस्कार 'कलाईमम्मानीÓ से उन्हें पुरस्कृत किया। इमरजेंसी के बाद उन्होंने 'नीरोतमÓ (पत्रिका) का प्रकाशन किया, जो बहुत लोकप्रिय हुआ। उन्होने नीरोतम प्रकाशन से ही 'तंगागुरूदुनÓ(पत्र� ��का) भी प्रकाशित की। जनाब अडियार इस्लाम को एकमात्र मुक्ति मार्ग के रूप में प्रस्तुत करते थे। उन्होंने मद्रास में इस्लामिक दावा सेन्टर कायम किया। वे 6 करोड़ तमिल जनता को इस्लाम का संदेश पहुंचाने के लिए एक इस्लामी टी.वी. चैनल की स्थापना हेतु प्रयासरत रहे। 20 सितम्बर 1996 (जुमा के दिन) को कोडम्बकम में उनकी मृत्यु हो गयी।
    (इस्लामिक वेबदुनिया)

    1 comments:

    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

    ज्ञान की गठरी खोलने पर ही रत्न मिलते हैं।।

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