एक विनय जीवन देने की माँ तुमसे है ध्यान धरो
स्त्री भुर्ण हूँ मारी जाउंगी थोडा मुझपर दया करो 
संवेदनाओं को झंझोड़ देने वाली ये याचना अभी भी हो रही है...और अभी भी मानवता की हत्याएं निरंतर है 
एक संवाद उस माँ से जो इस हत्या में शामिल थी (पुर्णतः या अंशतः )
माँ राह तुमने हीं खो दिया 
अन्यथा इतना विलाप क्यों होता 
मेरे जन्म के अनुरोध को
माँ तुमने भी अवरोध किया 
अन्यथा इतना विलाप क्यों होता
क्रंदन पत्थर ह्रदय को पिघला दे
मैंने भी तो रोया था 
माँ तुमने मानव धर्म,
मैंने जीवन हीं खोया था ...........
क्यों मूक हो माँ ??  जवाब दो ....
माँ तुमने बिरोध क्यों नहीं किया?? जवाब दो....
मुझे उत्तर चाहिए......
----अरशद अली-----
स्त्री भुर्ण हूँ मारी जाउंगी थोडा मुझपर दया करो------------अरशद अली
 Posted on Saturday, April 9, 2011 by Arshad Ali  in 
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1 comments:
आपने समय की ज़रूरत को पूरा करने वाली एक पोस्ट हिंदी ब्लॉग जगत को दी है, शुक्रिया।
एक और पोस्ट इसी विषय पर आपके लिए है ‘प्यारी मां‘ पर।
एक हत्यारी माँ का बेटी के नाम पत्र
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