आना चाहती थी वो
तुम्हारे जीवन में
तुम्हारा अक्स बनके
बिखेरने को खुशियाँ
कि उसकी हर अदा पे
कि उसकी हर अदा पे
मुस्कुराहटें तुमको भी मिलती
जीती वो भी कुछ पल
सौगातें उसको भी मिलतीं
आना पायी वो
आना पायी वो
देख न पायी इस जहान को
क्यों छीन लिया तुमने
आने वाली उस सांस को
हो तुम कुसूरवार
हो तुम कुसूरवार
सब कहेंगे मगर
अरे ये तो बात दो
उसकी खता क्या थी?
(न तो मैं इसे शायरी कह सकता हूँ न कविता और न ही मैं उर्दू भाषा जानता हूँ बस इन पंक्तियों के माध्यम से स्त्री भ्रूण हत्या को रोकने का एक आह्वान करने का प्रयास मात्र किया है)
(न तो मैं इसे शायरी कह सकता हूँ न कविता और न ही मैं उर्दू भाषा जानता हूँ बस इन पंक्तियों के माध्यम से स्त्री भ्रूण हत्या को रोकने का एक आह्वान करने का प्रयास मात्र किया है)
2 comments:
जनाब माथुर साहब ! भारत में ऐसे लोग हुए हैं कि जिन्होंने अच्छाई को फैलाने के लिए अपनी शब्द शक्ति का सहारा लिया लेकिन उनकी बात को शिल्प की दृष्टि से परखा गया तो उसमें मात्रा दोष पाया गया ।
गायत्री मंत्र वेदों का सबसे ज़्यादा चर्चित मंत्र है । इसमें भी मात्रा दोष पाया जाता है और इसी कारण वेदविदों ने इसे लंगड़ा मंत्र घोषित किया है लेकिन किसे परवाह है गायत्री की मात्राओं की ?
असल चीज़ भाव है कि कहा क्या जा रहा है ?
यहाँ आप बिना किसी झिझक के कह सकते हैं हरेक सही बात जैसे कि आपने कन्या भ्रूण हत्या रोकने के अपनी इस पोस्ट में पुकार लगाई है ।
मैं आपके साथ हूं ।
आप वेद कुरआन ब्लाग की लोकप्रिय पोस्ट्स की टॉप की पोस्ट देखिएगा । इस विषय पर मैंने कुछ अलग अंदाज़ से और भी व्यापक अर्थों में काम किया है ।
धन्यवाद !
शुक्रिया सर!आपका वह ब्लॉग भी ज़रूर देखूंगा.
सादर
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