आजकल ब्लॉग जगत में एक अभियान छिड़ा हुआ है कि हमारा राष्ट्र गान “जन गण मन अधिनायक जय है” वास्तव में भारत माता या भारत वर्ष की महिमा को वर्णित नहीं करता अपितु महा कवि रवीन्द्र नाथ टैगोर ने यह गीत किंग जॉर्ज पंचम तथा इंग्लैण्ड की क्वीन के सम्मान में रचा था जिसे हम सभी लोग पिछले ६२-६३ सालों से अज्ञानतावश राष्ट्र गान का मान देते हुए गाते आ रहे हैं और अब यह समय आ गया है कि हमें अपनी भूल का सुधार कर लेना चाहिये और “जन गण मन” को हटा कर “वंदे मातरम” या “सारे जहाँ से अच्छा” गीत को राष्ट्र गान के रूप में स्थापित करने के अभियान को पुरजोर समर्थन देना चाहिये !
मुद्दा बड़ा संवेदनशील है और इसके साथ करोड़ों भारतीयों की भावनायें जुडी हुई हैं ! इसलिए यह आवश्यक है कि कोई भी ठोस कदम उठाने से पहले इससे जुड़े सभी पहलुओं पर गंभीरता के साथ विचार कर लिया जाये और सभी तथ्यों की भली प्रकार जाँच पड़ताल कर ली जाये !
आइये सबसे पहले इस गीत के शब्दों को भली प्रकार जाने और समझें ! विकीपीडिया पर इस गीत के पाँचों अंतरों का अंग्रेज़ी अनुवाद जो उपलब्ध है वह इस प्रकार है !
The lyrics of all 5 stanzas of the complete song "Jana Gana Mana"
The English translation below has been adapted from one posted by Sitansu Sekhar Mittra many years ago.[1]
Bengali Transcription | English Translation |
Stanza 1:- | |
Jano Gano Mano Adhinaayako Jayo Hey,Bhaarato Bhaagyo Bidhaataa | Oh! the ruler of the minds of people, Victory be to You, dispenser of the destiny of India! |
Stanza 2:- | |
Ohoroho Tobo Aahbaano Prachaarito,Shuni Tabo Udaaro Baani | Your call is announced continuously,we heed Your gracious call |
Stanza 3:- | |
Potono Abhbhudoy Bandhuro Ponthaa,Jugo Jugo Dhaabito Jaatri | The way of life is somber as it moves through ups and downs,But we, the pilgrims, have followed it through ages. |
Stanza 4:- | |
Ghoro Timiro Ghono Nibiro,Nishithey Peerito Murchhito Deshey | During the bleakest of nights,when the whole country was sick and in swoon |
Stanza 5:- | |
Raatri Prabhatilo Udilo Rabichhabi, Purbo Udayo Giri Bhaaley | The night is over, and the Sun has risen over the hills of the eastern horizon. |
इस गीत की रचना दिसंबर १९११ में की गयी थी ! लगभग उसी समय जब किंग जॉर्ज पंचम का राज्याभिषेक हुआ था ! यह गीत सबसे पहली बार उस समय की इन्डियन नॅशनल कोंग्रेस के अधिवेशन के दूसरे दिन २६ दिसंबर को गाया गया था ! संयोग से उस दिन के एजेंडा में भारत आगमन पर जॉर्ज पंचम व क्वीन का स्वागत और सम्मान भी शामिल था ! इसीलिये यह भ्रांति फ़ैल गयी कि कविवर रवीन्द्रनाथ टैगोर ने यह गीत जॉर्ज पंचम के सम्मान में लिखा है और कविता में उद्धृत शब्द ‘अधिनायक’ एवं ‘भाग्यविधाता’ उनके लिये संबोधित हैं ! जबकि वास्विकता यह है कि उनकी शान में एक अन्य गीत ‘बादशाह हमारा’ दूसरे कवि श्री रामभुज चौधरी द्वारा उसी कार्यक्रम में गाया गया था ! ब्रिटिश इन्डियन प्रेस के अखबारों में इस कार्यक्रम की रिपोर्ट कुछ इस तरह छापी गयी !
"The Bengali poet Babu Rabindranath Tagore sang a song composed by him specially to welcome the Emperor." (Statesman, Dec. 28, 1911)
"The proceedings began with the singing by Babu Rabindranath Tagore of a song specially composed by him in honour of the Emperor." (Englishman, Dec. 28, 1911)
"When the proceedings of the Indian National Congress began on Wednesday 27th December 1911, a Bengali song in welcome of the Emperor was sung. A resolution welcoming the Emperor and Empress was also adopted unanimously." (Indian, Dec. 29, 1911)
नॅशनल इन्डियन प्रेस ने इस कार्यक्रम की रिपोर्ट अपने समाचार पत्रों में कुछ इस तरह से छापी !
"The proceedings of the Congress party session started with a prayer in Bengali to praise God (song of benediction). This was followed by a resolution expressing loyalty to King George V. Then another song was sung welcoming King George V." (Amrita Bazar Patrika, Dec.28,1911)
"The annual session of Congress began by singing a song composed by the great Bengali poet Babu Ravindranath Tagore. Then a resolution expressing loyalty to King George V was passed. A song paying a heartfelt homage to King George V was then sung by a group of boys and girls." (The Bengalee, Dec. 28, 1911)
यहाँ तक कि इन्डियन नॅशनल कोंग्रेस के वार्षिक अधिवेशन की दिसंबर १९११ की रिपोर्ट में इस कार्यक्रम के सन्दर्भ में यह लिखा गया था !
"On the first day of 28th annual session of the Congress, proceedings started after singing Vande Mataram. On the second day the work began after singing a patriotic song by Babu Ravindranath Tagore. Messages from well wishers were then read and a resolution was passed expressing loyalty to King George V. Afterwards the song composed for welcoming King George V and Queen Mary was sung."
परमपिता परमात्मा एवं अपनी मातृभूमि की स्तुति में रचित अपनी इस रचना पर छिड़े विवाद ने कविवर रवीन्द्रनाथ टैगोर को भी बहुत मर्माहत किया था ! १० नवंबर १९३७ को श्री पुलिन बिहारी दास को लिखे एक पत्र में उन्होंने अपनी पीड़ा को इस तरह व्यक्त किया था !
"A certain high official in His Majesty's service, who was also my friend, had requested that I write a song of felicitation towards the Emperor. The request simply amazed me. It caused a great stir in my heart. In response to that great mental turmoil, I pronounced the victory in Jana Gana Mana of that Bhagya Vidhata [ed. God of Destiny] of India who has from age after age held steadfast the reins of India's chariot through rise and fall, through the straight path and the curved. That Lord of Destiny, that Reader of the Collective Mind of India, that Perennial Guide, could never be George V, George VI, or any other George. Even my official friend understood this about the song. After all, even if his admiration for the crown was excessive, he was not lacking in simple common sense."
यह पत्र जो मौलिक रूप से बांग्ला में लिखा गया था श्री प्रभात कुमार मुखर्जी द्वारा रचित रवींद्र नाथ टैगोर की जीवनी ‘रवीन्द्रजीवनी’ के दूसरे वॉल्यूम के पेज ना. ३३९ पर उद्धृत है !
पुन: १९ मार्च १९३९ के अपने एक पत्र में रवीन्द्र बाबू ने लिखा है –
"I should only insult myself if I cared to answer those who consider me capable of such unbounded stupidity as to sing in praise of George the Fourth or George the Fifth as the Eternal Charioteer leading the pilgrims on their journey through countless ages of the timeless history of mankind." (Purvasa, Phalgun, 1354, p738.)
स्वयं रवीन्द्रनाथ टैगोर के पत्रों के इन उद्धरणों के बाद मुझे ऐसा प्रतीत नहीं होता कि किसी भी तरह के संशय की कोई गुंजाइश अब बाकी रह गयी है ! जलियाँवाला बाग के नर संहार के बाद रवीन्द्रनाथ टैगोर ने सम्मान में मिली अपनी ‘सर’ की उपाधि लौटा दी थी ! अपने देश की महिमा में उन्होंने बेमिसाल गीतों की रचना की है ! उनकी रचनाधर्मिता तथा उनके मंतव्यों को तोड़ मरोड़ के प्रस्तुत करना और भ्रामक प्रचार करना किसी भी तरह से उचित नहीं है ! रवीन्द्रनाथ टैगोर हमारा मान हैं, हमारी शान हैं और भारत के आकाश के दैदीप्यमान ध्रुव तारे के समान हैं इसमें कोई दो राय हो ही नहीं सकतीं ! हम कभी उनके ॠण से उॠण नहीं हो सकेंगे !
जय भारत !
साधना वैद !
15 comments:
hum shri ravindranath tegor ji ki deshbhakti par koi sandeh nahi kar sakte.kisi ki kavita ka poorntah meaning hi badal dena yeh unhi dimaag ki upaj ho sakti hai jo ek chamakte hue sitaare se dvesh rakhte hon.satya ko pramaan ki jaroorat hoti hai.aadhe bhare hue gilaas ko koi bolta hai gilaas aadha bhara hua hai koi bolta hai aadha khali hai.sochne ka apna apna najariya.
राष्ट्र गान किसके लिए लिखा गया , आज़ादी के इतने वर्षों बाद इस तर्क को उठाने का कोई अर्थ नहीं... जन गण मन को हर हिन्दुस्तानी सम्मान देता आया है, फिर व्यर्थ का बदलाव ... हमेशा लीक से हटकर किसी तमाशे का कोई अर्थ नहीं...
मैं बंगाली होने के नाते आपका ये पोस्ट बहुत पसंद आया! कविगुरु रबिन्द्रनाथ टगोर जी की कवितायें और उनकी लिखी हुई गाने जिन्हें मैंने बचपन से सिखा है उनके बारे में जितना भी कहा जाए कम है! एक महान लेखक को मेरा शत शत नमन!
जानकारी पूर्ण लेख .. विचारणीय ..ऐसी बातों को उछाल कर लोंग जनता के मन में संदेह पैदा करते हैं ... और अपना उल्लू सीधा करते हैं
बहुत ही सार्थक और जानकारीपूर्ण आलेख..
राष्ट्रगीत के रूप में जिसे बरसों से सम्मान देते आए हैं उसे बदलने का कोई औचित्य दिखाई नहीं देता..भाग्य विधाता तो हम स्वयं हैं अपने देश के वासी...चाहें तो फिर से सोने की चिड़िया बना दे या........!
kafi achchi jankari di hain......saath hi ek bhram bhi logon ka door ho gaya.
उनकी रचनाधर्मिता तथा उनके मंतव्यों को तोड़ मरोड़ के प्रस्तुत करना और भ्रामक प्रचार करना किसी भी तरह से उचित नहीं है ! रवीन्द्रनाथ टैगोर हमारा मान हैं, हमारी शान हैं और भारत के आकाश के दैदीप्यमान ध्रुव तारे के समान हैं इसमें कोई दो राय हो ही नहीं सकतीं ! हम कभी उनके ॠण से उॠण नहीं हो सकेंगे !
जब हमारे देश मे कहने को कुछ नही बचता तो इस तरह की भ्रामक स्थिति उत्पन्न की जाती है ताकि जनता का ध्यान मुद्दे से हटकर इस तरफ़ लग जाये…………आपने अंतिम पंक्तियो मे सबके मन की बात कह दी और ये ही हर भारतीय के मन की बात है…………जय हिंद
यह जयगाथा पहले गोरों की थी मगर अब कालों की है!
टैगौर जी धन्य हो गये क्योंकि अब यह हमारा राष्ट्र गान है!
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चौमासे में श्याम घटा जब आसमान पर छाती है।
आजादी के उत्सव की वो मुझको याद दिलाती है।।....
जानकारीपूर्ण आलेख...आभार!!
‘जन गण मन‘ के रचयिता टैगोर जी ने अपने जीवन काल स्वयं ही इस आरोप का खंडन कर दिया था कि उन्होंने यह गीत जार्ज पंचम की शान में क़सीदे के तौर पर लिखा है। उनके खंडन के बाद भी आरोप लगाने का मक़सद महज़ कुप्रचार है लेकिन ताज्जुब तो तब होता है कि जब अंग्रेज़ों से ‘नफ़रत सी‘ दिखाने वाले ये लोग ‘वंदे मातरम‘ को देशभक्ति का पैमाना निर्धारित करते हैं। इस तरह की बातें केवल नफ़रत फैलाती हैं। नफ़रतों ने तो वृहत्तर भारत को, जिसमें ईरान आदि तक थे, खण्डित कर दिया तो क्या फिर राजनीतिक संकीर्ण स्वार्थों की खातिर मतान्ध लोग नफ़रतें फैलाकर देश की अखण्डता को खतरे में डालना चाहते हैं?
‘आनन्द मठ उपन्यास हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन पर एक कलंक है।'डा0 राम मनोहर लोहिया ने सच ही कहा था। मुसलमानों के साथ-साथ हिन्दुओं को भी इस गीत का विरोध करना चाहिए क्योंकि
1- यह गीत अवैदिक सोच की उपज है।
2- इसे दस्यु लूटमार के समय गाया करते थे।
3- मुसलमानों को मारने काटने का नाम विष्णु पूजा रखकर विष्णु पूजा को बदनाम किया गया है।
4- यह गीत अंग्रेजों के चाटुकार नौकर बंकिमचन्द्र चटर्जी द्वारा लिख गया है जिसने न कभी खुद देश की आज़ादी के लिए प्रयास किया और न ही कभी क्रान्तिकारियों की मदद् की।
5- यह गीत अंग्रेजों के वेतनभोगी सेवक और सहायक की याद दिलाता है।
6- यह गीत सन्यासियों के वैराग्य और त्याग के स्वरूप को विकृत करके भारतीय मानवतावादी परम्परा को कलंकित करता है।
इसके बावजूद भी सत्य से आँखें मूंदकर जो लोग वन्दे मातरम् गाना चाहें गायें लेकिन यह समझ लें कि सत्य का इनकार करना ईश्वर के प्रति द्रोह करना और अपनी आत्मा का हनन करना है। ऐसे लोग कल्याण को प्राप्त नहीं करते हैं और मरने के बाद अंधकारमय असुरों के लोक को जाते हैं। वेद-कुरआन यही बताते हैं और मुस्लिम आलिम भी यही समझाते हैं यही सनातन और शाश्वत सत्य है।
आपका यह लेख सामयिक ज़रूरतों को पूरा करने वाला एक बेहतरीन लेख है।
जो लोग मुददे उठाते हैं जब उनसे तर्क-वितर्क किया जाता है तो फिर वे नदारद हो जाते हैं या फिर आते भी हैं तो मुददे पर बात न करके इधर-उधर की बातें करने लगते हैं। इस मुददे पर जब भी हमने बात की तो हमें यही अनुभव हुआ है।
इस मंच को एक सशक्त लेख देने के लिए शुक्रिया !
देश प्रेमी क्यों न गाएँ वन्दे मातरम् ? डा0 अनवर जमाल
ye geet kis upalakshya me likha gaya tha ab iska koi auchity nahin hai .... aaj ise rashtrageet kadarja diya gaya hai aur is pure geet me deshprem ko hi darshaya gay hai isme koi do ray nahin hai ..aaj bhi ise hi rashtra gaan kahana koi galat nahin hai
आपकी पोस्ट " ब्लोगर्स मीट वीकली {३}"के मंच पर सोमबार ७/०८/११को शामिल किया गया है /आप आइये और अपने विचारों से हमें अवगत करिए /हमारी कामना है कि आप हिंदी की सेवा यूं ही करते रहें। कल सोमवार को
ब्लॉगर्स मीट वीकली में आप सादर आमंत्रित हैं।
सही कहा है!
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