नदियाँ अलग थी,
नाव अलग थे,
दर्द अलग थे...
पर मन की दशा एक थी॥
दानवीरता मन की कमजोरी होती है
सहनशीलता मन की कमजोरी होती है
सच पूछो तो प्यार अपने आप में एक कमजोरी होती है...
प्यार ही दान है
प्यार सहनशीलता है...
ऐसे कमज़ोर मन को बीमारियाँ होती हैं॥
ऐसे ही कमज़ोर मन पर
हिंसक प्रहार होते हैं,
विश्वासघात होते हैं...
मन की ऐसी दशा में भी मैं जीना चाहती हूँ....
हर बार टूटकर फिर जुड़ जाती हूँ
खैरात की ज़िन्दगी ही सही
कुछ खुद्दारी निभा लेती हूँ
और जहाँ दर्द बांटना है,बाँट कर सहज हो जाती हूँ...
अगर कोई दुःख देता है
तो टुकड़े-टुकड़े कोई दर्द को सहलाता भी है
मन की उलझनें वक़्त की उलझनें
अलग-अलग होती हैं...
ताल-मेल खुद बैठाना होता है
कोई हारता है,कोई जीतता है॥
खेल कोई भी हो नियम यही होता है॥
पर सिकंदर वही है जो हारी बाजी को जीत जाता है...
1 comments:
नाव अलग थी ,
अलग था घाट भी
नदी अलग थी
अलग था मार्ग भी
तन वही था मन वही
नयन वही था सपन वही
जो टूटा और बिखर गया पर
आँसुओं की डोर में
पिरो रही हूं आज भी
उम्र ढलती है बस शरीर की
आत्मा अमर और मन युवा
मन व्याकुल है आज भी
प्रेमदान को तत्पर है आज भी
प्रेम, दान और धैर्य में बल है
हाँ मगर यह मनुष्य निर्बल है
नर का सहारा बस नारी है
पर नारी है बेबस आज भी
Post a Comment